पानी मनुष्य की सबसे बुनियादी जरूरतों में से एक है। इसके बिना एक दिन भी जीना असंभव है लेकिन पानी की कहानी हर कहीं अलग-अलग है और इसके पीछे लोगों की सामाजिक और आर्थिक हैसियत बहुत बड़ी चीज है। इसका एक उदाहरण भदोही जिले से लगते वाराणसी जिले के सीमावर्ती गाँव नहवानीपुर में देखने को मिला। इस गाँव में पानी की ऐसी-ऐसी कहानियां हैं जो बताती हैं पानी के दावे और योजनाओं के बीच वंचित समुदायों की ऐसी त्रासदियाँ भी हैं कि उनके लिए पानी अभी भी एक मुश्किल सपने जैसा है।
यही नहीं, इस गाँव में हर घर नल जल पहुँचानेवाली कम्पनी लार्सन एंड टूब्रो के कर्मचारी ने दावा किया कि गाँववाले पानी चुरा रहे हैं। उन्होंने कुछ वीडियो भी उपलब्ध कराये जहाँ पानी की पाइप काटकर खेतों और तालाबों में पानी भरा जा रहा है। इस बारे में जब गाँववालों से पूछा गया तब उन्होंने सिरे से इनकार कर दिया। जबकि वीडियो में पाइप काटकर पानी ले जाया जा रहा लेकिन (गाँव के लोग इस वीडियों के सही होने की पुष्टि नहीं करता।) इस क्रम में जब गाँव में लोगों से मिलकर बात की गई तब इस गाँव की एक अजब कहानी सामने आई।
हर घर नल जल के दावे के बीच नट बस्ती को पानी का इंतज़ार
साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बड़े जोर-शोर से हर घर नल-जल योजना की शुरुआत की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि वर्ष 2024 तक हर घर में नल से साफ पानी पहुंचेगा। अर्थात इस वर्ष 2024 तक गाँव-गाँव में हर घर नल से पानी पहुँच जाएगा। पूर्वांचल के अनेक जिलों के गाँवों में जब हमने सर्वे किया तो पता चला कि नल तो लगे हुए हैं लेकिन टोंटी खोलने पर पानी की जगह हवा निकल रही है। फ़िलहाल नल जल योजना के बारे में इससे अधिक उपलब्धि की बात कहीं से सामने नहीं आई है।
ऐसा ही एक गाँव है वाराणसी जिले के कपसेठी थाने में पड़नेवाला नहवानीपुर, जहाँ की नट बस्ती में 30-35 परिवार रहते हैं और इनकी आबादी 200 से 250 के बीच है। इस बस्ती में घरों के आगे नल लगे दिखाई देते हैं। इनमें पानी आने के विषय में पूछने पर गाँव वालों ने बताया कि 2 साल लगे हुए हो गया लेकिन अभी एकाध बार ही पानी आया है। उसमें से भी मुश्किल से एक-दो घरों में बूंद-बूंद पानी आया होगा। बाकी नलके वैसे ही सूखे खड़े हैं।
इस बस्ती के हबीब ने बताया कि ‘दो-ढाई वर्ष पहले नल लग गए थे और पानी का कनेक्शन भी जमीन के भीतर से किया गया है लेकिन इसमें आज तक कायदे से पानी नहीं आया। पूरी बस्ती में एक-दो बार किसी नल में पानी आया होगा वह भी बमुश्किल एकाध बाल्टी। पानी की बहुत दिक्कत है। सरकार इतनी योजना लागू करती है लेकिन हम लोगों तक नहीं पहुँच पाती, क्योंकि हमें मिलने वाली सुविधाओं के लिए न तो प्रधान को कोई मतलब है न सरकारी अधिकारियों को।’
आप लोग पानी की जरूरत कैसे पूरी करते हैं? इस सवाल पर सांप दिखाकर जीविका कमाने वाले बैतल ने बताया कि ‘इस बस्ती में दो चापाकल लगा हुआ है। एक किसी का व्यक्तिगत और दूसरा प्रधान द्वारा लगवाया सार्वजनिक चापाकल। उसी से बस्ती के 200-250 लोगों की पानी की जरूरत पूरी होती है। लेकिन सार्वजनिक चापाकल से निकलने वाले पानी में रेत भी निकलती है। इसी पानी का उपयोग पीने और खाना पकाने के लिए भी किया जाता है। इससे तो स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा?, मैंने पूछा तो इस पर उन्होंने कहा कि ‘तब क्या करें? आसपास पानी के लिए कोई और सुविधा नहीं है। इसी से काम चलाना मजबूरी है। हर काम के लिए पानी की जरूरत होती है। सुबह एकाध घंटे तो बहुत रेत गिरती है। जब पानी का सबसे ज्यादा काम होता है। दिन में थोड़ी कम लेकिन रेत हर बार निकलती है।’
