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बारिश से बर्बाद हुई किसानों की फसल से किसे खुशी होती है

अभी 8 मार्च को किसानों ने नवउन्मूलन का पर्व मनाया था और इस इंतजार में थे कि कुछ ही दिनों में फसलें पककर तैयार हो जाएंगी और इसकी कटाई-मड़ाई करके वर्ष भर के लिए घर में अनाज इकट्ठा कर सकेंगे। कुछ अनाज बाजार में बेचकर अपने जरूरी काम निबटा सकेंगे या कर्ज अदा कर सकेंगे‌। […]

अभी 8 मार्च को किसानों ने नवउन्मूलन का पर्व मनाया था और इस इंतजार में थे कि कुछ ही दिनों में फसलें पककर तैयार हो जाएंगी और इसकी कटाई-मड़ाई करके वर्ष भर के लिए घर में अनाज इकट्ठा कर सकेंगे। कुछ अनाज बाजार में बेचकर अपने जरूरी काम निबटा सकेंगे या कर्ज अदा कर सकेंगे‌। किसानों के घर में शादी-विवाह अक्सर फसल की कटाई के बाद से आरंभ होते हैं, क्योंकि फसल की कटाई के बाद उनके पास कुछ धन और अनाज इकट्ठा हो जाता हैं जिससे उनके संकट कम हो जाते हैं।

लेकिन पिछले कुछ दिनों से वे लगातार प्रकृति की मार झेल रहे हैं। पूर्वांचल के इलाकों में पिछले 15 दिन से रह-रह कर तेज हवा, बारिश और ओले के प्रकोप से किसानों की फसल अधिक से अधिक बर्बाद हो चुकी है। ऐसे में किसानों को अपनी आजीविका के मुख्य साधन खत्म जाने से काफी निराशा हुई है।

मेरे माता-पिता खुद एक किसान हैं, इसलिए इस बारिश की कारण हमारे फसलों का भी काफी नुकसान हुआ है। हमारे खेत से पैदा हुआ अनाज बाजार में बेचने भर का तो नहीं होता है, किंतु वर्षभर खाने के लिए हो जाता है। पशुओं को खाने के लिए पर्याप्त मात्रा में भूसा भी हो जाता है, लेकिन इस बार तो स्थिति बिल्कुल खराब हो गई है। खेतों में गेहूं की बालियों जमीन पकड़ लिया है और उसके दाने बिल्कुल ही कमजोर हो गए हैं। पशुओं के लिए भूसे की जो कुछ आशा बनी हुई थी, उस पर भी 31 मार्च की बारिश के बाद तुषारापात हो चुका है। गेहूं की डाठ सड़ने की स्थिति में आ गई है। अब चिंता है कि आगे का इंतजाम कैसे किया जाए?

“दुर्गा मौर्य ने कहा कि ‘अभी तो हमारी फसल काटना ही बाकी रह गया है, सारी फसल जमीन पर लेट गई है। ट्रैक्टर या मशीन से तो अब कट नहीं पाएगा, हाथ से काटने पर काफी मेहनत हो जाएगा और उसमें से अनाज निकलने की संभावना तो बिल्कुल ही नहीं बची है।’।”

बहराल, यह सिर्फ मेरी चिंता का विषय नहीं है, इस बारिश से हजारों-लाखों किसानों को फसल पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है और वे माथे पर हाथ रख लिए हैं। फसलों से प्राप्त लाभ के द्वारा उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, दवाई, शादी-विवाह, न्योता आदि होते हैं। ऐसे में वे किसान अब क्या करेंगे? इस समस्या के बावत मैंने कुछ किसानों से बातचीत की-

31 मार्च दिन शुक्रवार को सुबह से ही छिटपुट बारिश हो रही थी। शाम होते-होते मौसम और गंभीर हो गया, आसमान में गहरा बादल छा जाने के कारण अंधेरा-सा लगने लगा। उस समय मैं भाऊपुर बाजार में सब्जी लेने गया था, तब तक अचानक बारिश तेज हो गई। लोग बारिश से बचने के लिए जगह तलाशने लगे। मैं भी भींगने के डर से एक दुकान के करकट के नीचे खड़ा हो गया। कुछ ही क्षण में उस करकट के नीचे भीड़ लग गई। लोगों को लग रहा था कि बारिश अब थम जाएगी, तब थम जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वहां बारिश के कारण फसलों को होने वाले नुकसान के बारे में सबसे अधिक चर्चा हो रही थी। वे सब किसान थे।

