देश में अमीरों और गरीबों की जनगणना तो नहीं हुई है लेकिन इसके बाद यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि देश की 80 करोड़ जनता गरीबी में जीवनयापन कर रही है, जिन्हें सरकार हर महीने 5 किलो राशन देती है। लेकिन वर्ष 2024 के आम बजट में इन गरीबों के लिए कोई भी प्रावधान नहीं किया गया। सवाल यह है कि कब इनके ऊपर सरकार मेहरबान होगी।
आज समूचे देश में कृषि-क्षेत्र में 72 प्रतिशत से ज़्यादा लड़कियाँ और महिलाएँ दिन-रात पसीना बहा रही हैं। मगर उनका अस्तित्व आज भी उनके पति के अस्तित्व पर निर्भर करता है। फिर भी इन औरतों ने परिस्थितियों से जूझना बंद नहीं किया है। महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या के बाद उनकी पत्नियाँ किस तरह उनका कर्ज उतारकर जीवन जी रही हैं, पढ़िये ग्राउंड रिपोर्ट
महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र का नाम किसानों की आत्महत्या के मामले में अक्सर सुनाई देता रहा है। लेखिका डॉ लता प्रतिभा मधुकर ने विदर्भ के यवतमाल और वर्धा जिले के मृतक किसानों की पत्नियों से मिलकर उनके संघर्ष और जीजीविषा को नजदीक से देखा। ये आत्महत्या न कर ज़िंदगी से क्यो और कैसे लड़ती हैं? पढ़िये ग्राउंड रिपोर्ट का भाग एक-
आजमगढ़ एयरपोर्ट का उद्घाटन करने के लिए 10 मार्च को आजमगढ़ के दौरे पर पहुंच रहे हैं। सभा के लिए मैदान तैयार करने के लिए किसानों की फसलों को मशीनों से रौंदवा दिया गया।
सरकार ने भारी प्रचार के साथ 'पशु किसान क्रेडिट योजना' लागू कर दी है लेकिन बैंक इस योजना के तहत लोन नहीं दे रहे हैं। बैंक इस योजना के प्रति उदासीन हैं। बैंक पशुपालकों को कभी पशुपालन विभाग भेज रहे हैं तो कभी कागजों में कमी बताकर वापस जाने को कह दे रहे हैं। इससे पशुपालकों में काफी रोष है। पशुपालकों का कहना है कि पशुपालकों के लिए सरकार ने कम ब्याज की दर पर योजना तो शुरू कर दिया, लेकिन बैंक लोन पास नहीं कर रहे हैं।
कल हुई अचानक हुई बारिश से खेतों में अनावश्यक पानी के जमा हो जाने से सब्जियों और रबी की फसलों को बहुत नुकसान पहुंचा है। साथ ही आम के पेड़ों में लगी हुई बौर झड़ गईं। जिसके चलते आम के उत्पादन पर भी फर्क दिखाई देगा।
एक तरफ आज जहां सीएम मनोहर लाल खट्टर ने आज हरियाणा के बजट सत्र मे अभिभाषण में घोषणा करते हुए राज्य के 5 लाख से ज्यादा किसानों के कर्ज का ब्याज़ और पेनल्टी माफ़ करने की बात कही, वहीं दूसरी तरफ हरियाणा सीमा पर आंदोलनरत किसानों से दुश्मन जैसा बर्ताव करने में कोई कसर हरियाणा सरकार नहीं छोड़ रही है।
जब जंगल काटे जाएंगे तो वहां रहने वाले पशु अपना ठिकाना बदलेंगे ही। वे गांवों की तरफ भी आएंगे। जब गांव में आएंगे तो इसी तरह से हमारी फसलों को खाएंगे और बर्बाद भी करेंगे।