रेत निकलने की जानकारी जब प्रधानपति को दी गई तो उन्होंने कहा कि ‘इसके लिए हम क्या कर सकते हैं? यदि खराब हो जाए तो उसे ठीक करवाने का काम हमारा है लेकिन पानी खराब आ रहा है तब उसके लिए कुछ नहीं किया जा सकता।’
यह भ्रष्टाचार की स्पष्ट मिसाल है। जब नट बस्ती का एकमात्र चापाकल यदि खराब हो जाता है, तब प्रधानपति बनवाते तो हैं लेकिन मजदूरी नट बस्ती को चुकाना पड़ता है। जबकि ग्राम पंचायत द्वारा लगाए गए सार्वजनिक चापाकल के खराब होने पर उसकी मरम्मत करवाने का काम भी ग्राम पंचायत का होना चाहिए। नट बस्ती के लोगों की जरूरत होने पर वे मजदूरी चुका देते हैं। उनका कहना है कि ‘यदि पैसे देने का विरोध करेंगे तो उतना काम भी नहीं होगा।’
नट बस्ती आबादी की ज़मीन पर बसी हुई है और उसके पास अपने घर के अलावा किसी प्रकार की ज़मीन नहीं है। उनके पास पानी का कोई भी अन्य विकल्प नहीं है। लेकिन नल जल योजना का पानी न आने के पीछे क्या कारण हो सकता है?
इस विषय पर मैंने ग्राम प्रधान से दरियाफ़्त करने के लिए फोन किया। फोन पर करने पर गाँव की महिला प्रधान से बात नहीं हुई बल्कि उनके पति मंगल प्रसाद बिन्द ने बात की क्योंकि प्रधानपति के रूप वही सारा काम संभालते हैं।
नल में पानी न आने की बात पर प्रधानपति मंगल प्रसाद बिन्द ने फोन पर कहा कि नल में पानी नहीं आने की शिकायत लगातार जल निगम वालों से किए हैं, लेकिन उनके अधिकारी आते हैं और आश्वासन देकर चले जाते हैं। इस काम का ठेका एल एंड टी कंपनी (लार्सन एण्ड टूब्रो) कंपनी को मिला हुआ है। उन्होंने खुद बताया कि गाँव में बहुत जगह नल नहीं लगे हैं और बहुत सी जगहों पर नल लगे हैं लेकिन पानी नहीं आता। कहीं एक बाल्टी तो कहीं दो बाल्टी पानी आया होगा। वह भी आज नहीं, बहुत पहले। शिकायत के बाद कर्मचारी ठीक करने आश्वासन देते हैं लेकिन आज तक हल नहीं निकला।
दावे ऊँचे काम अधूरा
वर्ष 2024 तक वाराणसी के 1296 गांवों में 3 लाख लोगों को साफ पानी पहुंचाने की योजना थी लेकिन यह लक्ष्य अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। एल एंड टी ने यह ठेका लिया है जो 2500 करोड़ से 5000 करोड़ रुपये के बीच का है। एल एण्ड टी उत्तर प्रदेश में सात जिलों में यह ठेका लिए हुए है।
दैनिक हिंदुस्तान की खबर के मुताबिक वर्ष 2019 तक 1.97 फीसदी लोगों के घर तक नल की सुविधा थी। इस हर घर नल-जल योजना के आने के बाद 15 अगस्त 2023 तक नौ करोड़ लोगों को घर में पानी की सुविधा पहुँच चुकी है। केवल 15 अगस्त के दिन डेढ़ करोड़ लोगों के नल में पानी पहुँचा। हर रोज 40 हजार परिवारों को नल कनेक्शन दिए जा रहे हैं। इसके बाद भी 2024 के अंतिम महीने तक लक्ष्य पूरा नहीं हो सका।
प्रधानपति ने कहा कि अभी इस गाँव के केवल 60 फीसदी घरों में पानी पहुँच रहा है। 40 फीसदी काम अभी बाकी है। लेकिन नट बस्ती में पानी नहीं पहुँचा है। मेन सप्लाइ का मोटा पाइप नहीं लगा है, जब लगेगा तब पानी पहुंचेगा। कब लगेगा? इसका उनके पास कोई जवाब नहीं था । यानी यहाँ प्रधानमंत्री मोदी की हर घर नल-जल योजना की धज्जियाँ उड़ते दिख रही हैं।
