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Mirzapur: राजगढ़ ब्लॉक के मुसहरों को हटाने की फिराक में है जंगल विभाग

मिर्जापुर के राजगढ़ ब्लॉक के ग्राम पंचायत दरवान के अंतर्गत वनवासी मुसहरों की बस्ती है। इन मुसहरों का एक आसरा था जंगल, जहां से वनोपज और लकड़ी इकट्ठा करने के बाद बेचकर जीवनयापन करते थे, आज वन विभाग इन्हें जंगल से भगाते हैं और वनोपज लेने पर रोकते हैं। दूसरे रोजगार के अभाव में इनका जीवन कठिन हो गया है। देखें ये ग्राउंड रिपोर्ट

वाराणसी के करसड़ा के मुसहर परिवारों पर मँडराता खतरा : बगल में बरसाती नाला और ऊपर हाईटेंशन तार

प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की राजातालाब तहसील के अंतर्गत पड़ने वाले करसड़ा गाँव के तेरह मुसहर परिवार अक्टूबर 2021 में उजाड़ दिये गए और उस जगह पर अब अटल आवासीय विद्यालय बन चुका है। बाद में पीड़ित परिवारों को बगल में स्थित बंधे के नीचे घर बनाने के लिए जगह दी गई। यह जगह एक नाले के किनारे है जो बरसात के दिनों बरसाती पानी अथवा गंगा नदी के बढ़ने से जलमग्न हो जाता है। इससे इनके घरों पर खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा सबसे खतरनाक यह है कि इन घरों के ऊपर से हाईटेंशन तार गुजरता है। बस्ती के लोग बताते हैं कि यहाँ हमेशा झनझनाहट महसूस होती है। राजेश कुमार नामक व्यक्ति ने कहा कि हम जहाँ रह रहे हैं यहाँ मौत का खतरा हमेशा बना हुआ है लेकिन और हम कहाँ जायेंगे। कभी-कभी दोनों हाथ सटाने पर लगता है जैसे इसमें करंट लग रहा है। कभी भी बड़ी दुर्घटना की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। हाल ही में वहाँ जाने पर पता लगा कि अभी भी इन लोगों के घर आधे-अधूरे ही बन पाये हैं। दो साल पहले जब हमने रिपोर्टिंग की थी तब इन लोगों ने बताया कि हमारे ऊपर दबाव बनाकर स्थानीय प्रशासन मनमाने तरीके से काम करता है और हमें कहीं बोलने पर बंदिश लगाता है। आज हम अपनी जिंदगी पर मँडराते खतरे को लेकर आवाज भी नहीं उठा सकते। यहाँ के हालात पर दो साल पहले प्रकाशित ग्राउंड रिपोर्ट पुनः प्रकाशित की जा रही है।

बनारस : सैकड़ों मील दूर से पत्ते तोड़कर लाते हैं ये मुसहर परिवार

बनारस जिले के अनेक मुसहर परिवार अभी भी वनोपजीवी हैं हालाँकि अब उनके ऊपर वन विभाग की बन्दिशें लगातार बढ़ रही हैं। समुचित रोजगार के अभाव में अभी भी मुसहर समुदाय पुर्वांचल के सर्वाधिक पिछड़े और हाशियाई समुदायों में से एक है। अभी बहुत से परिवार दोने-पत्तल बनाकर और लकड़ी काटकर अपनी आजीविका चला रहे हैं। लेकिन अब ये काम भी आसान नहीं रह गए हैं। इस माध्यम से आजीविका कमाने के लिए इनको सैकड़ों किलोमीटर चलकर जंगलों की खाक छाननी पड़ती है। पढ़िये बनारस के पानदारीबा में पत्ते बेचने वाले कुछ परिवारों पर अपर्णा की पूर्व प्रकाशित ग्राउंड रिपोर्ट।

मेहनत करते-करते हाथ की रेखाएं घिस गईं लेकिन हालात में कोई परिवर्तन नहीं हुआ

चौतरफा दमन और दबाव झेलने को विवश है थाना रामपुर का मुसहर समाज  वाराणसी। वह गर्मी से चिलचिलाती दोपहर के बाद की एक आँच फेंकती...

मुसहर समुदाय को नहीं पता वह आदिवासी है कि दलित लेकिन द्रौपदी मुर्मू को अपनी बिरादरी का मानता है

चंदौली जिले की नौगढ़ तहसील के नुनवट गाँव के मुसहर भी दूसरी जगहों के मुसहरों की ही तरह हैं। वे इस बात से खुश हैं कि उनके पास कई प्रकार के कार्ड हैं। लाल कार्ड यानी गरीबी रेखा के नीचे वाला राशन कार्ड, पीला कार्ड यानी आयुष्मान योजना का कार्ड, ई-श्रम कार्ड, जॉब कार्ड आदि। आयुष्मान कार्ड के पीछे लिखे नियम और शर्तों के अनुसार यह कार्ड सरकार द्वारा नामित अस्पतालों में मान्य होगा और इससे पाँच लाख तक के इलाज की सुविधा है। मनरेगा में उन्हें काम मिलता है लेकिन साल भर में कभी भी दो महीने से ज्यादा नहीं मिलता।

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