Tuesday, July 2, 2024
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सात बहनों का एक राज्य मेघालय है झीलों और बादलों का घर

वैसे तो पूरी धरती प्राकृतिक सुंदरता से भरी हुई है लेकिन भारत में जब प्राकृतिक सुंदरता की बात आती है तो उत्तर-पूर्वी राज्यों की याद जेहन में जरूर आती है। चाहे अरुणाचल प्रदेश हो या मिज़ोरम या फिर मेघालय। यहाँ की सुंदरता  पहाड़, नदी, झील और जंगलों से है। बाकी जगहों से यहाँ पहुँचना थोड़ा मुश्किल जरूर है लेकिन जाने के बाद वापस आने का मन नहीं होता। विनय कुमार ने मेघालय यात्रा वृतांत भेजा है, पाठक पढ़ते हुए वहाँ पहुँचकर आनंद उठा सकते हैं। 

वैसे तो घूमने के लिए जो जगह अमूमन लोगों के जेहन में आते हैं उनमें से पूर्वोत्तर के कुछ जगहों का नाम रहता ही है और अगर पहाड़ और ठंडक के लिए आप सोचें तो शिलांग (मेघालय), तवांग (अरुणाचल प्रदेश) और आइज़वाल (मिजोरम) सबसे बेहतर जगहों में से एक हैं। अब हम तो गुवाहाटी में हैं तो हमारे लिए सबसे नजदीक और सबसे बेहतर जगह मेघालय ही है जहाँ न सिर्फ शिलांग के पहाड़ और झरने हैं बल्कि चेरापूंजी भी हैं जो एक समय में सर्वाधिक वर्षा के लिए पूरी दुनियाँ में मशहूर था (अब यहाँ बरसात थोड़ी कम हो गई है)। साथ ही साथ डावकी नाम की एक ऐसी नदी है, जिसका पानी लगभग साल के छह महीने तक पारदर्शी रहता है और उसमें नौकायन करते हुए आप उस नदी की तलहटी साफ़ साफ़ देख सकते हैं। और एक और बहुत मशहूर जगह है मेघालय में जो कि एशिया का सबसे स्वच्छ गाँव है मावलोंग और वहाँ जाकर यह यक़ीन करना कि यह गाँव हिन्दुस्तान में ही है, थोड़ा मुश्किल होता है। मेघालय का मतलब है ‘मेघों का देश’ यानी जहाँ बादल निवास करते हों और पूरे मेघालय में आपको जगह जगह आभास होगा कि यहाँ बदल सचमुच में निवास करते हैं। मेघालय में तीन मुख्य जनजाति पायी जाती हैं, खासी, जयंतिया और गारो। ये खासी हिल्स, जयंतिया हिल्स और गारो हिल्स में पाए जाते हैं। इनके यहाँ महिलाओं को हर तरह की आज़ादी है और ये परिवार की मुखिया होती हैं।

शिलांग जाने के लिए गुवाहाटी से तो सिर्फ 2-3 घंटे ही लगते हैं लेकिन अगर आपको हिन्दुस्तान के किसी अन्य कोने से शिलांग आना है तो आप वायु मार्ग से या ट्रेन से पहले गुवाहाटी आ सकते हैं, फिर उसके बाद सड़क मार्ग से शिलांग पहुँच सकते हैं। वैसे शिलांग में भी एक छोटा हवाई अड्डा है जहाँ आप सीधे जहाज से भी पहुँच सकते हैं लेकिन वहाँ काफी कम हवाई जहाज आते हैं इसलिए बेहतर यही है कि आप पहले गुवाहाटी आइये और फिर सड़क मार्ग से शिलांग चले जाइये। वैसे अगर आप और ज्यादा रोमांच चाहते हैं तो गुवाहाटी से शिलांग के लिए हेलीकाप्टर सेवा भी है जो रविवार के अलावा सभी दिन चलती है। वैसे कभी कभी अगर जाने वाले कम हैं या मौसम खराब है तो यह नहीं भी चलती है इसलिए अगर आपकी किस्मत अच्छी है तो आप इसका भी आनंद उठा सकते हैं और यह बहुत महंगी भी नहीं है।

