भारत बंद की सफलता के बाद जहां अधिकांश राजनीतिक विश्लेषकों ने दलित आंदोलनकारियों के व्यवहार में आए बड़े बदलाव को देखते हुए भविष्य में धरना- प्रदर्शनों के सैलाब आने की संभावना जाहिर किया, वहीं दलित आंदोलनकारी अपनी बहन जी को पुराने रूप में लौटते देख खुशी से झूम उठे। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जिस कांशीराम का नाम लेकर मायावती राजनीति करती रही हैं, लोग राहुल गांधी में अब कांशीराम की छवि देखने लगे हैं। यदि कांशीराम के रूप में राहुल गांधी की छवि स्थापित हो जाती है, तब पहले से ही काफी हद तक अपना वोटबैंक गवां चुकी मायावती का राजनीतिक भविष्य का क्या होगा?
लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव की अपेक्षा कम सीटों से जीत दर्ज की।लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम से ऐसा लगता है कि आरएसएस अपने राजनीतिक वंशज यानी भाजपा की मदद के लिए आगे नहीं आया।आरएसएस की गहरी समझ यह है कि इस चुनाव में भाजपा की हार का मुख्य कारण दलित वोटों का भारत गठबंधन की ओर जाना है।आरएसएस के नेता पहले से ही भाजपा नेताओं के साथ लंबी बैठकें कर रहे हैं, ताकि चुनाव के नतीजों का विश्लेषण किया जा सके और भविष्य की रणनीति बनाई जा सके। भाजपा-आरएसएस किस रणनीति पर काम कर रहे हैं इस पर राम पुनियानी का लेख।