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झारा शिल्प के विकास के लिए बना वर्क शेड स्वयं अपनी बदहाली पर आँसू बहा रहा है

झारा शिल्प का इतिहास खँगालने पर पता चलता है कि इसके सूत्र भारत की महान हड़प्पा सभ्यता से जुड़ते हैं। इसकी बनावट और रूपाकार भारत की प्राचीन रूप कलाओं की तरह विविधतापूर्ण और जीवन से भरी हुई है। रोज़मर्रा के जीवन से जुड़ी हर गतिविधि और जीवन में काम आनेवाली हर चीज को इस कला में देखा जा सकता है। प्रकृति, लोक संस्कृति, आमोद-उत्सव के अनेक आयामों का चित्रण इनकी बनावट में है।

अभाव और बदहाली में जीने वाले अकेले कलाकार नहीं हैं गोविंदराम झारा

गोविंद राम झारा राज्य शिखर सम्मान और राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त झारा शिल्पियों में पहले ऐसे कलाकार हैं, जिन्हें यह सम्मान मिला। लेकिन आज वह गरीबी और बदहाल स्थिति में पुश्तैनी घर में अपनी पत्नी के साथ रहते हुए बामुश्किल जीवन काट रहे हैं। आज से पंद्रह साल पहले कैंसरग्रस्त बेटी के इलाज करवाने में आर्थिक और मानसिक रूप से पूरी तरह टूट गए और उसके बाद वे उबर नहीं पाए। घर के अंदर जाने के दरवाजे के ऊपर एक बड़ी सी नाम पट्टिका लगी हुई है जिस पर गोविंदराम झारा का नाम लिखा हुआ है। घर में अंदर घुसने पर एक बत्ती कनेक्शन द्वारा लाइट की सुविधा मिली हुई है। जहां पर लट्टू बल्ब जल रहा था और एक कोने में बुझे हुए चूल्हे के ऊपर और आसपास एक कोने में और 5-7 बर्तन दिखे और एक छींका लटका हुआ था और नीचे बेतरतीबी से एक गुदड़ी पड़ी हुई थी। अगली दीवार पर एक बंद दरवाजा था, जिसे खोलने पर एक आँगन और आँगन से लगे हुए दो कच्चे कमरे उनके छोटे बेटे डहरु झारा और उनके परिवार का है।

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