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उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी क्या पिकनिक स्पॉट भर है?
उत्तराखंड आन्दोलन में तमाम खामियों के बावजूद एक बात, जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया, वह थी राजधानी की बात। यह इसलिए क्योंकि अन्य राज्यों...
‘जनसत्ता’ का ‘राजसत्ता’ बन जाना (डायरी, 18 नवंबर 2021)
बौद्धिक लेखन में किसी को क्रेडिट देना महत्वपूर्ण माना जाता है। मेरे हिसाब से यह दिया भी जाना चाहिए और ना केवल लेखन में...
साजिश की थ्योरी (डायरी 11 अक्टूबर 2021)
सियासत में और सियासत को समझने में आवश्यक अध्ययन में एक थ्योरी होती है। इसे मैं षडयंत्र की थ्योरी मानता हूं। इसमें होता यह...
उत्तराखंड के आदिवासियों की ज़मीनें हड़प ली गईं, उनको न्याय चाहिए
बोक्सा जनजाति अधिकतर तराई और भावर के इलाके में रहती है और यहाँ पर यह अब अपनी ही जमीन से बेदखल और बंधुआ हो गई है। तराई भावर में वे देहरादून के डोईवाला क्षेत्र से लेकर पौड़ी जनपद के दुगड्डा ब्लाक तक इनकी काफी संख्या थी। कोटद्वार के तराई भावर के इलाकों जैसे लाल ढंग में भी इनकी संख्या बहुत है। कोटवार-उधम सिंह नगर के मध्य रामनगर में भी इनकी आबादी निवास करती है।