गाज़ीपुर। शहर में लगातार लोग बीमार पड़ते जा रहे हैं लेकिन स्थानीय प्रशासन अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने में लगा हुआ है और जनता के स्वास्थ्य को लेकर उसके सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं। सैकड़ों लोग डेंगू के शिकार होकर यहाँ-वहाँ भटक रहे हैं लेकिन स्वास्थ्य केन्द्रों और अस्पतालों में उनको इलाज ही नहीं मिल पा रहा है। जंगीपुर के निवासी अवधेश गुप्ता बताते हैं कि प्लेटलेट बहुत कम हो जाने के कारण वे अपनी पत्नी आरती को निजी अस्पताल में ले जाने को मजबूर हुये जहां उनके हजारों रुपए खर्च हो गए। छोटी सी दुकान चलानेवाले गुप्ता कहते हैं कि इस महंगाई में जहां घर चलाना ही मुश्किल होता जा रहा है वहाँ ऐसे अचानक खर्च बढ़ने का मतलब रही-सही जमा-पूंजी भी स्वाहा हो जाना है। लेकिन इसके अलावा कोई और चारा भी नहीं है।
गुप्ता की तरह अनेक लोग हैं जिनको सरकारी अस्पताल में ठीक से इलाज नहीं मिल पाया तो वे निजी अस्पतालों और डॉक्टरों की शरण में गए और उन्हें ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ा। लोग कहते हैं कि दवा के साथ जांच आदि का खर्च देखकर आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है लेकिन अपने घर के सदस्य की ज़िंदगी बचाने के लिए हम सबकुछ करते हैं।
गाजीपुर जिले की चिकित्सा व्यवस्था को लेकर एक व्यक्ति का कहना है कि निजी अस्पतालों में जाने का मतलब है लुट-पिटकर बाहर निकलना। ज़्यादातर निजी अस्पतालों में मामला और बिगड़ जाता है तो वे मरीज को बनारस या लखनऊ रिफर करते हैं। आमतौर पर ऐसे अस्पताल बनारस के निजी अस्पतालों से कमीशन पाते हैं इसलिए उनका ज़ोर उन्हीं अस्पतालों पर होता है जिनसे उनकी साँठ-गाँठ होती है। लेकिन सरकारी अस्पताल में जाने का मतलब हर चीज के लिए लंबा इंतज़ार और चकरघिन्नी की तरह दौड़ते हुये थक जाने के अलावा बहुत कुछ हासिल नहीं हो पाता।
कई लोगों ने और भी खराब अनुभव साझा करते हुये बताया कि बनारस जाने का मतलब कभी-कभी सबकुछ गँवाना ही होता है। महँगी दवाइयों, अनाप-शनाप जाँचों और बेड का रोज का खर्च उठाते-उठाते आदमी तिल-तिल मरता है। जब उन निजी अस्पतालों को लगता है कि अब इस ग्राहक से अधिक वसूली संभव नहीं है तब मरीज को बीएचयू भेज दिया जाता है। ऐसे ही न जाने कितने मरीज जान से हाथ धो बैठते हैं।
शहर के गोराबाजार स्थित महर्षि विश्वामित्र स्वशासी मेडिकल कालेज से संबंद्ध जिला अस्पताल और महिला अस्पताल में जिले के दूर-दराज के इलाकों से मरीज पहुँचते हैं जिसके कारण यहाँ भारी भीड़ होती है। यहाँ की अव्यवस्था का यह आलम है कि ओपीडी के लिए पर्ची कटाने और डॉक्टर तक पहुँचने में ही मरीज को काफी समय लग जाता है। अगर डॉक्टर ने कोई जांच लिख दी तो सैंपल देने और रिपोर्ट पाने में एक या दो दिन लगना आम बात है। ऐसे में अगर कोई बीस-पाचीस किलोमीटर दूर से आया हो तो उसकी परेशानी का अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है।
मरीजों के तीमारदार कहते हैं कि सरकारी अस्पताल में हर समय कोई न कोई मशीन खराब ही रहती है। इसलिए इसके लिए कई-कई दिन इंतज़ार करना पड़ता है। बाहर से जांच कराने पर डॉक्टर उसे नहीं मानते और ज़ोर देते हैं कि जहां वे चाहें वहीं जांच कराई जाये।
एक सूचना के मुताबिक गाजीपुर शहर में फिलहाल बड़े पैमाने पर डेंगू और वायरल बुखार फैला हुआ है और सैकड़ों लोगों ने खाट पकड़ ली है। सरकारी इलाज धीमी गति से चल रहा है और लोगों ने देशी दवाइयों पर भरोसा कर लिया है। डेंगू में प्लेटलेट बढ़ाने के लिए पपीते के पत्ते का रस और बकरी के दूध का सेवन किया जा रहा है।
शहर में गंदगी का अंबार है लेकिन सफाई के दावे झूठे साबित हो रहे हैं
गाजीपुर नगर की किसी सड़क से गुजरिए तो जो सबसे आम दृश्य दिखाई देता है वह है सड़क पर लगा कूड़े का अंबार और नालियों में जमा पानी जो हर तरह की बीमारी को दावत देता है। सरकारी महकमे के दावे इस मामले में लगातार खोखले साबित हो रहे हैं। न कहीं फागिंग हो रही है और न ही ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव दिख रहा है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक पहाड़खां के पोखरा, सकलेनाबाद मुख्य मार्ग के किनारे, लंका से कचहरी जाने वाले मार्ग सहित अन्य जगहों पर दोपहर एक बजे तक कूड़ा जस का तस पड़ा रहता है। नालियों की साफ-सफाई तो दूर मच्छरों के लार्वा को समाप्त करने के लिए ब्लीचिंग पाउडर और दवा का छिड़काव भी नहीं किया जा रहा है। अब तक करीब 300 के आस-पास एलाइजा जांच में 56 मरीज डेंगू पॉजीटिव मिले हैं। एक सितंबर से अब तक मेडिकल कालेज प्रशासन ने 160 लोगों को प्लेटलेट्स चढ़ाने का दावा किया है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि साफ-सफाई न होने के कारण डेंगू, मियादी और वायरल बुखार ने लोगों को चपेट में लेना शुरू कर दिया है। इन बीमारियों पर काबू पाने के लिए जमीनी स्तर पर कार्य नहीं दिखाई पड़ रहा है।
लोग इस बात से भी नाराज हैं कि स्थानीय प्रशासन जनता के प्रति अपने दायित्व को निभाने से ज्यादा अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने में लगा हुआ है। इन पर ऊपर से दबाव आता है कि कैसे सरकार का अधिक से अधिक प्रचार करें। यह बताएं कि प्रदेश और देश की सरकार लोगों के लिए किस प्रकार जी तोड़ मेहनत कर रही है। जबकि वास्तविकता यह है कि सार्वजनिक संस्थाओं पर जनता का नियंत्रण ही नहीं रहा और न ही जवाबदेही।