Friday, March 29, 2024
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साजिश की थ्योरी (डायरी 11 अक्टूबर 2021)

सियासत में और सियासत को समझने में आवश्यक अध्ययन में एक थ्योरी होती है। इसे मैं षडयंत्र की थ्योरी मानता हूं। इसमें होता यह है कि षडयंत्र इसके केंद्र में होता है। हम हर घटना का विश्लेषण भी इसी भावना के साथ करते हैं कि हर घटना के पीछे षडयंत्र है। सामान्य जीवन में इसके […]

सियासत में और सियासत को समझने में आवश्यक अध्ययन में एक थ्योरी होती है। इसे मैं षडयंत्र की थ्योरी मानता हूं। इसमें होता यह है कि षडयंत्र इसके केंद्र में होता है। हम हर घटना का विश्लेषण भी इसी भावना के साथ करते हैं कि हर घटना के पीछे षडयंत्र है। सामान्य जीवन में इसके लिए बेहद सामान्य कहावत है कि आदमी को एक झूठ छिपाने के लिए सौ और झूठ बोलने पड़ते हैं। कई बार तो पूरा जन्म कम पड़ता है और आदमी केवल झूठ पर झूठ बोलता रहता है। मौजूदा दौर में आरएसएस और उसकी सरकार इसके बेहतरीन उदाहरण हैं।
दरअसल, मैं बीते एक सप्ताह से देख रहा हूं कि दिल्ली से प्रकाशित जनसत्ता के पहले पन्ने से आरएसएस और भाजपा दोनों गायब रह रहे हैं। यह संभवत: रिकार्ड ही है कि एक सप्ताह से जनसत्ता ने अपने पहले पन्ने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोई तस्वीर नहीं छापी है। जबकि सामान्य तौर पर ऐसा होता नहीं है। हमारे बिहार में तो हर छोटे-बड़े अखबार के लिए यह आवश्यक है कि वह पहले पन्ने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सुंदर चेहरा प्रकाशित करें। यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो यह मुमकिन है कि सूचना एवं जनसंपर्क विभाग और बिहार सरकार के अधिकारी उनका विज्ञापन रोक दें। बिहार में अखबारों के लिए सरकारी विज्ञापन बेहद महत्वपूर्ण है। वजह यह है कि वहां कॉर्पोरेट कंपनियां तो हैं नहीं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि की बात अलग है। यहां तो कई कम्पनियां हैं, जिनसे अखबारों को विज्ञापन मिल जाता है और अखबारों का काम चल जाता है। जनसत्ता की ही बात करूं तो विज्ञापनरहित जनसत्ता अधिकतम 10 पन्ने का होता है और विज्ञापनों के साथ इसे मैंने 24 पन्नों तक विस्तृत होते देखा है। जनसत्ता के दिल्ली संस्करण के पन्नों की औसतन संख्या 14 है। हालांकि आज इसके पन्नों की संख्या 12 ही है।

[bs-quote quote=”मैं तो एयर इंडिया को टाटा संस को बेचे जाने की खबर को भी साजिश वाली थ्योरी के हिसाब से देखता हूं। यदि प्रधानमंत्री और उनके कुनबे को किसानों के मारे जाने का दुख होता या फिर पश्चाताप होता तो वे आनन-फानन में एयर इंडिया टाटा संस को ट्रांसफर नहीं करते। दरअसल यह एक तरीका था ताकि लोगों का ध्यान लखीमपुर खीरी से हटाकर हवाई जहाज के पीछे लगा दिया जाय। लेकिन भारत के लोग भी गजब स्वभाव के हो गए हैं। वह अब हुक्मरान की साजिश को समझने लगे हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

तो अब मैं साजिश वाली थ्योरी की बात करता हूं। पहले लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा का बेटा किसानों को गाड़ियों से रौंदता है। किसान उत्तेजित होते हैं और भाजपा के दो कार्यकर्ताओं की पीट-पीटकर हत्या कर देते हैं। इस घटना में कुल मिलाकर मारे तो केवल 8 लोग जाते हैं लेकिन दिल्ली की कुर्सी हिल जाती है। हालत यह होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शोक व्यक्त करना भी भूल जाते हैं। सामान्य स्थिति में वह एक कुत्ते के पिल्ले के नुकसान होने पर भी दुख व्यक्त करते हैं। अभी तो हाल ही में एक रईस के सामने हाथ जोड़े वह जिस अंदाज में खड़े थे, कौन कहेगा कि वह हृदयवान नहीं हैं। किसानों का मामला अलग है।

