Tuesday, October 15, 2024
Tuesday, October 15, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमग्राउंड रिपोर्टजौनपुर-अंबेडकर नगर फोर लेन : बिना मुआवज़ा तथा पुनर्वास तय किए मकानों-दुकानों...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

जौनपुर-अंबेडकर नगर फोर लेन : बिना मुआवज़ा तथा पुनर्वास तय किए मकानों-दुकानों को जबरन लेने पर उतारू

शाहगंज से अंबेडकरनगर सड़क को फोरलेन बनाने के लिए सड़क के किनारे स्थित मकानों, दुकानों और खेतों में निशान लगा दिया गया है लेकिन इसके लिए पहले न तो ग्राम प्रतिनिधि की नियुक्ति हुई न फ़िजिकल सर्वे हुआ। इन बात से स्थानीय निवासियों में भाय और आक्रोश है तथा वे आंदोलन कर रहे हैं। मुआवज़े और सर्किल रेट को लेकर भी अभी कोई बात स्पष्ट नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर सरकार हमारी ज़मीन लेना चाहिती है तो हमें उचित सर्किल रेट से मुआवजा दिया जाय तथा भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 का पालन किया जाय।

शाहगंज से अकबरपुर जानेवाली सड़क यूं तो अच्छी-ख़ासी चौड़ी सड़क है लेकिन इसके किनारे पर स्थित गाँवों और बाज़ारों में इस बात को लेकर हलचल मची हुई है कि यह सड़क अब फोरलेन बनेगी और मौजूद मकानों-दुकानों को ढहाया जाएगा। इस बात ने यहाँ के निवासियों की नींद उड़ा दी है। लोग बदहवास और चिंतित हैं कि उनका आनेवाला समय कैसा होनेवाला है।

शाहगंज से कुछ ही दूरी पर ताखा पश्चिम गाँव हैं। सड़क को फोरलेन बनाने के लिए बिना नोटिस दिए लोगों के मकानों पर निशान लगाया जा चुका है। सड़क के दोनों किनारों पर तकरीबन पंद्रह मीटर की दूरी चिन्हित की गई है। यह चिन्हिकरण दो महीने पहले किया गया था तभी से यहाँ के लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल सिर उठा रहे हैं।

चिन्हित किए गए कुछ घरों का पूरा रकबा और कुछ का अधिकांश हिस्सा सड़क में जाने के संकेत हैं। इसलिए यहाँ के निवासी बेघर होने के सदमे में हैं। उनका कहना है कि हमसे मुआवजे की कोई बात नहीं की गई है।  उनको बताया गया है कि उन्हें घर का मुआवजा ही मिलेगा लेकिन जमीन का मुआवजा नहीं मिलेगा। अधिकांश लोग आबादी की ज़मीन पर रह रहे हैं और उनकी चिंता यह है कि इस ज़मीन से बेदखल किए जाने के बाद वे कहीं भी ज़मीन नहीं खरीद पाएंगे क्योंकि उनके पास पैसा ही नहीं होगा।

ज़्यादातर लोग यहाँ दिहाड़ी-मजदूरी करके अपना पेट पालते हैं। उनकी माली हालत बहुत खराब है और इस महंगाई के दौर में बड़ी मुश्किल से चूल्हा जल पाता है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार हमें जमीन अधिग्रहण के बदले जमीन और घर के बदले घर दे।  हमें इसी गांव में बसाया जाय जहां हम रहते आये  हैं क्योंकि पचास सालों से हम यहाँ रह रहे हैं और हमारी सारी सामाजिकता यहीं है।