शिलांग एक समय में असम की राजधानी हुआ करती थी लेकिन बाद में यह मेघालय की राजधानी बन गई और असम के लोगों के लिए एक दूसरे प्रदेश की ठंडी पहाड़ी जगह (हिल स्टेशन) बन गई। वैसे तो शिलांग में ही इतनी जगहें हैं जिन्हें देखने के लिए आपको पूरा दिन भी कम पड़ जाएगा लेकिन अगर आप सड़क मार्ग से शिलांग जा रहे हैं तो लगभग 30 किमी पहले ही एक बेहद ख़ूबसूरत और शांत झील आपके सामने आती है जिसे देखे बगैर आप आगे नहीं बढ़ सकते। इस झील का नाम उमियम झील है (इसे बड़ा पानी भी कहते हैं) और यह चारो तरफ पहाड़ों से घिरी हुई है और इसका पानी साफ़ है जिसके चलते आप यहाँ नौकायन किये बगैर रह नहीं सकते। वैसे तो आप जैसे ही गुवाहाटी से आगे बढ़ते हैं और मेघालय में प्रवेश करते हैं, पहाड़ आप के साथ साथ चलने लगते हैं और सड़क सांप की तरह बल खाते हुए आगे बढ़ती है। चारो तरफ की हरियाली आपको मंत्रमुग्ध कर देती है लेकिन अगर आपको यात्रा में उल्टी होने की दिक्कत है तो आपको इस रास्ते पर जाने के पहले दवा ले लेनी चाहिए। यह झील उमियम नदी पर बने बाँध, जो 1960 के आसपास बना था, के चलते बनी है और यहाँ पर झील के किनारे किनारे आप सुकून के साथ घंटों टहल सकते हैं और अपनी आँखों को इस ख़ूबसूरत नज़ारे से ठंडक पहुंचा सकते हैं। यहाँ जल क्रीड़ा के लिए भी अनेक साधन उपलब्ध हैं जिसका आप लाभ उठा सकते हैं। पास में ही बढ़िया होटल हैं जहाँ जलपान से लेकर बेहतरीन भोजन का आनंद भी आप उठा सकते हैं।

उमियम झील पर कुछ घंटे बिताने के बाद जब आप आगे बढ़ते हैं तो फिर वही बल खाती सड़क आपको शिलांग की तरफ ले जाती है जिसके चारों तरफ की हरियाली आपका मन मोह लेती है। वैसे अगर आप सप्ताहांत में शिलांग जा रहे हैं तो उमियम झील से आगे बढ़ते ही आपको सड़क पर इतने वाहन मिलेंगे कि आप चाहकर भी तेजी आगे नहीं बढ़ सकते। खैर यह तो अब सभी पहाड़ी जगहों के साथ होने लगा है कि वहाँ इतनी गाड़ियां पहुँच रही हैं कि ट्रैफिक बिलकुल रेंगकर आगे बढ़ता है और अगर आप जल्दी में हैं तो यह जाम आपका रक्तचाप भी बढ़ा सकता है।

