अशिक्षा को दलित, पिछड़ों और महिलाओं की गुलामी के प्रधान कारण के रूप में उपलब्धि करनेवाले जोतिराव फुले ने वंचितों में शिक्षा प्रसार एवं शिक्षा को ऊपर से नीचे के विपरीत नीचे से ऊपर ले जाने की जो परिकल्पना की उसी क्रम में भारत की पहली अध्यापिका सावित्री बाई फुले का उदय हुआ। मान्यवर कांशीराम का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिन्होंने इतिहास की कब्र में दफ़न किये गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व और कृतित्व को सामने ला कर समाज परिवर्तनकामी लोगों को प्रेरणा का सामान मुहैया कराया, जिनमें से वह सावित्रीबाई फुले भी एक हैं, जिन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के सहयोग से देश में महिला शिक्षा की नींव रखी। आज माता सावित्री बाई फुले की 194 वीं जयंती है। इस उपलक्ष्य में आज की शैक्षिक और सामाजिक स्थितियों से तुलना से तुलना करते हुए पढ़िए यह लेख।
महात्मा जोतीबा फुले ने अपने वक्तव्य में कहा है कि ‘उच्च वर्गों की सरकारी शिक्षा प्रणाली की प्रवृत्ति इस बात से दिखाई देती है कि इन ब्राह्मणों ने वरिष्ठ सरकारी पदों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है। यदि सरकार वास्तव में लोगों का भला करना चाहती है, तो इन अनेक दोषों को दूर करना सरकार का पहला कर्तव्य है। अन्य जातियों के कुछ लोगों को नियुक्त करके, ब्राह्मणों के प्रभुत्व को सीमित किया जाना चाहिए जो दिनोंदिन बढ़ रहा है। कुछ लोग कहते हैं कि इस स्थिति में यह संभव नहीं है।