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हिंदी सिनेमा में जाति के चित्रण की समझदारी

1913 में बनी मूक फिल्म राजा हरिश्चन्द्र से भारतीय सिनेमा की शुरुआत हुई। अपने 100 वर्षों से अधिक लम्बे और गौरवशाली इतिहास में भारतीय...

जातिवादी अन्याय के खिलाफ एक अग्निपुंज थे राजा ढाले

मुझे आज भी यह घटना नहीं भूलती जब मेरे घर पर शिवकुमार मिश्र और राममूर्ति त्रिपाठी आए थे। दोनों को यह पता चला कि राजा ढाले यहाँ रहते हैं तब दोनों ने उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की। बातचीत करते-करते खाने का समय हो गया। जैसे ही थाली लगने लगी ढाले जी चले गये। मेरी माँ ने कहा उनकी भी थाली लगी है। मेरे पिता जी उन्हें बुलाने गये और साथ में खाना खाया। तब ढाले जी ने कहा मैंने कभी नहीं सोचा था काशी के ब्राहमण हमारे साथ खाना खायेंगे।

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