ताखा पश्चिम की महिलाओं का सवाल है कि हम कहाँ जाएँ

इस बात को लेकर कुछ गाँवों में अब सुगबुगाहट शुरू हो गई है। खासकर खैरुद्दीनपुर बाज़ार में अब लोगों ने आंदोलन का मूड बना लिया है। हालांकि पहले यहाँ भी लोगों को यह समझ में नहीं आया कि क्या किया जाय लेकिन पड़ोसी जिले आज़मगढ़ जिले के पवई ब्लॉक के अंडिका बाग में चल रहे आंदोलन की धमक यहाँ तक आ गई और लोगों के ज़ेहन में स्पष्ट हो गया कि जब तक भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के तहत मुआवज़ा नहीं तय होगा तब तक हमलोग अपनी ज़मीन देने पर सहमति नहीं देंगे।

 

shahganj-NH-gaonkelog
ताखा पश्चिम में अपनी बात कहती महिलाएँ

इस विषय में ताखा पश्चिम निवासी आरती राजभर कहती हैं ‘मैं यहां आंदोलन कर रही हूं क्योंकि सरकार ने हमारे घरों को तथा हमारी जमीनों को चिन्हित कर लिया है। मुझे यह चिंता है कि हम कहां रहेंगे। जो भी अधिकारी मेरे घर को चिन्हित करने और निशान लगाने आए थे, उन्होंने कहा कि आपकी यहां तक की जमीन सरकार लेगी और आपको उसके बदले मुआवजा दिया जाएगा। मैंने उन लोगों से कहा कि साहब यदि मुझे ज़मीन ही नहीं मिलेगी तो मैं कहां जाऊंगी? इस वाकये को एक महीना हो चुका है। उसके बाद से कोई भी अधिकारी नहीं आया है। इसमें हम लोगों की पूरी जमीन चली जा रही है। इस जमीन पर रहते हुए हमें 50 वर्ष हो चुके हैं। यह एक यादव की जमीन है जिस पर मुकदमा चल रहा है। यह मुकदमा मेरे पति लड़ रहे थे। हम लोग यहां दादा-बाबा के जमाने से ही रहते आ रहे हैं।’

यह भी पढ़ें – इंग्लैड कैसे इस्लामोफोबिया का मुकाबला कर रहा है

सुमन राजभर कहती हैं कि ‘सरकार ने मेरी भी जमीन को चिन्हित कर लिया है। मैं अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर के कहां जाऊंगी। मेरा दो-तीन कमरे का मकान है जिसकी पूरी जमीन इस अधिग्रहण में जा रही है। हमें मुआवजा सिर्फ मकान का मिल रहा है, जमीन का नहीं। उस मुआवजे के पैसे से हम जमीन लेंगे या मकान लेंगे। या फिर उस पैसे से हम अपने छोटे-छोटे बच्चों का पालन-पोषण करेंगे। बताइए हम क्या करें? हम लोगों का सरकार से यही निवेदन है कि सरकार यदि हमें मुआवजा दे रही है तो कहीं जमीन की भी व्यवस्था हमारे लिए कर दी जाए और घर भी दे क्योंकि हम सड़क पर नहीं रह सकते। अभी मुआवजे की रकम भी निश्चित नहीं की गई है। सरकार यदि हमारी जमीन के बदले जमीन और घर के बदले घर देगी तभी हम कहीं मेहनत-मजदूरी करके जब शाम को घर आएंगे तो शांति से दो रोटी बनाकर खा सकेंगे। हमारे पास रोजी-रोटी का साधन नहीं है तो हम उस मुआवज़े के पैसे से क्या करेंगे। हम मेहनत-मजदूरी करते हैं। कभी किसी ईंट भट्ठे पर या फिर किसी के खेत में।’

