मूलतः पाकिस्तान में दलितों में चूड़ा समुदाय से सम्बंधित है जो सफाई पेशे से जुड़े हुए है और सामंती जातिवादी समाज के अपमान का शिकार है। उन्होंने पाकिस्तान में ईसाई धर्म अपनाया था ताकि जाति के अपमान से बच सके और भारत में इसी कारणवश आर्य समाज के प्रचारक अमीचंद शर्मा द्वारा १९२५ स्वच्छता और हाथ से मैला ढोने में लगे समुदायों के लिए 'बाल्मीकि' नाम लगा दिया गया था ताकेि उन्हें ईसाई होने से बचाया जा सके।
मुसहर अपने को अन्य दलित जातियों से ऊंचा मानते हैं और मौक़ा मिले तो वैसा ही करने से नहीं चूकते जैसे तथाकथित बड़ी जातियां उनके साथ करती हैं। इन्हीं गाँवों में घूमते समय मैंने मुसहरों को डोम लोगों के साथ भेदभाव करते देखा और अपने नल से पानी भरने से साफ़ तौर पर मना करते हुए देखा।