शिलांग पहुँचने पर वहाँ पर बहुत सी जगहें आपको बुलाएंगी। अगर आपको वाटर फॉल पसंद हैं तो एलिफेंट वाटर फॉल शहर में ही है और वहाँ तीन वाटर फॉल आपको देखने को मिलेंगे। आपको थोड़ा नीचे तक जाना पड़ेगा जहाँ आपको आखिरी वाटर फॉल मिलेगा और उसके दूसरे तरफ हरियाली भी मिलेगी। वैसे तो एक ही वाटर फॉल है लेकिन तीन अलग अलग जगहों से आपको इसे देखना पड़ता है जिसके चलते लगता है जैसे तीन हों। वहां आप चाहे तो मेघालय के पारम्परिक वस्त्र पहनकर तस्वीरें खिंचवा सकते हैं और जिंदगी भर के लिए यादें संजो सकते हैं। एक दो घंटे यहाँ बिताकर आप आसपास की जगहों की तरफ रुख कर सकते हैं और एक और झील ‘वर्ड लेक’ में आप घूमते हुए घंटों बिता सकते हैं। अगर आप मई जून में यहाँ आते हैं तो इस झील के चारो तरफ बने पार्क में जकरण्डा के फूलों से लदे पेड़ आपको खूब नज़र आएंगे और जो आपको एक अलग ही दुनियाँ में ले जाएंगे। यहाँ से निकलने के बाद आप के लिए शिलांग व्यू पॉइंट भी एक ऐसी जगह है जिसे आप छोड़ नहीं सकते और आपको यहाँ भी जरूर जाना चाहिए. यहाँ आपकी टैक्सी आखिरी पॉइंट तक नहीं जाती है और चूँकि यह मिलिट्री क्षेत्र में आता है तो यहाँ पर अलग टैक्सी सर्विस चलती है जो आपको दस मिनट में व्यू पॉइंट तक ले जायेगी। टैक्सी स्टैंड पर स्थानीय खाने पीने की चीज खूब मिलती है जो बहुत स्वादिष्ट होती है और आप वहाँ मौजूद तमाम लोगों के साथ इसका भरपूर आनंद उठा सकते हैं। बारी-बारी से टैक्सियां आती हैं और लोग उसमें सवार होकर व्यू पॉइंट तक जाते हैं और किसी भी टैक्सी में सवार होकर वापस आ जाते हैं। अमूमन मारुति आल्टो या 800 यहाँ पर टैक्सी के रूप में मिलती है और यहीं नहीं, पूरे मेघालय में यह सबसे ज्यादा टैक्सी के रूप में इस्तेमाल होती है। यहाँ भी आपको पारम्परिक वस्त्र पहन कर फोटो खिंचवाने का अवसर मिलता है और यहाँ पर ऊँचाई से आप शिलांग की खूबसूरती को भरपूर देख सकते हैं।

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शिलांग में एक संग्रहालय भी मौजूद है जिसका नाम ‘डॉन बास्को म्यूजियम’ है जो चार फ्लोर में बना है और यहाँ पूरे पूर्वोत्तर की संस्कृति को आप देख सकते हैं। सबसे ऊपर जाकर आप पूरे शिलांग का नयनाभिराम दृश्य भी देख सकते हैं। शिलांग के पास में ही स्थित लाइटलुम है जो बेहद ख़ूबसूरत स्थान है और इसे आप पहाड़ों का आखिरी पॉइंट समझ सकते हैं। यहाँ से आप हरे भरे पहाड़ के साथ साथ गहरी वैली, जिसमें गाँव दिखाई पड़ते हैं, देख सकते हैं और अगर आप यहाँ मानसून में जाते हैं तो बादलों से भी खिलवाड़ कर सकते हैं। यहाँ का सूर्यास्त आपको जिंदगी भर के लिए याद रह जाएगा क्योंकि इसका नजारा बेहद ख़ूबसूरत होता है।

अगर आपने सुबह गुवाहाटी से यात्रा प्रारम्भ किया है तो इतनी जगह घूमते हुए आपको शाम हो जाएगी और चूँकि पूर्वोत्तर में सुबह जल्दी (4 बजे) हो जाती है तो शाम भी जल्दी हो जाती है। अब आपके पास एक ही विकल्प बचता है और वह है रात में यहाँ के सबसे मशहूर बाजार ‘पुलिस बाजार’ घूमने का। यह बाजार रात में बेहद ख़ूबसूरत लगता है क्योंकि रोशनी में अक्सर चीजें चमकने लगती हैं। मेघालय या पूरे पूर्वोत्तर की ही खाशियत है कि यहाँ पर महिलाएं अक्सर दुकान संभालती हैं और कुछ राज्य जैसे मणिपुर में तो महिलाओं द्वारा संचालित पूरा बाजार ही है जो पूरे एशिया में सबसे बड़ा माना जाता है। शिलांग में भी पुलिस बाजार की अधिकांश दुकानें महिलाओं द्वारा ही संचालित होती हैं और उत्तर भारतीय या मध्य भारत की लोगों की लिए यह किसी अजूबे से कम नहीं होता है। यहाँ तमाम तरह के स्थानीय फल, सब्जियां, कपड़े, ऊनी वस्त्र और अन्य सामग्री मिलती हैं जिन्हें आप अपनी जरुरत के हिसाब से खरीद सकते हैं। एक गिरजाघर भी है जो खूब बड़ा है और साथ में छोटा सा पार्क भी जहाँ आप टहल कर घंटो समय बिता सकते हैं। बस अगर आप शाकाहारी हैं तो एक समस्या आपको आ सकती है कि शाकाहारी भोजन उतने आसानी से नहीं मिलता है जितनी आसानी से मांसाहारी भोजन. दरअसल पूरा पूर्वोत्तर शाकाहार के बदले मांसाहार पसंद करता है और पूर्ण शाकाहारी लोगों को तमाम दुकानों पर लटके हुए मृत जानवरों को देखकर दिक्कत आना स्वाभाविक ही है लेकिन यहाँ पर ये दृश्य आम हैं। पुलिस बाजार में घूमने के बाद आप किसी भी रेस्तरां में अपनी पसंद के लिहाज़ से भोजन कर सकते हैं और फिर उसके बाद होटल में रात्रि विश्राम करके आप अगली सुबह की यात्रा के लिए तरोताज़ा हो लीजिये।