खेत में कटी हुई फसल बारिश से ख़राब होने की कगार पर

पास के ही गाँवके इंद्रजीत पटेल ने बताया कि ‘मैंने आज ही खेत में मजदूर लगाकर कटाई करवाया, बोझ भी नहीं बंध पाया था। अब तो सारे डाठ तहस-नहस हो गए होंंगे।’

गोपाल वर्मा ने कहा कि ‘मैं सोलह बिस्सा गेहूँ काटकर बोझा बांधकर खेत में ही छोड़ दिया हूँ। इस भयंकर बारिश के बाद उसकी क्या दशा होगी? मुझे लगता है उसमें धुआँ फूट जाएगा।’

दुर्गा मौर्य ने कहा कि ‘अभी तो हमारी फसल काटना ही बाकी रह गया है, सारी फसल जमीन पर लेट गई है। ट्रैक्टर या मशीन से तो अब कट नहीं पाएगा, हाथ से काटने पर काफी मेहनत हो जाएगा और उसमें से अनाज निकलने की संभावना तो बिल्कुल ही नहीं बची है।’

वहीं मौजूद परिवेश ने कहा कि ‘मेरे छ: बिस्वा खेत में टमाटर, बैंगन, करेला और मिर्च तैयार है। एक बिस्वा में पालक और धनिया है, कुछ तो पहले ही बर्बाद हो चुका था, बचा-खुचा भी अब बर्बाद हो जाएगा। नेनुआ,  भिंडी, खीरा भी बोया है। मुझे लगता है वे पौधे भी सड़ जायेंगे।’

इस तरह से लोग अपने-अपने खेत की स्थिति के बारे में बयां करते हुए चेहरे पर निराशा का भाव प्रकट कर रहे थे‌। इसी बीच प्रसंगवश मैंने भी अपनी फसल की स्थिति के बारे में बताया तो लोग हंस पड़े। सबके हंसने का कारण मैं सोच ही रहा था कि तभी मेरे परिचित बाबा यादव ने अपनी राय प्रकट कर दी- ‘अरे मास्टर तोहके कवन घाटा? तोहके त सरकार हर महीना पइसा खुद दे रही है, तू काहें चिंता किए हो? चिंता तो हम लोगों को होना चाहिए, जिनके पास खेती के अलावा और कोई साधन ही नहीं है।’

“किसानों से गेहूं खरीदने जाता हूँ तो बड़े भाव खाते हैं‌। पच्चीस सौ रुपये कुंतल के नीचे बात ही नहीं करतें, किंतु वही किसान मंडी में जाकर चौदह सौ रुपये कुंतल में बेच आते हैं। अबकी बार उनको समझ में आ जाएगा।”

बाबा यादव की इस अपमानजनक बात में भी काफी सच्चाई थी। जो लोग सिर्फ खेती पर निर्भर हैं, वे अब क्या करेंगे? उनके पास गाय, भैंस और बकरियां भी तो हैं, उनके चारे पानी की व्यवस्था वे कैसे करेंगे?

मैं बाबा यादव को जवाब दे पाता कि तब तक बारिश कम हो चुकी थी। उस करकट के नीचे खड़े लोग जाने लगे थे। मैं भी बारिश से बचते हुए घर आया और बगल की किराने की दुकान पर बैठ गया‌‌। किराने के दुकानदार ओम प्रकाश गुप्ता से प्रसंगवश कहा कि ‘मास्टर बारिश बड़ा बढ़िया हुई है।’

‘किसानों की फसल की बर्बादी आपको नहीं दिख रही है?’ मैंने थोड़ा उखड़ने के अंदाज में उतर दिया।

‘किसान तो हर साल कमाते हैं। एक साल नहीं कमाएंगे तो उनका क्या बिगड़ जाएगा!’

‘ऐसा क्यों?’

‘किसानों से गेहूं खरीदने जाता हूँ तो बड़े भाव खाते हैं‌। पच्चीस सौ रुपये कुंतल के नीचे बात ही नहीं करतें, किंतु वही किसान मंडी में जाकर चौदह सौ रुपये कुंतल में बेच आते हैं। अबकी बार उनको समझ में आ जाएगा।’

‘इसमें आपको घाटा नहीं होगा?’

