भारत में आरक्षण, समाज के सबसे पिछड़े और वंचित समुदाय को मुख्य धारा में शामिल करने की जाति आधारित सकारात्मक कार्रवाई है। भारतीय संविधान के अनुसार केंद्र और राज्य सरकार में सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए शिक्षा, रोजगार और राजनैतिक निकायों में सीटों का प्रतिशत निर्धारित किया गया है। लेकिन मनुवादी व्यवस्था ने वर्ष 2019 में अपने लिए 10 प्रतिशत सुदामा कोटा हासिल कर लिया, जो उनकी आबादी के हिसाब से है लेकिन पिछड़ों को उनकी आबादी के हिसाब से आधा भी नहीं मिला। इसलिए यह मांग की जाती रही है ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।'