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एएमयू में कुलपति के बैठक की अध्यक्षता करने का विरोध, बीएचयू में  49 लोगों पर मुकदमा दर्ज

अलीगढ़ (भाषा)।  अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के कुलपति पद पर नियुक्ति के लिये तीन नाम तय करने के मकसद से बुलायी गयी एएमयू कोर्ट की बैठक में हिस्सा लेने वाले 84 में से आठ सदस्यों ने कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर मुहम्मद गुलरेज के, अपनी पत्नी के कुलपति पद के लिए दावेदार होने के बावजूद इस बैठक […]

अलीगढ़ (भाषा)।  अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के कुलपति पद पर नियुक्ति के लिये तीन नाम तय करने के मकसद से बुलायी गयी एएमयू कोर्ट की बैठक में हिस्सा लेने वाले 84 में से आठ सदस्यों ने कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर मुहम्मद गुलरेज के, अपनी पत्नी के कुलपति पद के लिए दावेदार होने के बावजूद इस बैठक की अध्यक्षता करने पर सख्त एतराज जताया है। एएमयू कोर्ट की सोमवार को कुलपति पद के लिये पांच में से तीन नामों का पैनत तय करने के लिये हुई बैठक में, कार्यवाहक कुलपति मुहम्मद गुलरेज की पत्नी और एएमयू महिला कॉलेज की प्राचार्या नईमा खातून को बैठक में शामिल 50 सदस्यों ने वोट दिया। तय किये गये पैनल में शामिल दो अन्य दावेदारों एम. उरूज रब्बानी (एएमयू के मेडिसिन संकाय के पूर्व डीन) को 61 और फैजान मुस्तफा (प्रसिद्ध न्यायविद् और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, नलसर के पूर्व कुलपति) को 53 वोट मिले।

इस विशेष बैठक के फौरन बाद एएमयू कोर्ट के 84 सदस्यों में से आठ ने इस निर्णय की वैधता और नैतिकता पर सवाल उठाते हुए बहुत तल्ख टिप्पणी की थी। इस असहमति नोट पर हस्ताक्षर करने वाले एएमयू कोर्ट के आठ सदस्यों में से दो एएमयू के वरिष्ठ संकाय सदस्य हैं। इनमें रणनीतिक अध्ययन विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर आफताब आलम और एएमयू के ‘जाकिर हुसैन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी’ के प्राचार्य प्रोफेसर सुफयान बेग शामिल हैं। असहमति के नोट पर हस्ताक्षर करने वाले छह अन्य सदस्यों में सेवानिवृत्त प्रोफेसर हाफ़िज़ इलियास खान और निर्वाचित सदस्य खुर्शीद खान, सैयद नदीम अहमद, सैयद मोहम्मद अहमद अली, सुहैल अहमद नियाज़ी और एम. सुहैब शामिल हैं।प्रोफेसर आफताब आलम ने ‘भाषा’ से कहा, ‘कार्यवाहक कुलपति ने उस बैठक की अध्यक्षता की और वोट भी किया जिसमें उनकी पत्नी कुलपति पद के दावेदारों में शामिल हैं। उनका यह आचरण नैतिकता के मूल सिद्धांत का उल्लंघन तो है ही, यह हितों के टकराव के साथ—साथ केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमावली 1964 की अवहेलना भी है।’

प्रो आलम ने कहा, ‘यह आश्चर्य की बात है कि पिछली 30 नवंबर को हुई एएमयू कार्यकारी परिषद की बैठक में प्रोफेसर गुलरेज ने खुद के बैठक की अध्यक्षता करने को लेकर दो सदस्यों द्वारा उठायी गयी आपत्तियों को न सिर्फ नजरअंदाज कर दिया, बल्कि उन्होंने खुद प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का घोर उल्लंघन करते हुए अपने पक्ष में फैसला सुनाया था।’

एएमयू कोर्ट के आठ सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित असहमति के नोट में ‘न्याय और निष्पक्षता के मौलिक सिद्धांत का उल्लेख किया गया है और यह प्रावधान है कि कोई व्यक्ति ऐसे मामले में निर्णय लेने वाला नहीं हो सकता जिसमें उसका या उसके करीबी परिवार का व्यक्तिगत हित या हिस्सेदारी है। ऐसा इसलिये है कि अगर निर्णय लेने वाली संस्था का कोई सदस्य व्यक्तिगत रूप से या उसके करीबी परिवार के सदस्यों में से कोई एक विचाराधीन मामले के परिणाम में शामिल होता है या दिलचस्पी रखता है तो यह पूर्वाग्रह और हितों का टकराव पैदा करेगा।’ इस बारे में सम्पर्क करने पर एएमयू के प्रवक्ता उमर पीरजादा ने दोहराया कि विश्वविद्यालय के अधिनियम और नियम—कायदों में ऐसा कुछ भी नहीं है जो कुलपति को उस बैठक की अध्यक्षता करने या मतदान करने से रोकता हो जिसमें उनकी पत्नी चयन के लिए उम्मीदवारों में से एक हैं। उन्होंने कहा, ‘कार्यकारी परिषद की बैठक में शामिल किसी भी मनोनीत व्यक्ति या संस्थान के चार पूर्व कुलपतियों में से किसी ने भी इस मामले पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी।’

