Monday, February 17, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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ईश कुमार गंगानिया

भारत में जाति एक ऐसा कोढ़ है जिसे निरंतर खुजलाए जाने की जरूरत रहती है

बातचीत का तीसरा और अंतिम हिस्सा   क्या आपको लगता है कि अभी तक का दलित साहित्य ब्राह्मणवाद की आलोचना तक सीमित है, उसमें विकल्प में...

दलित साहित्य आइडियोलॉजिकल क्राइसिस से जूझ रहा है

बातचीत का दूसरा हिस्सा आपकी नज़र में हिंदी में कितना साहित्य इस समय अम्बेडकरी कहा जा सकता है ? अम्‍बेडकरवादी साहित्‍य से मेरा तात्‍पर्य उस साहित्‍य...

दलित भी विविधताओं से भरे समाज, राष्ट्र और ग्लोबल विलेज का नागरिक है

ईश कुमार गंगानिया पिछले बीस वर्षों से अम्बेडकरवादी साहित्य सृजन में लगे हैं। गंगानिया अम्बेडकरवादी पत्रिका अपेक्षा के उप सम्पादक रहे और बाद  में उन्होंने...

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