अगले दिन सुबह के नाश्ते के बाद आप दो जगहों में से किसी एक जगह को चुन सकते हैं, या तो दुनियाँ के सबसे ज्यादा बरसात वाली जगह ‘चेरापूंजी’ या भी एशिया का सबसे स्वच्छ गाँव ‘मावलोंग’।  दोनों की दूरी शिलांग से लगभग बराबर ही है लेकिन कुछ आगे बढ़ने के बाद दोनों के रास्ते अलग हो जाते हैं। वैसे तो कुछ लोग जिनके पास समय की कमी होती है, वो एक दिन में ही दोनों जगहों को जल्दी जल्दी देख लेते हैं लेकिन बेहतर यही होता है कि आप दोनों जगहों के लिए कम से कम एक एक दिन जरूर रखिये। दरअसल शिलांग से आगे बढ़ने पर रास्ता अभी भी उतना अच्छा नहीं है जितना गुवाहाटी से शिलांग वाला रास्ता, बीच में कच्चा रास्ता भी है जो बरसात के दिनों में दिक्कत पैदा करता है। लेकिन विडंबना यह है कि बरसात के मौसम में ही चेरापूंजी सबसे बढ़िया लगता है जब चारो तरफ हरियाली के साथ साथ तमाम झरने कल कल बहते नज़र आते हैं। दोनों जगहों में आजकल तमाम होमस्टे खुल गए हैं जहाँ आप कम कीमत में मजे में सपरिवार रह सकते हैं और सुकून महसूस कर सकते हैं।

शिलांग से आगे बढ़ने पर कुछ किलोमीटर बाद रास्ता खराब मिलना शुरू होता है तो आपकी गति थोड़ी कम हो जाती है। लेकिन अगर आप जून जुलाई में इधर आते हैं तो चारो तरफ फैली हरियाली आपका मन मोह लेती है। कुछ आगे जाने पर अगर आप एशिया के सबसे स्वच्छ गाँव मावलोंग के लिए आगे बढ़ते हैं तो आप वहाँ के अलावा एक और बेहद ख़ूबसूरत नदी डावकी को भी देख सकते हैं जहाँ का पानी इतना पारदर्शी है कि आप ऊपर नाव में बैठकर नीचे तलहटी को साफ़ साफ़ देख सकें। बस अच्छी बारिश शुरू होने के पहले ही आपको यह नजारा देखने को मिलेगा क्यूंकि बरसात में नदी का पानी थोड़ा मटमैला हो जाता है जिससे नीचे साफ़ दिखाई नहीं देता है।