रेखा राजभर का कहना है कि ‘यदि सरकार इस सड़क को फोरलेन कर देगी तो उसमें हमारा पूरा घर चला जाएगा फिर हम कहां रहेंगे? लोग सड़क पर गाड़ी चलाएंगे यह सही है लेकिन हम लोग अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर के कहां जाएंगे, कहां रहेंगे। हमारे पति मजदूरी करते हैं। हम लोग रोज कमाते-खाते हैं। अब सरकार वह भी छीनेगी तो हम कहां जाएंगे। इसके खिलाफ हम लोग आंदोलन कर रहे हैं और हमारी यह मांग है कि हमारी जमीन और मकान के बदले सरकार हमें जमीन और घर दे। यह बात अभी कहीं नहीं उठाई जा रही है।   जबसे हम लोगों ने यह बात सुनी है तब से हमें बहुत चिंता है। हमें मुआवजे की कोई आशा नहीं है। मेरा कहना यह है कि यह हमारी धरती मां है और हमें यहां से नहीं निकलना चाहिए। हम लोग यहां दादा-परदादा के समय से रहते आ रहे हैं इसलिए हमें यहां से ना निकाला जाए। चुनाव से पहले हमें यह कहा गया था कि योगी और मोदी जी को वोट करो और वह हमारा विकास करेंगे लेकिन देख लीजिये हमारा यही विकास हो रहा है।’

प्रेमा कहती हैं कि ‘मैं यहां पर अपने बाबा-दादा के जमाने से रह रही हूं। हमारा कोई अन्यत्र ठौर-ठिकाना नहीं है। हम यह जमीन छोड़कर कहां जाएंगे। हमारे जमीन की नपाई कर ली गई है।’

सावित्री का कहना है कि ‘मैं विवाह करके यहीं आई थी और आज यह घर हमसे लिया जा रहा है। हम लोग वर्षों से यहाँ पर रह रहे हैं। सरकार हमारी जमीन और घर के बदले हमें घर दे। मुआवजे के पैसे का हम क्या करेंगे? पैसा आज है कल नहीं, पर हमारा घर तो हमेशा रहेगा। आजकल के महंगाई के समय में जितना पैसा रहेगा उतना खर्च होगा।’

सुमित्रा यादव भी यहीं की निवासी हैं। वह कहती हैं कि ‘मेरा घर यहीं सड़क के उस पार है। हमारी भी तीन बिस्वा जमीन फोरलेन में जा रही है। उसका मुआवजा सरकार हमें क्या देगी यह हमें मालूम नहीं है। कुछ लोग आए और हमारी जमीन पर निशान लगा कर चले गए। इसके लिए हमें कोई नोटिस भी नहीं दी गई हैं। हमारे सुनने में यह आ रहा है कि हमारी जमीन पट्टे की जमीन है और वह हमने भूमिधरी कराया था, इसका मुआवजा हमें नहीं मिलेगा। हम अपनी जमीन नहीं देंगे। इसके लिए हम आंदोलन कर रहे हैं।’

ताखा पश्चिम गांव की ही शीला राजभर कहती हैं कि ‘मेरी पूरी जमीन जा रही है। अब मैं, मेरे पति, बच्चे कहां रहेंगे। अब आगे सरकार जो कहेगी वही होगा। या तो सरकार हमें मार करके हमारी जमीन ले ले या फिर हमारी जमीन के बदले हमें कहीं दूसरी जगह जमीन दे। हमें जमीन भी किसी और गाँव में नहीं चाहिए, बल्कि हम जिस गांव में हैं इसी गांव में चाहिए, क्योंकि इसी गांव में हमारी सामाजिकता है। यहां हमें आधी रात में किसी चीज की आवश्यकता होती है तो हम किसी से कर्ज लेकर के वह कार्य कर लेते हैं। यदि हमें किसी दूसरे गांव में बसा दिया जाएगा तो वहां हमें कौन जानेगा और कौन हमारी सहायता करेगा।’

शकुंतला राजभर का कहना है कि ‘मेरी पूरी जमीन जा रही है। मुआवजे की बात का कुछ पता भी नहीं चल रहा है। और न ही अभी तक कोई नोटिस मिला है। हमारा मन बहुत चिंतित है कि यदि हमारा पूरा घर चला जाएगा तो हम कहां रहेंगे। यहां कोई नेता भी अभी तक नहीं आया है। जैसे-जैसे हमें जानकारी मिलेगी उस हिसाब से हम नेताओं से संपर्क करेंगे और उन्हें अपनी समस्या से अवगत कराएंगे।’

