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लेखक के स्मृति चिन्हों की बदहाली के दौर में प्रेमचंद
गोरखपुर से प्रेमचंद का नाता बहुत भावप्रवण और आत्मीय था। यहीं पर उन्होंने जीवन की बुनियादी नैतिकता और आदर्श का पाठ सीखा। लेकिन आज गोरखपुर में उनके स्मृतिचिन्ह लगातार धूसरित हो रहे हैं। ऐसा लगता है नयी पीढ़ी की टेक्नोसेंट्रिक प्रवृत्ति ने उन्हें इस बात से विमुख कर दिया है कि उनके शहर में एक कद्दावर लेखक की जवानी के दिन शुरू हुये थे और वह लेखक पूर्वांचल की ऊर्जस्विता और रचनाशीलता को आज भी एक ज़मीन देता है। प्रेमचंद जयंती के बहाने अंजनी कुमार ने गोरखपुर की नई मनःसंरचना की पड़ताल की है।
प्रेमचंद के गाँव लमही में अब प्रेमचंद को कोई नहीं पढ़ता
अपर्णा -
किसी जमाने में लमही एक गाँव था और प्रेमचंद ने बहुत सारे चरित्रों को इसी गाँव से उठाया। मसलन! गाँव में जो पोखरा दिखाई पड़ता है और रामलीला का जो मैदान है। हम समझते हैं कि उनकी प्रसिद्ध कहानी रामलीला में उसका जिक्र है। लमही के पास ही एक ऐसी बस्ती है, जहां से निकल कर ईदगाह का हामिद और उसके साथी नदेसर स्थित ईदगाह की तरफ रुख करते हैं।
प्रेमचंद ने समाज की विसंगतियों से कलम के बल पर होड़ लिया – कृष्ण कुमार यादव
वाराणसी। मुंशी प्रेमचंद एक साहित्यकार, पत्रकार और अध्यापक के साथ ही आदर्शोन्मुखी व्यक्तित्व के धनी थे। एक पत्रकार को कभी भी पक्षकार नहीं होना...
हिरोशिमा दिवस पर सारनाथ में बुद्ध प्रतिमा के समक्ष संकल्प के साथ हुआ समापन
पूर्वांचल के 10 जिलों में लगभग 650 किलोमीटर मार्ग पर किया गया व्यापक जन संवाद एक देश समान शिक्षा अभियान एवं आशा ट्रस्ट के संयुक्त...