मावलोंग गाँव के 10 किमी पहले से ही घुमावदार सड़क मार्ग शुरू हो जाती है जिसके चारो तरफ पेड़ और हरियाली मौजूद रहती है। गाँव के ठीक बाहर आप अपनी गाड़ी पार्क करके टिकट लेकर अंदर जा सकते हैं और फिर आपको वह नजारा दिखता है जिसपर वहाँ गए बिना भरोसा करना लगभग नामुमकिन सा है। गाँव के अंदर सड़कें इतनी चमकती हुई और साफ़ हैं कि अगर आपके हाथ में कुछ भी है जिसे आप फेकना चाहते हैं तो आप उसे सिर्फ कूड़ेदान में ही फ़ेकने को मजबूर होंगे। कहीं भी आपको गन्दगी नज़र नहीं आएगी, एक कागज का टुकड़ा भी सड़क पर नज़र नहीं आएगा और घर भी आपको बिलकुल साफ़ सुथरे दिखाई पड़ेंगे। यह सारा मावलोंग गाँव के लोग मिल-जुलकर करते हैं और इस बात का ध्यान रखते हैं कि वहाँ आने वाला अतिथि भी इस बात का पूरा ख्याल रखे। गाँव में कई होम स्टे हैं जहाँ आप आराम से एक दो दिन रुक सकते हैं और वहाँ के वातावरण का पूरा लुत्फ़ उठा सकते हैं। गाँव में आपको रेस्त्रा भी मिलेंगे जहाँ आप वहाँ का स्थानीय खाना भी खा सकते हैं। होम स्टे में भी आपको आपकी इच्छानुसार स्थानीय भोजन मिल सकता है। वैसे तो आप पूरे गाँव को आराम से तीन चार घंटे में घूम सकते हैं लेकिन अगर आप वहाँ एक रात रुकते हैं तो फिर आप गाँव में कई बार घूम सकते हैं। गाँव में एक पेड़ के ऊपर मचान बना हुआ है जिसपर चढ़कर आप बांग्लादेश की सीमा को भी देख सकते हैं और वहाँ पर फोटोग्राफी भी कर सकते हैं। वैसे तो आप इस गाँव में जाकर चाहे हजारो फोटो खींच लें, आपका मन नहीं भरने वाला है। पूरे गाँव में आपको हर तरफ एक से बढ़कर एक ख़ूबसूरत फूलों के पेड़ दिखाई देंगे और बैठने के लिए छोटे-छोटे पार्क भी हैं जहाँ आप थोड़ा सुस्ता सकते हैं।

रात यहाँ बिताने के बाद आप सुबह जल्दी ही डावकी नदी के लिए निकल लीजिये जिसका रास्ता भी घुमावदार और हरियाली से भरा है। कुछ किमी आगे जाने के बाद आपको बांग्लादेश की सीमा के साथ साथ जाती सड़क मिलेगी जो तारबंदी से भारत और बांग्लादेश को अलग करती है। आप सड़क पर खड़े होकर बांग्लादेश के चेक पोस्ट को देख सकते हैं और वहाँ के आसपास तस्वीरें भी ले सकते हैं। आपको सीमा के दोनों तरफ बिलकुल एक जैसा ही दिखेगा, खैर पहले तो दोनों एक ही थे जो बाद में अलग हुए। आगे बढ़ने पर रास्ता खराब मिलेगा और आप धीरे-धीरे डावकी नदी के पास पहुँच जायेंगे।

सड़क के ऊपर से ही आपको नदी पर तैरती सैकड़ों नाव नज़र आएँगी और ऊपर सड़क पर ही कोई न कोई नाव वाला आपको पकड़ लेगा जो आपको अपनी नाव में सैर कराएगा। एक नाव आपको लगभग 1200 रुपये में नदी की सैर करा देगी और वहाँ आपको खाने पीने के लिए भी मिल जाएगा। जब आप ऊपर सड़क से नदी के लिए नीचे उतारते हैं तो एक नज़र में आपको यह एक सामान्य नदी ही नज़र आती है जहाँ पर आप नौकायन कर सकते हैं और साफ़ पानी से नीचे देख सकते हैं। लेकिन जब आप नदी के किनारे से नदी के दूसरे छोर को देखते हैं तो आपको पता चलता है कि नदी के उस पार हिन्दुस्तान नहीं है बल्कि बांग्लादेश है और बीच में कोई दीवार भी नहीं है। मतलब यह नदी ही दोनों देशों को अलग करती है और इस पार हिन्दुस्तानी लोग नौकायन करते हैं तो उस पार बांग्लादेशी लोग. दोनों तरफ के नाव वाले अपनी सीमा में ही नाव चलाते हैं और आप नदी में घूमते हुए दोनों देशों को देख सकते हैं। भारतीय सीमा की तरफ तो आपको नदी के आसपास कोई सीमा सुरक्षा संगठन का सिपाही भी शायद ही नज़र आएगा लेकिन उस तरफ बांग्लादेश के सिपाही आपको नज़र आ जायेंगे।

