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ish kumar ganganiya
अपना कोई गाँव नहीं था लेकिन पूरा बचपन गाँवों में ही बीता
दलित समाज से जुड़े़ लेखक अपनी आत्मकथाएं लिख रहे हैं। इन आत्मकथाओं में दलित जीवन व दलित समाज से जुड़े़ जातीय भेदभाव को मूल रूप से उजागर किया है। जहां तक लेखिकाओं की आत्मकथाओं का सवाल है तो वहां भी जाति के साथ-साथ लिंग भेद अपने मुखर रूप में मौजूद रहता है। कवि-आलोचक ईश कुमार गंगानिया ने हरियाणा के विभिन्न गाँवों में बीते अपने बचपन की सहज कहानी कही है।
भारत में जाति एक ऐसा कोढ़ है जिसे निरंतर खुजलाए जाने की जरूरत रहती है
बातचीत का तीसरा और अंतिम हिस्सा
क्या आपको लगता है कि अभी तक का दलित साहित्य ब्राह्मणवाद की आलोचना तक सीमित है, उसमें विकल्प में...