यह भी पढ़ें – मिर्ज़ापुर : नहरों में पानी की जगह सूखा घास-फूस की सफाई के नाम पर खर्च हो जाता है करोड़ों का बजट

ताखा पश्चिम गांव की अनीता कहती हैं कि मेरे छोटे-छोटे बच्चे और बुजुर्ग सास-ससुर हैं। यदि सड़क बनाने के लिए हमारी जमीन ले ली जाएगी तो मैं इन्हें लेकर कहां जाऊंगी। इसलिए सरकार हमें जमीन दे। साथ ही घर भी बना कर दे।’

कुछ महीने पहले आए सड़क चौड़ीकरण के फरमान से लोग सकते में हैं। उनका कहना है कि सड़क से ज्यादा रोजगार की जरूरत है। पुल सराय के पूर्व प्रधान बैजनाथ कहते हैं कि ‘यह सरकार हमें रोजगार देने वाली सरकार नहीं है बल्कि रोजगार छीनने वाली सरकार है। 52 एकड़ की हमारी जमीन गन्ना मिल में चली गई। जितना पैसा सरकार सड़क बनवाने में लगा रही है उसके आधे पैसे में हमारी मिल चल जाती और यहाँ हजारों किसान सुखी रहते।  अब यहाँ के किसानों ने गन्ने की खेती करना ही बंद कर दिया है। अब खेती और दूध बेचना ही हमारी आजीविका का साधन है। अभी ये जो आंदोलन चल रहा है इसमें हम अपना सहयोग देंगे।’

पुल सराय बाज़ार में स्थानीय निवासी

जमुनिया के पास हरिपुर निवासी मायाराम बताते हैं ‘मेरी जमीन इस अधिग्रहण में नहीं जा रही है। इस अधिग्रहण से आम जनता को कोई लाभ नहीं है। जमीनें नाजायज ढंग से अधिग्रहित करने की सरकार की मंशा है। इस अधिग्रहण में कई लोगों के दुकान-मकान नष्ट हो जाएंगे और लाखों पेड़-पौधे भी काटे जाएंगे।

पुल सराय बाज़ार में दुकान चलाने वाले घनश्याम यादव ने बताया कि ‘जब मेरी दुकान पर निशान लगाया गया तो मुझसे मुआवजे की कोई बात नहीं की गई थी। मुझे कहा गया कि ये सरकारी जमीन है इसका कोई मुआवजा आपको नहीं मिलेगा। आप लोगों का यहाँ मकान है तो सिर्फ मकान का मुआवजा मिलेगा। यहाँ पर मेरी एक छोटा सी गुमटी है। मुझे यही समझ आता है कि सरकार इसके बदले कोई मुआवजा नहीं देगी। इसके खिलाफ मैं सरकार से लड़ भी नहीं सकता हूँ। दूसरी जगहों के सड़क निर्माण में मेरी जो जमीने जा रही है उसमें हमें ऐसे ही नोटिस थमा दिया गया है। नोटिस में लिखा है कि आप लोग अपनी जमीन सरकार के नाम से बैनामा करिए। उन जमीनों का भी हमें कोई मुआवजा नहीं मिल रहा है। नोटिस में यह भी कहा गया है कि वे  जमीनें बंजर हैं। जबकि मेरे पास जमीन का नंबर है।’

वहीं उपस्थित मोहम्मद अर्शी सरायपुल गांव के रहने वाले हैं। वह कहते हैं कि ‘यहाँ सड़क में मेरी भी जमीन जा रही है। उधर पुल के पास भी थोड़ी सी जा रही है। इन जमीनों का मुआवजा 1 या डेढ़ लाख के करीब मिल रहा हैं। मै इस मुआवजा राशि को स्वीकार नहीं कर रहा हूँ।’

