प्राकृतिक रूप से समृद्ध उत्तराखंड के जंगल प्राकृतिक आपदाओं के साथ मनुष्यजनित नुकसान के कारण खत्म होते जा रहे हैं। जिसकी वजह से हिमालय की तराई वाले क्षेत्रों में इस बार गर्मी मैदानी इलाकों के जैसे ही पड़ी। गर्मियों में सबसे ज्यादा खतरनाक जंगलों में आग लगना है, जिसके कारण जंगल में रहने वाले जीव-जन्तु तो मरते ही हैं, मनुष्य का जीवन भी खतरे में पड़ जाता है। उत्तराखंड के जंगलों से विद्याभूषण रावत की ग्राउन्ड रिपोर्ट
जिसे हम खराब कहकर अपदस्थ कर देते हैं, वह कचरा नहीं है। फेंकी जाने वाली हर चीज का मूल्य होता है। फलों और सब्जियों के छिलके जो हम फेंक देते हैं, उन्हें पेड़-पौधों के उपयोग में आने वाली बेशकीमती खाद के रूप में बदला जा सकता है। इन छिलकों को अगर हम घर के एक गमले में मिट्टी की तहों से दबाकर रखें तो तीन से चार सप्ताह के अंदर यह तथाकथित कचरा बेशकीमती खाद बन जाता है जो पूरी तरह ऑर्गेनिक और पेड़ पौधों के लिए प्राणदायक है।
हजारीबाग जिले का सबसे बड़ा अनाज उत्पादन करने वाला प्रखंड, बड़कागांव अब अपनी पहचान खो चुका है। काले कोयले की काली नजर बड़कागांव को लग चुकी है। एनटीपीसी के कोयला खदान लगने के बाद गाँव की खेती और किसान दोनों संकट का सामना कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में बाढ़ और सूखे के हालात पैदा होने का खतरा बढ़ रहा है। अभी जलवायु परिवर्तन की अंतर सरकारी समिति (आईपीसीसी) की "जलवायु परिवर्तन 2022 के प्रभाव" पर आई ताजा रिपोर्ट भारत के खेती-किसानी के लिए खतरा पैदा करने वाली है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2028 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन या संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन यानी COP-28 में COP-33 की मेजबानी भारत में...
पहाड़ों में विगत 10-12 वर्षो से जलवायु परिवर्तन व जंगली जानवरों के प्रकोप के कारण बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है। जिससे उत्पादन में कमी आने लगी और कृषि को काफी नुकसान होने लगा। युवा किसान कृषि में ज़्यादा मुनाफा नहीं मिलने के कारण इसे छोड़कर पलायन करने लगे थे।