बेहना जाति पसमांदा मुसलमानों में गिनी जाती है और पारंपरिक रूप से रुई धुनने का काम करती रही है लेकिन अब कोई भी यह काम नहीं करता। मशीनें आ जाने से उनको काम मिलना धीरे-धीरे बंद होता गया। जाड़ा शुरू होते ही अपनी धुनकी कंधे पर लिए वे दूर-दराज के इलाकों में निकल जाते और बसंत आते-आते अच्छी-ख़ासी कमाई करके वे वापस आते। बाकी के दिनों में मेहनत-मजदूरी के दूसरे काम भी करते। लेकिन बनी-बनाई रजाइयाँ आने और मशीनों की बढ़ती संख्या ने उन्हें खदेड़ दिया।