नोटिस के मामले में अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है

ताखा पश्चिम की महिलाओं का कहना है कि उन्हें कोई नोटिस नहीं दी गई और उनके घर पर आकर के निशान लगा दिया गया जिसमें लिखा हुआ है कि साढ़े 14 मी. जमीन सड़क में चली जाएगी। लेकिन सरायपुल के पास जब हमने लोगों से बात की तो उन्होंने कहा कि हमें नोटिस मिला है। लेकिन खैरुद्दीनपुर के लोगों ने कहा कि निशान जरूर लगे हैं लेकिन नोटिस नहीं मिली है।

अब सवाल उठता है कि क्या केवल नोटिस देना और नोटिस देना ही भू-अधिग्रहण की प्रक्रिया का पालन है अथवा इसके लिए अधिग्रहित किए जानेवाले गाँवों के लोगों की सहमति भी आवश्यक है। इस विषय में किसान नेता राजीव यादव कहते हैं ‘इस पूरे मामले को लेकर यदि आप और गहराई में जाएं तो पता चलता है कि कोई भी भूमि अधिग्रहित करनी होती है तो सबसे पहले उसका सर्वे किया जाता है। सर्वे करने से भी पहले ग्राम प्रतिनिधि की नियुक्ति की जाती है। उसके बाद फिजिकल सर्वे होता है, फिर रिपोर्ट प्रकाशित होती है। इस सबके बाद जन सुनवाई होती है, फिर रिपोर्ट प्रशासन को भेजी जाती है लेकिन इस पूरे मामले में ऐसा कुछ नहीं किया गया है।’

आजमगढ़ हवाई अड्डे के विस्तार के विरोध में चले आंदोलन का उदाहरण देते हुये वह कहते हैं ‘यही बात खिरिया बाग वाले आन्दोलन के मामले में भी हुई थी। पिछले दिनों जब सांसद दरोगा प्रसाद सरोज ने सदन में यह बात उठाई तो उड्डयन मंत्रालय ने कहा कि ऐसा कोई प्रस्ताव ही नहीं था। यहां पर भी जब सवाल उठेगा तब आप देखेंगे कि यहां पर पूरा का पूरा फर्जीवाड़ा है। 3ए 3बी 3सी 3डी की जो कार्यवाही है, उसको अंधेरे में रख कर इनको मुआवजे की राशि दी जा रही है।

सबसे बड़ा मसला सर्किल रेट का है जो यहाँ इतना कम है कि उसे लेकर विस्थापित होने के बाद पुनर्वास एक असंभव बात होगी। सरकार से जुड़े लोगों का कहना है कि एन एच के किनारे का मुआवजा अलग है लेकिन यदि कहीं बाइपास निकलेगा तो उसमें जानेवाली कृषियोग्य ज़मीन का मुआवज़ा अलग होगा। राजीव कहते हैं कि जो मुआवज़ा दिया जा रहा है उसका सर्किल रेट बहुत कम है। कल मैं खैरूद्दीनपुर बाजार में गया था। सरकार वहां की जमीन का अधिग्रहण कर रही है। उसमें घर, दुकानें सब खत्म हो जा रहे हैं। वहां के स्थानीय लोगों से मैंने बात की और पूछा कि आपकी जमीनों का बाजार रेट और सरकारी रेट क्या है तो उन्होंने बताया कि साढ़े आठ लाख रुपए। साढ़े आठ लाख रुपए के हिसाब से देखा जाए तो 34 लाख रुपए बिस्वा उनका मुआवजा बनता है, लेकिन इस इलाके में जिनको नोटिस मिला है उसमें 3 लाख 20 हजार की बात की गई है।’

3 लाख 20 हज़ार और 34 लाख में बहुत अंतर है। राजीव कहते हैं ‘भूमि अधिग्रहण के नाम पर सरकार यहां लूट की एक बड़ी योजना तैयार कर रही है। यदि इतने बड़े पैमाने पर दुकानों और घरों का अधिग्रहण किया जा रहा है तो उनके पुनर्वास के लिए सरकार ने क्या विचार किया है और उसकी क्या योजना है? इन लोगों से यह भी नहीं पूछा गया कि आपका पुनर्वास कहां किया जाए?