मैं तो एयर इंडिया को टाटा संस को बेचे जाने की खबर को भी साजिश वाली थ्योरी के हिसाब से देखता हूं। यदि प्रधानमंत्री और उनके कुनबे को किसानों के मारे जाने का दुख होता या फिर पश्चाताप होता तो वे आनन-फानन में एयर इंडिया टाटा संस को ट्रांसफर नहीं करते। दरअसल यह एक तरीका था ताकि लोगों का ध्यान लखीमपुर खीरी से हटाकर हवाई जहाज के पीछे लगा दिया जाय। लेकिन भारत के लोग भी गजब स्वभाव के हो गए हैं। वह अब हुक्मरान की साजिश को समझने लगे हैं।
फिर हुआ यह कि सरकार ने दिल्ली में बिजली संकट का हव्वा खड़ा कर दिया है। अब दिल्ली में हर कोई यही बात कर रहा है कि बिजली आज रात से या फिर कल दोपहर बाद बंद हो जाएगी। कल शाम की ही बात है। मेरे एक पड़ोसी पानी का स्टॉक रखने के लिए बड़ा सा कंटेनर लेकर आए। उनके मुताबिक दो हजार लीटर क्षमता की पानी की टंकी के अलावा यह कंटेनर भी आवश्यक होगा। कम से कम पांच दिनों तक तो कोई समस्या नहीं आनेवाली।
खैर, बिजली संकट के सवाल ने दिल्ली के लोगों के दिमाग से लखीमपुर खीरी नरसंहार वाले मामले को मिटाने में सफलता हासिल कर ली है। इस बीच कल केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद टीवी को दिए अपने लंबे-चौड़े साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दुनिया का महानतम लोकतांत्रिक शासक करार दिया है। उनके मुताबिक, कैबिनेट की बैठक में मोदी सभी की बात सुनते हैं। फिर चाहे कोई छोटा हो या कोई बड़ा। हर फैसला सभी की सहमति से लेते हैं। अमित शाह के मुताबिक प्रधानमंत्री ने कभी अपना निर्णय किसी पर नहीं थोपा है। हालांकि कई मौकों पर उन्होंने देश हित में कड़े फैसले जरूर लिये हैं। अमित शाह ने यह भी दावा किया है कि उन्होंने प्रधानमंत्री एकदम करीब से देखा है और उन्हें समझा है।
अब अमित शाह के कहे को कोई कैसे गलत कह सकता है। लेकिन अमित शाह को कोई सपना तो आया नहीं होगा कि उन्होंने संसद टीवी को लंबा-चौड़ा साक्षात्कार दिया। निश्चित तौर पर यह साजिश ही है कि लखीमपुर खीरी नरसंहार और एयर इंडिया को कौड़ियों के भाव बेचे जाने से इमेज को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई की जा सके।
बात केवल भाजपा तक सीमित नहीं रह गई है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी इन दिनों खूब चिंतित रहने लगे हैं। कल ही देहरादून में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा है कि हिंदू अपने बच्चों को धर्म और पूजा के प्रति रखना सिखाएं। उन्होंने कहा है कि अपने धर्म के प्रति आदर नहीं होने से ही बच्चे दूसरे मतों की तरफ आकर्षित होते हैं। हालांकि उन्होंने अफसोस भी व्यक्त किया है कि ‘कैसे मतांतरण हो जाता है? परंपरागत उपासना को क्यों छोड़ना? अपने घर के लड़के-लड़कियां दूसरे मतों में कैसे चली जाती हैं? छोटे-छोटे स्वार्थों के कारण, विवाह करने के लिए?’
बहरहाल, आरएसएस और भाजपा इन दिनों क्राइसिस मैनेजमेंट में लग गयी है। साजिश वाली मेरी थ्योरी कहती है कि कल ही या फिर एक-दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर जनसत्ता के पहले पन्ने पर दिख जाएगी। खैर कल एक कविता जेहन में आयी। हालांकि यह अभी आधी ही है। इसे जल्द पूरा करूंगा।
इंकलाब जिंदाबाद कहते हुए
कुछ लोग शहर के बीचोंबीच
सड़क किनारे अपनी झोपड़ियों में
गोया उनकी झोपड़ियां बंकर हों
और वे डटे हैं मोर्चे पर
जब आएगा हुक्मरान तो
उसे अपनी मुस्कुराहट से हराएंगे।
इंकलाब जिंदाबाद कहते हुए–
कुछ बटाईदार किसान, खेतिहर मजदूर
संसद के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं
और संसद के मालिक ने
सांकल चढ़ा लिया है
और कानों में ठूंस ली है रूई
लेकिन अनाज हाथों में लिये किसान
मानने को तैयार नहीं हैं कि
डेमोक्रेसी में राजा बहरा और अंधा भी होता है।
इंकलाब जिंदाबाद कहते हुए–
नौजवानों की भीड़ सड़कों पर है
और उनके हाथों में है तख्ती कि
उन्हें रोजगार चाहिए
गोया उन्हें रोजगार देने से 
हुक्मरान को मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी।
इंकलाब जिंदाबाद कहते हुए–
बलात्कार पीड़िता औरतें
अदालतों में खड़ी हैं
इस विश्वास के साथ कि
अदालत की दीद का पानी सूखा नहीं है
गोया अदालतों के पास होते हैं
अपने कान, अपनी आंखें और अपनी जुबान।

नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।

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