Sunday, October 6, 2024
Sunday, October 6, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमग्राउंड रिपोर्टबरेली: रामगंगा के कटान से बेघर हुए तीर्थनगर मजरा के ग्रामीण, गांव...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

बरेली: रामगंगा के कटान से बेघर हुए तीर्थनगर मजरा के ग्रामीण, गांव के लोगों के लिए सपना बना अपना घर

धरती के इस छोर से उस छोर तक मुट्ठी भर सवाल लिए मैं छोड़ती-हाँफती-भागती तलाश रही हूँ सदियों से निरंतर अपनी जमीन, अपना घर, अपने होने का अर्थ। निर्मला पुतुल द्वारा लिखित कविता की यह पंक्तियां बहती हुई एक नदी और जीवनपथ पर संघर्षरत एक महिला दोनों के ही जीवन को बयां करती हैं। अपनी […]

धरती के इस छोर से उस छोर तक

मुट्ठी भर सवाल लिए मैं

छोड़ती-हाँफती-भागती

तलाश रही हूँ सदियों से निरंतर

अपनी जमीन, अपना घर, अपने होने का अर्थ।

निर्मला पुतुल द्वारा लिखित कविता की यह पंक्तियां बहती हुई एक नदी और जीवनपथ पर संघर्षरत एक महिला दोनों के ही जीवन को बयां करती हैं। अपनी जमीन, अपना घर और अपने होने का अर्थ तलाश रही प्रवाहमान रामगंगा ने कश्मीरा बाई समेत तीर्थनगर मजरा की कई महिलाओं को परिवार समेत बेघर कर दिया है। अब बहती रामगंगा नदी समेत ये बेघर महिलाएं मुट्ठी भर सवाल लिए तलाश रही हैं अपनी जमीन, अपना घर और अपने होने का अर्थ।

‘रामगंगा ने कटान कर दिया। मेरा घर और आधा सामान बह गया। गाँव के ही एक खेत में झोपड़ी डालकर रह रही हूँ। दूसरे के खेत में झोपड़ी डालकर कितने दिन रह सकती हूँ? खेत मालिक खेत को खाली करने के तकादे लगातार कर रहे हैं। सरकार-प्रशासन सुध लेने को तैयार नहीं है। कहाँ चली जाऊँ दो विकलांग बच्चों को लेकर? न घर बनाने की जमीन बची है न ही पैसा बचा है। पति की मृत्यु हो चुकी है। दिहाड़ी-मजदूरी करके घर चलाती हूँ।’ अंबरपुर पंचायत के तीर्थनगर मजरा की निवासी कश्मीरा बाई अपनी व्यथा बताती हैं।

उत्तराखंड की पहड़ियों से निकलने वाली रामगंगा नदी उत्तर प्रदेश के बिजनौर, मुरादाबाद रामपुर, बरेली, बदायूं, शाहजहाँपुर से हरदोई होते हुए कन्नौज के निकट हरदोई की सवायाजपुर तहसील के गंगा में मिल जाती है।

अपने परिवार के साथ झोपड़ी बनाकर रह रही कश्मीरा बाई एवं उनकी पुत्रवधू

इस वर्ष मानसून की वर्षा के बाद बिजनौर स्थित कालागढ़ डैम से रामगंगा नदी में पानी छोड़ा गया। पहले से ही कटान कर रही रामगंगा में पानी रौद्र रूप में बहने लगा और कटान काफी तेज हो गया। रामगंगा के इस कटान में बरेली की मीरगंज तहसील के अंतर्गत अंबरपुर ग्राम पंचायत में आने वाले तीर्थनगर मजरा को रामगंगा अपने बहाव के साथ बहाकर ले गई। तीर्थ नगर मजरा में स्थित 12-15 घर, सरकारी प्राथमिक विद्यालय एवं गुरुद्वारा पूरी तरह विलुप्त हो चुके हैं। इस गाँव के लोग पुनर्वास की आस में पिछले तीन माह से खेतों में झोपड़ियाँ बनाकर रह रहे हैं।

