Tuesday, December 3, 2024
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Bhadohi : सरकार की अलबेली चाल, न नहर में पानी, न सड़क की व्यवस्था

भदोही जिले के भुर्रा गांव के लोगों का कहना है कि आजादी के बाद से उनके गांव में कोई विकास कार्य नहीं हुआ है. नहर का निर्माण 20 साल पहले हुआ था और पानी केवल एक बार आया था। गांव का संपर्क मार्ग एक नहर से होकर गुजरता है जिसमें गड्ढे ही गड्ढे हैं और बरसात के दिनों में इससे गुजरना बहुत मुश्किल होता है।

जम्मू कश्मीर के पुंछ जिले के कई गाँव अभी भी वंचित हैं सड़क की सुविधा से

भारत एक सुंदर देश होने के साथ-साथ कई छोटी बड़ी समस्याओं से भी उलझा हुआ है। इन समस्याओं में सबसे अहम सड़कों का नहीं...

‘विशेष राज्य’ बनने के 22 वर्ष बाद भी उत्तराखंड में सड़क विहीन हैं कई गाँव

कपकोट (उत्तराखंड)। हमारे देश की अर्थव्यवस्था मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों पर निर्भर करती है। आज भी देश की 74 प्रतिशत आबादी यहीं से है। लेकिन...

‘गड्ढामुक्त’ का सरकारी दावा असलियत में बदहाल सड़कों पर चलना हुआ मुश्किल

लंका से रवीन्द्रपुरी कॉलोनी में थोड़ी ही दूर चलने के बाद आँखों में जलन होने लगती है। मैं गाड़ी रोककर आँख साफ कर ही...

रक्तपथ बनते जा रहे हैं पहाड़ के रास्ते, सैकड़ों मौतें होती हैं हर साल

भारत में प्रति वर्ष जितने लोग विभिन्न बीमारियों के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं, तक़रीबन उतनी ही संख्या में सड़क दुर्घटनाओं...

राम का नाम भी नहीं आया काम, नौ साल से सड़क बनाने के लिए जारी है संघर्ष

गाजीपुर जिले की सिधौना बाज़ार की मुख्य सड़क पिछले 8-10 वर्षों से उपेक्षा की शिकार रही है। उत्तर प्रदेश की वर्तमान बीजेपी की सरकार भले ही बारिश शुरू होने से पहले सडकों को गड्ढा मुक्त करने का फरमान जारी करती है लेकिन गड्ढा मुक्ति का उसका अभियान अभी फेल ही नजर आ रहा है।

गांव को शहर बनाती सड़क

जबसे पक्की सड़क बनी है, तब से कई समस्याएं सुलझ गई हैं। अब गांव की किशोरियां भी आराम से स्कूल और कॉलेज आना-जाना कर लेती हैं। यदि किसी कारणवश कॉलेज से आने में लेट भी हो जाती है तो सड़क से गुजरने में जहां हमें कोई डर नहीं रहता है, वहीं अभिभावक भी हमारी सुरक्षा को लेकर कम चिंतित होते हैं। अब कोई भी, किसी भी समय इस सड़क से गुज़र सकता है।

ज़िंदगी के नए और अनजान इलाकों तक ले जाती सिनेमा की सड़कें

साहित्य में यात्रा वृतांत लेखन एक अलग धारा के रूप में स्थापित है। साहित्य की भांति सिनेमा में भी ट्रैवल सिनेमा एक महत्वपूर्ण जेनर...

टूटी सीढ़ियों पर ख्वाबों के पंख लगाकर चल रहे हैं लोग

लाखों की संख्या में यहाँ लोग रहते हैं। हिन्दू, क्रिश्चियन के साथ अच्छी संख्या मे मुस्लिम आबादी भी यहाँ है। यहाँ के ज्यादातर लोग मध्यवर्गीय या निम्न मध्यवर्गीय समाज से हैं। यह वह समाज है जो एडजस्ट करने का हुनर पेट से लेकर ही पैदा होता है। पानी की सप्लाई लाइन बिछी हुई है पर पानी कभी-कभार ही आता है। जिसकी वजह से पानी यहाँ का सबसे बड़ा बिज़नस बना हुआ है। घरेलू कामों के लिए टैंकर से पानी का व्यापार चल रहा है तो प्यास बुझाने के लिए प्यूरीफाई पानी बोतलों में बंद कर बेंचा जा रहा है। शायद दुर्भाग्य ही है कि यहाँ के लोगों को अभी कोई ऐसा नेता नहीं मिला है जो इनके हित में संघर्ष कर सके।

फाइलों में कैद रोड साइड लैंड कंट्रोल एक्ट, बढ़े अतिक्रमण

वाराणसी। सड़कें विकास की पहली सीढ़ी होती हैं, लेकिन आज के दौर में शासन और प्रशासन की उदासीनता के चलते विकास के इस प्रतीक...

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