पर्यावरण का सवाल जिस पर कभी सोचा नहीं जाता

जहाँ-जहाँ एक्सप्रेसवे और हाइवे बनाए गए हैं वहाँ के सारे पेड़ उनकी भेंट चढ़ गए हैं। इस सड़क का चौड़ीकरण होने से भी लाखों पेड़ कटेंगे। राजीव कहते हैं ‘यहां पर सड़क बनाने के नाम पर हरे-भरे पेड़ काटे जा रहे हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है जबकि अभी जून में ही हीटवेव की मार से  सैकड़ो लोगों ने अपनी जान गँवा दी। अभी पिछले दिनों अकबरनगर को गैरकानूनी बताकर उसे ढहा दिया गया और वहां पर पेड़ लगाए गए। आज वही योगी जी एन एच के नाम पर लाखों पेड़ कटवाने जा रहे हैं। वही योगी जी अभी पिछले महीने ही करोड़ों पेड़ लगाने का रिकॉर्ड भी कायम कर रहे थे।’

पुल सराय तिराहा

राजीव कहते हैं ‘फिर तो एक ही बात हो सकती है। या तो आप रिकॉर्ड कायम कर लीजिए या फिर पेड़ ही कटवा लीजिए। इतने बड़े पैमाने पर पर्यावरण असंतुलित होगा और लाखो पेड़ कटेंगे तो हीटवेव ही आएगा न।’

किसान नेता वीरेंद्र यादव इस विषय में कहते हैं ‘यहां जो स्थिति है कि एक तरफ आप कहते हैं कि आपको पर्यावरण को सुरक्षित करना है तो दूसरी तरफ आप सड़कों के किनारे लगे हुए लाखों पेड़-पौधों को चौड़ीकरण करने में काटेंगे। भूमि अधिग्रहण कानून के हिसाब से आप इतनी ऑक्सीजन की व्यवस्था कहां से करेंगे।’

यह भी पढ़ें – दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण कब लागू किया जाएगा?

भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 का खुला उल्लंघन

यदि हम भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के आधार पर देखें तो कहीं पर भी यह अधिग्रहण टिकता हुआ नजर नहीं आता है। राजीव यादव कहते हैं ‘इसलिए हमारी स्पष्ट मांग है कि आप इस जारी की गई नोटिस को किसी भी कीमत पर निरस्त करें। भूमि अधिग्रहण की यह पूरी कार्रवाई गैरकानूनी है। यह गैरकानूनी काम जिन प्रशासनिक अधिकारियों ने किया है उन पर भी कार्यवाही की जानी चाहिए। अगर आपको किसानों की जमीन चाहिए तो आइए भूमि अधिग्रहण कानून के हिसाब से उनसे वार्ता कीजिए और सहमति लीजिए। जो कानून कहता है उसके अनुसार चलिए। यह देश बाबा भीमराव अम्बेडकर के संविधान के हिसाब से चलेगा।’

वीरेंद्र यादव इसे ज़मीन की खुली लूट मानते हैं। वह कहते हैं ‘यह एन एच के नाम पर जमीन लूट का एक बड़ा षड्यंत्र है। इस तरह का षड्यंत्र पूरे पूर्वांचल में जगह-जगह हो रहा है जैसे आज़मगढ़ एयरपोर्ट का मामला। एयरपोर्ट के मामले में भूमि का नोटिस जारी हो गया और वहां सर्वे भी हो गया। वहां अधिग्रहण की तैयारी चल रही थी। दो साल वहां पर किसान आंदोलन चला और आज उड्डयन मंत्री कह रहे हैं कि यहां कोई प्रस्ताव ही नहीं है।