जल निगम और एल एण्ड टी कंपनी के काम की स्थिति देखते हुए नहीं कह सकते यह काम कब तक पूरा होगा। प्रधानपति ने यह भी बताया कि एल एण्ड टी कंपनी के फील्ड ऑफिसर काम पूरा होने के दस्तावेज पर दो बार दस्तखत कराने आ चुके हैं लेकिन उन्होंने दोनों बार उन्हें वापस भेजा क्योंकि काम पूरा नहीं हुआ था। जब तक प्रधान उनके काम का भौतिक सत्यापन कर लिखित में नहीं देंगे तब तक इस कंपनी के ठेकेदारों को पैसा नहीं मिलेगा।
पानी की चोरी का आरोप और बचने के तर्क
नहवानीपुर बस्ती के नलों में पानी नहीं आने को लेकर जब मैंने एल एंड टी के स्थानीय अफ़सर अंकित पांडेय से सवाल किया तो उन्होंने इसकी पूरी जिम्मेदारी गाँव वालों के ऊपर डाल दी कि गाँव के ब्राह्मण/भूमिहार बस्ती के लोग पाइप काटकर सिंचाई, मछली पालन और जानवरों के लिए पानी चोरी करते हैं। इन्होंने इसके कुछ वीडियो भी शेयर किए। वीडियो में पाइप काटकर पानी लेने के कई दृश्य हैं। लेकिन जब मैंने पूछा कि कंपनी द्वारा कार्रवाई क्यों नहीं की गई? तब वह गोलमोल जवाब देकर बचने की कोशिश करते नजर आए।
वीडियो शेयर करने के बाद दिए गए नंबर पर जब मेरी संतोष सिंह से बात हुई और पानी चोरी करने की बात पूछी तो उन्होंने तुरंत नकार दिया और कहा कि ‘हमारे खेत में दो सबमर्सीबल लगे हुए हैं। सिंचाई के लिए पास में नहर है। हम क्यों पानी चुराएँगे?’
मैंने पांडेय से पूछा कि नट बस्ती में लगे हुए नलों में पानी क्यों नही पहुँचा? इस प्रश्न पर उन्होंने कई बातें बताई। पहले तो उन्होंने जवाब दिया कि पानी तो पहुँच चुका है। लेकिन बाद में बताया कि अभी पाइप कट जाने की वजह से पानी नहीं जा रहा है।
दूसरी बात उन्होंने कही कि ‘हमारा पानी आपूर्ति का काम सोलर एनर्जी से होता है। जहां सोलर एनर्जी प्लेट लगाना था, वहाँ बड़ा पीपल का पेड़ है। उसे काटने वाला कोई नहीं मिला, इसलिए डिजिसेट से पानी की आपूर्ति हो रही थी, तभी पाइप काटने की घटना हो गई।
उन्होंने तीसरी बात बताई कि ‘जिस टैंक से पानी छोड़ते थे वह भी किसी दिक्कत की वजह से पूरा भर नहीं पा रहा था, जिसके कारण प्रेशर की कमी की वजह से पानी की आपूर्ति कुछ दूर तक ही हो पा रही थी। इसीलिए नट बस्ती तक पानी नहीं पहुँच पा रहा है।’
‘टैंक मरम्मत होने के बाद जहां से उसका पाइप गया है, बिजली विभाग वाले उसके ऊपर पोल गाड़ दिए, जिसकी वजह से पानी लीक हो रहा है और पानी की आपूर्ति ठीक से नहीं हो पा रही है। इसी तरह एक जगह डेढ़ सौ मीटर पाइप निकालकार फेंक दिया। जिस कारण पानी का फोर्स नहीं बन पाता है और पानी नहीं पहुँच पाता है।’
जबकि इस बात पर प्रधानपति मंगल प्रसाद बिन्द ने कहा कि मामला कुछ और है। दरअसल सड़क पार की बस्तियों में (जिनमें नट बस्ती भी आती है) अभी मोटा पाइप नहीं लगा है इसलिए पानी की आपूर्ति नहीं हो रही।’
जहां एक तरफ प्रधान नल जल योजना का 60 फीसदी काम पूरा होने की बात कह रहे, वहीं कंपनी के अफसर अंकित पाण्डेय 80 फीसदी काम होने के बात कह रहे हैं। दोनों की बातों में भारी विरोधाभास है।
अंकित पांडेय कहते हैं कि ‘जल निगम और प्रधान दोनों किसी तरह का कोई सहयोग नहीं करते।’
उन्होंने कहा कि इस समय पानी नहीं जा रहा है लेकिन पहले नल में पानी आ रहा था। नट बस्ती के लोग झूठ कह रहे हैं।’ सोचने वाली बात है कि सुविधा पाने के बाद सुविधा नहीं मिलने की बात कौन कहेगा?