जैसे ही आप नदी में किसी नाव पर सवार होकर आगे बढ़ते हैं, सबसे पहले तो आपको नीचे तलहटी भी साफ़ साफ़ नज़र आएगी और आप बहुत देर तक आसपास बहने वाली नावों को देखकर चकित होंगे। आप सामने तैरती हुई नाव के नीचे के पानी को देख पाएंगे और यह नजारा बेहद आकर्षित करने वाला होता है। इसकी तस्वीर लिए बिना आप नहीं रह सकते और जैसे ही आप थोड़ा आगे बढ़ते हैं तो चारो तरफ चट्टानों से घिरी नदी आपका मन मोह लेगी। नदी के ऊपर से गुजरता हुआ पुल आप नीचे से देखंगे तो रोमांच भर आएगा। थोड़ा घूमकर जब आप वापस लौटेंगे तो नाव नदी के उस तरफ से आएगी जो चट्टान के बिलकुल करीब से गुजरेगी। ऊपर से गिरते हुए पानी के चलते आप चाहें तो पानी में भीग भी सकते हैं और नदी के इस तरफ एक जगह आपको कैंप करने के लिए भी टेंट मिल सकते हैं। फिर नाव बांग्लादेश के सीमा के पास से आपको लेकर वापस आएगी और इस दरम्यान बिताये हुए एक घंटे में आपको लगेगा कि वक़्त कितना जल्दी गुजर गया। काश थोड़ी और समय यहाँ बिताने के लिए मिलता। आप नदी में इस किनारे नहा भी सकते हैं और नदी के उस तरफ भी आपको नौकायन करते और नहाते हुए तमाम पर्यटक नज़र आएंगे।  खैर यहाँ से आपको जाने की इच्छा तो नहीं होगी लेकिन चूँकि आपके पास समय सीमित होता है इसलिए यहाँ से आगे बढ़ना ही होगा।

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डावकी नदी से लगभग 11 किमी दूर एक जीवित रुट ब्रिज है जो यहाँ के दर्शनीय स्थानों में से एक है। डावकी से आप आधे घंटे में यहाँ पहुँच सकते हैं और फिर एक बार आप प्रकृति के एक अजूबे से दो चार होंगे। जीवित रुट ब्रिज पूर्वी खासी पहाड़ी में रहने वाले खासी जनजातियों के प्रकृति से अनोखे जुड़ाव को दर्शाता है जिसमे पुल का निर्माण पेड़ों के जड़, तने और टहनियों से होता है। इस क्षेत्र में इस प्रकार के कई पुल पाए जाते हैं। इस पुल के ऊपर से आप टहल सकते हैं जिसके नीचे से जलप्रपात का पानी बहता रहता है और आप घंटों इस अद्भुत दृश्य को निहार सकते हैं।

शिलांग से लगभग 50 किमी दूर एक और विश्वप्रसिद्ध रमणीक और बेहद खूबसूरत जगह चेरापूंजी है जो एक समय में दुनिया में सबसे ज्यादा बरसात के लिए जाना जाता था और हर छात्र ने भूगोल या सामान्य ज्ञान के विषय में इस जगह के बारे में अवश्य पढ़ा होगा। अगर आप बरसात के मौसम में, यानी जून से सितम्बर में यहाँ जाते हैं तो आपको इतना बेहतरीन अनुभव होगा जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। आप बिलकुल बादलों के बीच में चहलकदमी कर सकते हैं और आप उनको अपनी मुट्ठी में कैद करने की असफल कोशिश भी कर सकते हैं। लेकिन इस समय आपको एक मुश्किल भी आ सकती है कि आप तमाम जलप्रपात शायद अपनी आँखों से नहीं देख पाएंगे क्यूंकि बादलों के चलते वे आपको नजर ही नहीं आएंगे. इसलिए अक्टूबर में अगर आप जाते हैं तो न सिर्फ कई जगह आप बादलों के साथ टहल सकते हैं बल्कि आपको तमाम जलप्रपात भी बेहद खूबसूरती से बहते हुए नजर आएंगे। शिलांग से चेरापूंजी जाने के लिए अमूमन लोग सबसे पहले सेवन सिस्टर्स जलप्रपात देखने जाते हैं जो सबसे मशहूर और दर्शनीय है तथा चेरापूंजी को इसको देखे बिना महसूस नहीं किया जा सकता. यह सात झरनों का समूह है जो हरे भरे पहाड़ों से नीचे गिरता है। इनका नाम पूर्वोत्तर के सात प्रदेशों के ऊपर पड़ा है और यह प्रकृति का अद्भुत निर्माण है जो चारो तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है। इसको देखने के लिए कई व्यू पॉइंट बने हुए हैं और पर्यटक इसको नीचे जाकर भी देख सकते हैं, बशर्ते पानी नहीं बरस रहा हो।