इसी तरह से  खुचंदा, बखरियां, छज्जोपट्टी से लेकर औद्योगिक गलियारा बनाने का मामला था। औद्योगिक गलियारा बनाने के मामले में हमने वहां संघर्ष किया। वहां भी इनकी लूट की पूरी योजना थी। मुझे नहीं लगता कि ये सड़कें किसानों या मजदूरों के लिए बनाई जा रही हैं। ये इस देश के बड़े-बड़े कॉर्पोरेट के लिए बनाई जा रही हैं। मुझे नहीं लगता कि इस सड़क को चौड़ा करने की कोई जरूरत है। यह सड़क जितनी है पर्याप्त है।  कम नहीं है। हम लोग लगातार एक जन अभियान चला रहे हैं। जिस तरह से किसानों ने अपनी जमीन में एयरपोर्ट तथा औद्योगिक गलियारा के नाम पर लूटने से बचाया है यहाँ भी हम संघर्ष करके इन जमीनों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं।

एक मकान पर लगाया गया निशान

‘भूमि अधिग्रहण कानून कहता है जो व्यक्ति सब्जी भी बेच रहा है तो उसे भी मुआवजा मिलने का अधिकार है। लेकिन यहां ऐसे सड़क किनारे दुकान लगा करके अपनी आजीविका चलाने वालों का कोई सर्वे नहीं किया गया।  दूसरी बात यह कह रहे हैं कि पट्टे वाली जमीन और आबादी वाली जमीन का मुआवजा नहीं दिया जाएगा।  जबकि इन जमीनों पर ये लोग साल से काबिज हैं। इन जमीनों पर इनका कब्ज़ा है। ऐसा भी नहीं है कि ये जमीनें इन्हें मुफ्त में मिली हैं। उस समय भी जमींदारों ने इनसे वसूली किया था। पूर्वजों ने पैसा दे कर वो जमीनें ली थीं। यदि ये पट्टे वाली जमीन और आबादी वाली जमीन का मुआवजा नहीं देते है तो भूमि अधिग्रहण कानून का यह सीधा सीधा उल्लंघन है।’

राजीव यादव ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस बयान का ज़िक्र किया जिसमें उन्होंने कहा है कि फोरलेन के नाम पर किसी का मकान नहीं टूटना चाहिए और चार गुना मुआवजा मिलना चाहिए।

यह पूछने पर कि यह बयान एक जुमला भी हो सकता है। इसका कोई लिखित प्रमाण आपके पास है? इस पर राजीव ने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। अगर उन्होंने निर्देश जारी किया है तो हम उस पर जरूर बात करेंगे क्योंकि वह इस प्रदेश के मुखिया हैं। हम तो यह कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री ने कोई बात कही है तो उसे तत्काल प्रभाव में लाना चाहिए।’

हाइवे की जरूरत और टोल माफ़िया का समीकरण

पूर्वांचल के लगभग हर जिले से अयोध्या और लखनऊ के लिए चौड़ी सड़कें और हाइवे हैं। पहले से बनी अनेक सड़कों का चौड़ीकरण किया गया और बाइपास बनाए गए हैं। ऐसे में इस सड़क को लेकर सवाल उठने लगे हैं।    इस विषय में राजीव यादव कहते हैं ‘अगर व्यापक पैमाने पर देखा जाए तो पूर्वांचल के आजमगढ़ में ही लखनऊ से शाहगंज जौनपुर होते हुए, एक फैजाबाद होते हुए एनएच था। एक पूर्वांचल एक्सप्रेसवे बना दिया गया।  अब आप यहां पर एन एच बनाना चाह रहे हैं। इसकी जरूरत क्या है?

