शाहगंज से अंबेडकरनगर सड़क को फोरलेन बनाने के लिए सड़क के किनारे स्थित मकानों, दुकानों और खेतों में निशान लगा दिया गया है लेकिन इसके लिए पहले न तो ग्राम प्रतिनिधि की नियुक्ति हुई न फ़िजिकल सर्वे हुआ। इन बात से स्थानीय निवासियों में भाय और आक्रोश है तथा वे आंदोलन कर रहे हैं। मुआवज़े और सर्किल रेट को लेकर भी अभी कोई बात स्पष्ट नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर सरकार हमारी ज़मीन लेना चाहिती है तो हमें उचित सर्किल रेट से मुआवजा दिया जाय तथा भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 का पालन किया जाय।
अपनी जड़ों से कटकर विस्थापित होना इस देश के आदिवासियों की नियति बन चुकी है क्योंकि तथाकथित विकास अब जंगलों से होता हुआ उन हिस्सों में पहुँच चुका है, जहां आदिवासी कम संसाधनों में ही अपना जीवनयापन कर रहे हैं। रॉबर्ट्सगंज के चुर्क इलाके में घसिया बस्ती में रहने वाले आदिवासियों को दूसरी बार विस्थापित करने की तैयारी सरकार कर चुकी है। फिलहाल वे सरकारी जमीन पर ही पिछले 35 वर्षों से रह रहे हैं लेकिन विस्थापन की सूचना आते ही वे डरे और घबराए हुए हैं। पढ़िये, उनकी स्थिति का जायज़ा लेने पहुंचे अमरनाथ अजेय की ग्राउंड स्टोरी
विकास के नाम पर देश के हर हिस्से में गरीब, आदिवासी, दलित, पिछड़े समाज को किसी ना किसी रूप में विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है। इस विस्थापन में अक्सर विस्थापित होने वाले परिवार के वाजिब हक की भरपाई करने में भी सरकारी तंत्र आनाकानी करता दिखता है। यह विस्थापन शहर की गलियों से होता हुआ अब जंगलों तक जा पहुंचा है। मध्य प्रदेश के नौरादेही अभयारण्य में भी अब विस्थापन की तलवार चलाई जा रही है। विस्थापन की इस त्रासदी पर सतीश भारतीय की रिपोर्ट -
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 28 जून, 2022 को जल-जंगल-ज़मीन की कॉर्पोरेट लूट, दमन और विस्थापन के खिलाफ जनसंघर्षों का एक दिवसीय राज्य सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में देशभर के 15 राज्यों (छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्यप्रदेश, ओड़िशा, जम्मू एंड कश्मीर, दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, बिहार, गुजरात, तमिलनाडु और उत्तराखंड) से 500 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सेदारी की। सम्मेलन के अंत में नौ प्रस्ताव पारित किए गए। शुरुआती तीन प्रस्ताव छत्तीसगढ़ केंद्रित होते हुए भी सामान्य प्रकृति के हैं, जिनमें विकास के नाम पर जमीन की लूट रोकने, पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में पेसा कानून और भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 के अनुपालन की मांग दर्ज है। बाकी प्रस्ताव भी सामान्य प्रकृति के हैं। ये सभी प्रस्ताव मोटे तौर पर उन्हीं संकल्पों का दुहराव हैं जो आज से कोई आठ साल पहले ओडिशा के जगतसिंहपुर स्थित ढिंकिया में हुए जनसंघर्षों के दो दिवसीय सम्मेलन में पारित किए गए थे। तीन हिस्सों में प्रकाशित की जा रही अभिषेक श्रीवास्तव की लंबी रिपोर्ट का दूसरा भाग।