महिलाओं के विरुद्ध हिंसा आज भी हमारे समाज में एक गंभीर समस्या बनी हुई है। इसकी वजह से न केवल उनका शारीरिक बल्कि मानसिक विकास भी प्रभावित होता है। शहरी क्षेत्रों के साथ साथ भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में भी लैंगिक हिंसा एक जटिल और गहरी समस्या बनी हुई है, जो सामाजिक संरचनाओं, सांस्कृतिक परंपराओं और लिंग आधारित भेदभाव से जुड़ी हुई है। यह हिंसा शारीरिक, मानसिक और यौन शोषण के रूप में होती है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल दर साल महिलाओं पर होनेवाली घरेलू हिंसा में लगातार बढ़ोत्तरी नजर आती है ,महिलाओं के साथ भेदभाव और हिंसा समाज के लिए एक अभिशाप है। इस हिंसा को रोकने के महिलाओं को जागरूक एवं शिक्षित करना होगा ताकि वे अपने खिलाफ होनेवाली हिंसा का प्रतिकार कर सकें। इसमें सामाजिक संस्थाओं को भी आगे आकर महिलाओं की मदद करनी होगी। लेकिन केवल जागरूकता की बात करके समाज अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो सकता ।
पढ़ने -लिखने की उम्र में आज बच्चे और युवा नशे की आदत के शिकार हो रहे हैं। यह अच्छा संकेत नहीं है। खासकर गांव में नशे का बढ़ता चलन बढ़ गया है। पूरे देश में डेढ़ करोड़ बच्चे नशे का सेवन करते हैं। इसमें से कुछ नशा तो ऐसा है जो सर्व सुलभ नहीं है। सरकार नशा मुक्ति अभियान तो चलाती है लेकिन शराब और नशे की अन्य चीजों पर रोक नहीं लगाती क्योंकि यह अच्छे राजस्व मिलने का साधन होते हैं, सवाल यह है कि ऐसे में नशा मुक्ति अभियान कितना सफल हो पाएगा?
यह विडंबना है कि हमारे देश में महिलाएं सबसे अधिक घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। घर की चारदीवारी के अंदर न केवल उन्हें शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी प्रताड़ित किया जाता है और फिर घर की इज़्ज़त के नाम पर महिला को ही चुप रहने की नसीहत दी जाती है। हालांकि महिलाओं, किशोरियों और बच्चों पर किसी भी प्रकार की हिंसा करने वालों के खिलाफ कई प्रकार के सख्त कानून बने हुए हैं।