राजीव कहते हैं ‘दरअसल इनका पूरा इरादा यहां से टोल वसूलने का है। आजकल हर महीने हर जिले के एसपी यह नोट जारी करते हैं कि हमने इतनी गाड़ियों की चेकिंग की और इतने लाख या करोड़ रुपए वसूल लिए।  लेकिन राजस्व एकत्रित करने के लिए आप लोगों की जमीनों का ऐसे अधिग्रहण नहीं कर सकते। इसी तरह जो सामान्य सड़कें हैं इन्हें विकास के नाम पर टोल वाली सड़क बना देंगे। इसका जीता-जागता उदाहरण आजमगढ़ से वाराणसी वाली रोड है, जो अभी पूरी नहीं हुई है पर उस पर भी सरकार ने टोल लगा दिया है। दोनों तरफ से टोल लगा करके वसूली कर रहे हैं।

‘पिछले दिनों यहां तक हुआ कि कई महीने तक इन्होंने एक टोल को चलाने के लिए उस रूट को डायवर्ट कर दिया। इसमें लगभग 25 से 26 किलोमीटर का रूट डायवर्ट हुआ। वहां से लाखों गाड़ियां गुजरती हैं। सोचिए वहां कितने ईंधन का नुकसान हुआ होगा। यह सरकार टोल माफिया और भू माफिया से जुड़ी सरकार है। विकास के नाम पर यह सरकार विनाश कर रही है। यह हमारे गांवों को खत्म करने की साजिश है। आपका कहना है कि आप यहां इंडस्ट्री लगाएंगे। लेकिन इंडस्ट्री लगाने के बाद यह हमारे पानी का दोहन करेंगे। हमारे गांव को स्लम को बना देंगे।

आंदोलन के मूड में जनता 

उत्तर प्रदेश सरकार के रवैये को लेकर लोगों में सरकार को लेकर गहरा संकट पैदा हो चुका है। सत्ता के बल पर जनता के साथ कुछ भी कर देने की सरकार की नीति ने उसे अविश्वसनीय बना दिया है। हालाँकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि सड़क और हाइवे के लिए किसी के मकान नहीं टूटने चाहिए। भले ही इसके लिए फोरलेन का नक्शा बदल जाए।  इसके बावजूद यहां के लगभग हर मकान का चिन्हीकरण कर दिया गया है। इससे इस पूरे इलाके के लोग सदमे में है कि कब बुलडोजर बाबा का बुलडोजर आकर उनके घर को तबाह कर देगा। इस पूरे मामले में सरकार की इमेज भी साफ नहीं है। यहां पर भूमि अधिग्रहण कानून का पालन भी नहीं किया गया है जिसमे जमीन के चार गुना ज्यादा मुआवजा देने की बात की गई है और पुनर्वास की बात कही गई है।

किसान नेता वीरेंद्र यादव कहते हैं ‘इस सूबे में जो बुलडोजर बाबा की सरकार चल रही है उसे उखाड़ देने का अभियान शुरू हो चुका है। जैसे किसान यूनियन के लोगों ने उनका बुलडोजर पूर्वांचल एक्सप्रेसवे से नीचे नहीं उतरने दिया वैसे ही यहाँ से भी उसे वापस भेजेंगे। इसी आशा और उम्मीद के साथ हम लोगों ने यह  आन्दोलन शुरू किया है।

फिलहाल इस भूमि अधिग्रहण के खिलाफ अब एक आंदोलन शुरू हो चुका है। खैरुद्दीनपुर में नौ सितंबर को किसानों की एक महा पंचायत हुई जिसमें लोगों ने कहा कि हम मनमाना ढंग से अपनी जमीने छिनने नहीं देंगे। अगर सरकार ज़मीनें चाहती है तो उसे भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 का पालन करना ही होगा।

साथ में शलिनी जायसवाल और आकाश कुमार 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here