एएमयू के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ‘भाषा’ से कहा, ‘अगर कार्यवाहक कुलपति के अपने जीवनसाथी के समर्थन में मतदान करने से किसी कानून का उल्लंघन होता है तो उस बैठक में शामिल कुछ लोगों ने निश्चित रूप से आपत्ति जताई होगी।’ इस दावे पर प्रतिक्रिया देते हुए आफताब आलम ने कहा, ‘कई बार कानून कुछ पहलुओं पर मौन हो सकता है लेकिन कानून की भावना स्पष्ट है कि किसी भी उच्च पद पर नियुक्ति के मामले में निर्णय का अधिकार ही वह बुनियाद है जिस पर ऐसी किसी भी नियुक्ति के नैतिक अधिकार की इमारत टिकी होती है। अगर इस सिद्धांत का सम्मान नहीं किया जाता है तो निश्चित रूप से भविष्य की घटनाओं पर इसका असर पड़ेगा।’ एएमयू कोर्ट द्वारा कुलपति पद के लिए चुने गए तीन नाम अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की विजिटर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे जाएंगे जो कुलपति के तौर पर किसी एक का चयन करेंगी। अगर नईमा खातून नियुक्त होती हैं तो वह एएमयू की पहली महिला कुलपति होंगी।

बीएचयू परिसर में छात्र गुटों के टकराव में  49 लोगों पर मुकदमा दर्ज

वाराणसी (भाषा)।  काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में आईआईटी की छात्रा से हुई कथित छेड़खानी के विरोध में परिसर में जारी आंदोलन के दौरान रविवार को छात्रों के दो गुटों के बीच हुई झड़प के मामले में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) कार्यकर्ताओं ने 17 नामजद और 32 अज्ञात लोगों पर मारपीट, छेड़खानी और हिन्दू धर्म का अपमान करने समेत कई आरोपों में मुकदमा दर्ज कराया है।

लंका थाना प्रभारी शिवाकांत मिश्रा ने मंगलवार को बताया कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के गेट पर रविवार को आंदोलन के दौरान दो छात्र गुटों के बीच हुई मारपीट के मामले में एबीवीपी से जुड़े छात्र—छात्राओं की तहरीर पर 17 नामजद और 32 अज्ञात लोगों के खिलाफ हिन्दू धर्म का अपमान करने, धार्मिक वैमनस्य फैलाने, मारपीट, छेड़खानी और जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करने के आरोपों में मुकदमा दर्ज किया गया है।

एबीवीपी की बीएचयू इकाई के अध्यक्ष अभय प्रताप सिंह ने बताया कि छेड़खानी की पीड़ित छात्रा को न्याय दिलाने के लिये आंदोलन कर रही एबीवीपी की सदस्य छात्राओं से रविवार को ‘आइसा’ तथा ‘भगत सिंह छात्र मोर्चा’ के कार्यकर्ताओं ने अभद्रता करने के साथ ही उन पर जान से मारने की नीयत से हमला कर दिया और धमकी भी दी। उन्होंने आरोप लगाया कि इस घटना में एबीवीपी कार्यकर्ताओं को गंभीर चोटें आयी हैं। उन्होंने कहा ‘इस मामले में हमलावरों के विरुद्ध सोमवार को वाराणसी के लंका थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया है।’

मालूम हो कि गत रविवार को बीएचयू के मुख्य द्वार पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी), ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) और भगत सिंह छात्र मोर्चा (बीसीएम) के छात्र सदस्यों के बीच झड़प हो गई थी। एबीवीपी के पदाधिकारियों के अनुसार, उनके सदस्य पिछले हफ्ते विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार के पास छेड़छाड़ की शिकार हुई आईआईटी-बीएचयू की छात्रा को न्याय देने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। एबीवीपी ने आरोप लगाया कि ‘आइसा’ और ‘बीसीएम’ के सदस्य वहां पहुंचे और हाथापाई शुरू कर दी।बीसीएम के पदाधिकारियों ने आरोपों से इनकार करते हुए एबीवीपी पर ही ‘हिंसक और अन्यायपूर्ण’ होने का आरोप लगाया। गत एक नवंबर की रात विश्वविद्यालय परिसर में अपने एक दोस्त के साथ घूम रही आईआईटी—बीएचयू की एक छात्रा को करमन बाबा मंदिर के पास मोटरसाइकिल सवार तीन लोग जबरन एक कोने में ले गए, उसे कथित तौर पर निर्वस्त्र करके उसकी तस्वीरें ले लीं और वीडियो भी बना लिया। दर्ज रिपोर्ट में कहा गया है कि आरोपियों ने लगभग 15 मिनट के बाद उसका मोबाइल नम्बर लेकर उसे छोड़ दिया। पीड़ित छात्रा की शिकायत के आधार पर लंका थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के सुसंगत प्रावधानों के तहत अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया है।

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