एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) द्वारा किए गए सर्वे के आधार पर यह सामने आया कि प्राथमिक और पूर्व प्राथमिक विद्यालय के बच्चों की बुनियादी साक्षरता और गणितीय कौशल के स्तर मे सुधार के लिए किए जा रहे प्रयास के परिणाम सही दिशा में आते हुए दिखाई दे रहे हैं। हालांकि यह लक्ष्य बहुत सकारात्मक नहीं है लेकिन सुधार होता दिख रहा है। ‘निपुण भारत मिशन’ जिसकी शुरुआत 5 जुलाई 2021 को हुई थी, तय लक्ष्य पाने में अभी बहुत पीछे है लेकिन जो भी हासिल है उसका श्रेय शिक्षकों को दिया जाना चाहिए।
विद्यालय में बच्चों की पढ़ाई में रुचि पैदा हो इसके लिए अध्यापकों का पूरा ध्यान दिया जाना जरूरी है। लेकिन होता यह है कि सरकारी विद्यालयों में अध्यापकों को पढ़ाने के अलावा अन्य प्रशासनिक कामों की ज़िम्मेदारी सौंप दी जाती है और उसे करने का दबाव बनाया जाता है, जिसकी वजह से अध्यापक काम पूरा करने के लिए बच्चों को दिये जाने वाले समय से कटौती करता है। सरकार को अन्य प्रशासनिक कामों से पूरी तरह मुक्त रखना होगा ताकि बच्चे बच्चे सीखने की उम्र में रुचि के साथ सीख सकें।
सरकार अनेक योजनाओं के साथ डाटा एकत्रित करने की जिम्मेदारी अध्यापकों को सौंपती है। इस वजह से आये दिन सरकारी विद्यालय के अध्यापक सौंपे गए काम के लिए कागजी कार्यवाही में लगे रहते हैं, जिसका सीधा-सीधा असर पढने वाले बच्चों पर पड़ता है। वे विद्यालय तो आते हैं लेकिन पढ़ाई नहीं होती क्योंकि अध्यापक अपने काम में व्यस्त रहते हैं। सबसे ज्यादा नुकसान प्राथमिक कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों का होता है और इस वजह से उनकी नींव कमजोर हो जाती है और पढाई के प्रति अरुचि होने से विद्यालय जाना बंद कर देते हैं। जबकि प्राथमिक कक्षाओं के अध्यापकों का पूरा ध्यान बच्चों पर होना चाहिए।
सरकार शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए गाँव-गाँव में प्राथमिक विद्यालय खोलने पर ज़ोर दे रही है। लेकिन केवल स्कूल खोल लेने से शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ सकता बल्कि शिक्षकों की पर्याप्त नियुक्ति भी जरूरी है। राजस्थान में कक्षा एक से आठ तक के 25 हजार 369 पद खाली पड़े हैं। इनके खाली रहने से पढ़ाई का सबसे ज्यादा असर ग्रामीण बच्चों पर पड़ता है। न उनकी नींव मजबूत हो पाती है न सही से अक्षर ज्ञान ही हो पाता है। इस वजह से स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी होती है।
असर 2023 में, जब 17-18 साल के युवाओं से पढ़ाई छोड़ने का कारण पूछा गया तो पता चला कि लगभग 19% युवाओं का पढ़ाई में मन नहीं था। 18% ने आर्थिक समस्या, 17% ने पारिवारिक समस्या, 8% ने व्यावसायिक प्रशिक्षण में स्थानांतरित होने की वजह से तथा 7% ने औपचारिक शिक्षा संस्थान घर से दूर होने के वजह से पढ़ाई छोड़ी।