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क्यों नहीं कम हो रहे हैं दलितों पर अत्याचार
बिहार के नवादा में घटी घटना आज भी जातीय भेदभाव को प्रदर्शित करती है। जब बीजेपी और आरएसएस जैसे संगठन हिन्दू एकता का नारा लगाते है तो वे इस तरह दलित उत्पीड़न पर मौन क्यों है? जातिगत उत्पीड़न और पूंजीवादी शोषण आपस में गहरे जुड़े हुए हैं। जब तक ऐसी जातिगत व्यवस्था को चुनौती नहीं दी जाएगी तब तक शोषण जारी रहेगा ।
दलितों-पिछड़ों का वर्गीकरण लेकिन ब्राह्मण-बनियों में क्रीमी लेयर का सवाल क्यों नहीं उठाया जा रहा है
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने दलितों-पिछड़ों के क्रीमी लेयर आरक्षण पर अपना फैसला सुनाया हैं। लोग अपने-अपने तरीके से सुप्रीम कोर्ट के फैसले की व्याख्या कर रहे हैं। असल में मामला वर्गीकरण का था और फैसला वहीं तक सीमित रखा जाना चाहिए था लेकिन कोर्ट के बहुत से न्यायमूर्तियों की टिप्पणियाँ यह दिखा रही हैं कि बहुतों को तो आरक्षण नाम की व्यवस्था से ही परेशानी है। कुछ वर्षों से सुप्रीम कोर्ट और राज्यों में हाई कोर्ट के कई निर्णय ऐसे आए हैं जिनसे लगता है कि ब्राह्मणवादी शक्तियाँ इस प्रश्न को न्याय प्रक्रिया में उलझाना चाहती हैं। प्रस्तुत है सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर विद्या भूषण रावत का विश्लेषण।
कांग्रेस, राहुल गांधी की सामाजिक न्यायवादी छवि को सामने लाने का दम नहीं दिखा पायी
कांग्रेस देश की सबसे महत्वपूर्ण पार्टी है, जिसके नेतृत्व में स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई लड़कर ब्रितानी हुकूमत से देश को आज़ादी मिली। यूं तो...
सरकार भूमिहीनों को ज़मीन दे, वह उसको हर महीने 10 किलो मुफ्त अनाज देंगे: ‘निराला’
दलित, पिछड़ों, मुसलमानों और आर्थिक रूप से कमज़ोर भूमिहीनों के लिए भूमि के अधिकार के लिए आन्दोलन कर रहे श्रवण कुमार 'निराला' से स्वतंत्र पत्रकार...