सोहरा के आसपास ऐसे तमाम जल प्रपात हैं जिनको देखने के लिए आपको पूरा दिन चाहिए। सेवन सिस्टर्स के अलावा नोहकलिकाई जल प्रपात भी है जो बेहद खूबसूरत है और जो हिन्दुस्तान का सबसे लम्बा जल प्रपात है और जिस जगह पर इसका पानी गिरता है वह जगह बिलकुल हरी दिखाई देती है। बरसात के समय जब पहाड़ भी हरियाली से ढंके होते हैं और झरने का सफ़ेद पानी उसपर से गिरता है तो समूचा दृश्य बेहद मनोरम हो जाता है। आप यहाँ मौजूद व्यू पॉइंट पर घंटों बैठ सकते हैं और इसके चारो तरफ के क्षेत्र को घूमकर देख सकते हैं. बरसात में यहाँ स्थानीय लोगों की दुकानें खूब चलती हैं जहाँ आप भुट्टा, चाय, मैगी और पकोड़े इत्यादि का आनंद ले सकते हैं।

इसके पास में ही मॉस्मई गुफा है जहाँ आप गुफा के अंदर से घुसकर दूसरी तरफ निकल सकते हैं। गुफा बेहद संकरी है और ज्यादे तंदुरुस्त लोग अंदर नहीं जा सकते हैं लेकिन आस पास टहल सकते हैं। यह भी चेरापूंजी का एक दर्शनीय स्थान है और यहाँ भी खूब पर्यटक आते हैं।

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यहाँ से एक और जलप्रपात कीनरेम जाने के रास्ते में बांग्लादेश की सीमा पड़ती है और अगर उस समय बादल छाये हों तो ऐसा लगता है जैसे सामने कोई और देश नहीं है बल्कि बादलों का प्रदेश है. बदल नहीं रहने की अवस्था में आपको दूर बांग्लादेश नजर आता है जो कहीं से भी कुछ अलग नहीं लगता है। कीनरेम जलप्रपात का रास्ता बेहद खूबसूरत है और पहाड़ों के बीच से होकर गुजरता है जहाँ से बरसात में तमाम झरने बहते दिखाई देते हैं। यह जलप्रपात भी हिन्दुस्तान के लम्बे जलप्रपातों में से एक है और तीन स्तर पर इसका पानी गिरता हुआ दिखाई देता है. यहाँ पर पर्यटक आसानी से पानी में जाकर जलक्रीड़ा कर सकते हैं और घंटों समय बिता सकते हैं।यहाँ पर इको पार्क भी है जहाँ आप मजे में घूमकर समय बिता सकते हैं।

यहाँ के आकर्षण में एक गाँव मावसिनराम भी है जो चेरापूंजी से लगभग 15 किमी दूर है. यह गाँव यहाँ का सबसे नम जगह कहा जाता है जहाँ पूरे बरसात भर खूब सारा पानी बरसता है। यहाँ के घरो की दीवार पर मोटी घास की परत चढ़ाई जाती है जिससे इसके अंदर रहने वाले लोग आवाज के शोर से बच सकें।

चेरापूंजी के पास खासी मोनोलिथ हैं जहाँ खासी कबीले के मृत लोगों की याद में पत्थर खड़े हैं। ये भी आपको चेरापूंजी के आसपास कई जगह देखने को मिल जाएंगे और आपको इतिहास की झलक दिखाई देगी। इसके अलावा भी यहाँ कई दर्शनीय स्थल हैं जो कम मशहूर हैं लेकिन अगर आपके पास समय है तो आप घूम सकते हैं. लेकिन एक बात तो तंय है कि आप जब यहाँ से वापस अपने प्रदेश जाएंगे तो इस जगह को शायद ही कभी भूल पाएंगे.

गाँव के लोग
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