पांडेय ने पानी आपूर्ति का पाइप काटे जाने और उसकी बार-बार मरम्मत किए जाने को लेकर कहा कि कब तक सुधारते रहेंगे। हमारा काम दूसरे गांवों में लगा हुआ है। मरम्मत में लगने वाले सामान उनके स्टॉक में नहीं हैं। 15-20 दिन बाद ही उसकी मरम्मत हो सकती है।
एल एण्ड टी का फर्जीवाड़ा कई बार पकड़ा गया
प्रधान और एल एंड टी के अधिकारी की बातें तथ्यों को उलझा देनेवाली हैं और ऐसा लगता है कि उनका कोई दोष नहीं है। जवाबदेही से बचाने का यह एक आसान तरीका है। जबकि पहले अखबारों में छपी खबरें बताती हैं कि कार्यदायी कंपनियाँ किस तरह फ़र्ज़ीवाड़ा करती थीं। अमर उजाला में 6 जनवरी 2023 को आई एक खबर के मुताबिक वाराणसी के बड़ागाँव के नथईपुर में जल जीवन मिशन के तहत 382 नल कनेक्शन पूरा किए बिना नल में पानी आने की जानकारी जिलाधिकारी को दी गई लेकिन गलत जानकारी होने पर एल एंड टी के अधिकारी अरमीद अहमद के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई।
इसी तरह 17 नवम्बर 2024 को ग्वालियर में भी भुगतान लेने और सामान न देने के मामले में एल एण्ड टी कंपनी के ठेकेदारों और अधिकारियों के सांठगांठ के खिलाफ रिपोर्ट की गई थी।
नहवानीपुर में नट बस्ती को नल से पानी की आपूर्ति की वर्तमान स्थिति जहां एक तरफ गाँव की सवर्ण बिरादरी (ब्राह्मण और भूमिहार) की संदिग्ध भूमिका सवाल खड़ा करती है, वहीं एल एण्ड टी की कार्यप्रणाली व नीयत पर भी शंका पैदा करती है। आखिर कब तक सवर्ण समाज और पूंजीपति दबे-पिछड़े लोगों के अधिकारों पर हाथ मारते रहेंगे?
हमेशा से ही जीवन की बुनियादी सुविधाओं पर अमीर और पूँजीपतियों का आधिपत्य रहा है। आजादी के 77 वर्ष हो जाने के बाद भी देश में आधे से अधिक लोगों को पानी जैसी आधारभूत और जरूरी चीज भी सही तरीके से नहीं मिल रही है।
नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस की 76वीं रिपोर्ट के अनुसार देश में 82 करोड़ लोगों को जरूरत के हिसाब से पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। केवल 21.4 फीसदी लोगों को ही साफ पानी मिल रहा है। नदी-तालाब जैसे जलस्रोतों का 70 फीसदी पानी बुरी तरह प्रदूषित हो चुका है। एक वर्ग दूध की तरह खरीदकर साफ पानी पीने की हैसियत रखता है, वहीं दूसरी तरफ साफ पानी तो क्या दो वक्त की रोटी के लिए मुहाल है!