‘मेरा क्या घाटा होगा। मैं गेहूं पचास रुपये किलो लेकर आऊंगा तो पचपन रुपये किलो बेच दूँगा। हम अपना घाटा थोड़े ना सहेंगे।’

मुझे लगा फसल के फायदे-नुकसान के बारे में उनसे बात करना बेकार है। मैंने एक किलो प्याज और एक राजेश मसाला खरीदा और घर चला आया।

सुबह होते ही खेतों की तरफ मैं खुद गया तो देखा कि किसान अपने खेत की मेड़ों पर खड़े होकर सिर्फ फसल की बर्बादी का आलम देख रहे थे। रात में बारिश होने के कारण खेतों में पानी भरा हुआ था। ऐसे समय में वे क्या कर सकते थे। जो किसान अपने खेतों में गेहूं के बोझ बांध चुके थे, वे अब मुर्रा (बंधन) को खोल रहे थे और गेहूं के डाठ फैला रहे थे। कुछ किसान फसलों की मड़ाई भी कर चुके थे। उनके भूसे पानी से भींग चुके थे। आसमान में अब भी बादल छाये हुए थे। सभी लोग प्रार्थना कर रहे थे कि तेज धूप हो जाए और बचा-खुचा अनाज घर में आ जाये लेकिन आसमान में छाए हुए बादल बार-बार उनकी चिंता बढ़ा रहे थे।

मैंने किसान सकलदेव से पूछा कि ‘आपके खेत में कुल कितनी लागत लग चुकी होगी?’

बलरामपुर में थारू जनजाति के बीच दो दिन

उन्होंने कहा कि ‘मैं ठीक-ठीक तो नहीं बता सकता, लेकिन जुताई, बुवाई, खाद, बीज, पानी, मजदूरी कुल मिलाकर 25 से 30,000 रुपये खर्च हुए होंगे‌।’

‘खेती में इतना खर्च करने के बाद आप कितना कमा लेते होंगे?’

‘कुछ कहा नहीं जा सकता। खेती संभावनाओं का खेल है। मेहनत करो, पैसा लगाओ, नसीब ने साथ दे दिया तो परिवार का खर्च और कुछ पैसे बच्चों के पढ़ाई, लिखाई, दवाई के लिए हो जाते हैं। फसल बर्बाद हुई तो स्थिति बहुत खराब हो जाती है।’

‘क्या आपके अनाज एमएसपी के मूल्य पर बिकते हैं?’

पकी खड़ी फसल बारिश की मार से बर्बाद हुई

‘नहीं, ऐसा कभी नहीं हुआ? जब फसल आती है तो व्यापारी हम लोगों से सस्ते दामों पर खरीद के ले जाते हैं और बाद में वे महंगे दामों में बेचते हैं। हम लोगों के पास अनाज रखने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है और उस समय पैसों की जरूरत भी रहती है, इसलिए हमें जो भी दाम मिल जाता है, हम लोग बेच देते हैं।’

‘अपने कुछ किसान एमएसपी के लिए आंदोलन कर रहे हैं, क्या आपको इस विषय में जानकारी हैं?’

हां, क्यों नहीं! हमारे ही हक में  तो लड़ रहे हैं।’

‘आप उनके आंदोलन में शामिल क्यों नहीं होते?’

‘हम सब छोटे और मंझोले किसान हैंं। हमारे पास लंबे समय तक आंदोलन करने के लिए पैसा नहीं होता है और हम घर की जिम्मेदारियों से भी मुक्त नहीं हो पाते हैं लेकिन हमें वहां जाना चाहिए और उनका साथ देना चाहिए।’

‘जो आपकी गेहूं की फसल बर्बाद हुई है इसकी भरपाई अब कैसे करेंगे?’

‘मेरा एक भाई मुंबई में कमाता है न, उसी से कुछ मदद के लिए कहेंगे।’

मैंने कुछ दूर घूमकर गेहूं की वर्तमान स्थिति की कुछ तस्वीरें ली, तब तक मेरे स्कूल का समय हो चुका था और आसमान से हल्की-हल्की बूंदाबांदी भी शुरू हो चुकी थी। मेरे स्कूल पहुँचते ही झमाझम बारिश होने लगी। खेतों में काम कर रहे किसान उधर-उधर दौड़ते हुए दिखाई देने लगे।

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