बेघर हुई कश्मीरा बाई कहती हैं, ‘सर्दी लगातार बढ़ती जा रही है। हम नदी के किनारे से कुछ ही दूर खुले खेतों में झोपड़ी डालकर जीने को मजबूर हैं। रात को बहुत सर्दी हो जाती है, फूस की झोपड़ी सर्द हवाओं को रोक नहीं पाती है, यदि बारिश होने लगे तो मुसीबत और भी बढ़ जाती है, तहसील में जाती हूँ तो सिर्फ आश्वासन मिलते हैं, मदद कुछ नहीं मिलती।’ वे बताती हैं कि रामगंगा के कटाव से हमारे गाँव के डूब जाने के बाद तहसील से आए अधिकारियों ने दौरा किया। लेखपाल एवं कानूनगो ने नुकसान का सर्वे भी किया। क्षतिग्रस्त मकानों का मुआवजा दिलाने का आश्वासन दिया, लेकिन अभी तक मिला कुछ नहीं है।

नदी के कटाव से बेघर हुए प्रमोद सिंह बताते हैं कि हम 35 साल से तीर्थनगर में रह रहे थे। मेरा जन्म इसी गाँव में हुआ था। गाँव खत्म हो गया है। हम लोग जहाँ रहते थे, जिस स्कूल में हमारे बच्चे पढ़ते थे, जिस गुरुद्वारे में हम प्रार्थना करते थे, अब वहाँ नदी का बहता पानी और दूर तक फैली धूसर रेत है। जिस समय नदी कटान कर रही थी, उस समय हमने कटान के रोकथाम की मांग उठाई थी, लेकिन हमारी कोई सुनवाई नहीं हुई। समय रहते अगर कटान को रोकने के प्रबंध किए जाते तो शायद हमारे घर सही सलामत होते। हमने सांसद संतोष गंगवार तक अपनी बात पहुँचाने का प्रयास किया था। कटान से पहले उप जिलाधिकारी मीरगंज ने भी निरीक्षण किया था। उप जिलाधिकारी ने हमें गाँव छोड़कर चले जाने की सलाह दी। आखिर में हमें यही करना पड़ा।

अपने परिवार के साथ खेत में झोपड़ी बनाकर रह रहे प्रमोद सिंह

प्रमोद सिंह अपने परिवार के साथ खेत में झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। वे कहते हैं- ‘हमारे जीवनयापन का साधन सिर्फ खेती है। हमारे पास 15 बीघा जमीन है। रामगंगा हमारी खेती की जमीन के निकट आती जा रही है, इस जमीन का भी कोई भरोसा नहीं है। यदि कटान होता रहा तो एक दिन खेती की जमीन भी चली जाएगी। सरकार की तरफ से यदि मकान का मुआवजा मिल जाए तो बहुत मदद हो जाएगी।’

‘हमारा पीएम आवास योजना का मकान भी पिछले चार सालों से लंबित है। हमने 2019 में पीएम आवास के लिए आवेदन दिया था, लेकिन हमें पीएम आवास योजना का लाभ भी नहीं मिला’, प्रमोद सिंह बताते हैं।

रामगंगा के कटान से बेघर हुए बूटा सिंह बताते हैं, ‘सरकार एवं प्रशासन की तरफ से कोई तात्कालिक सहायता भी नहीं मिली। जब नदी ने कटान कर दिया तो हमें गाँव छोड़कर चले जाने की सलाह दी गई। खेती यहाँ, जीवन यहाँ, कैसे और कहाँ चले जाते गाँव छोड़कर? इसलिए अपने परिवार के साथ खेत में ही मढ़ई बनाकर रह रहे हैं। कुछ परिवार अपने रिश्तेदारों के यहाँ शरण लेने चले गए तो कुछ अपने खेतों में रहने लगे और जिनके पास खेती की जमीन नहीं है, उनका कोई ठिकाना नहीं बचा है।’ वे कहते हैं कि इतने नुकसान के बाद अभी तक हमें सरकार की तरफ से एक पाई की मदद भी प्राप्त नहीं हुई है। तहसील के अधिकारी कहते हैं, जब ऊपर से मदद आएगी हम तभी मदद कर पाएंगे। ऊपर से मदद कब आएगी, आएगी भी या नहीं कुछ नहीं पता।

परिवार समेत अपने खेत में झोपड़ी बनाकर रह रहे बूटा सिंह

प्रभावित ग्रामीणों को अभी तक न तो क्षतिग्रस्त मकानों का मुआवजा मिला है और न ही मकान बनाने हेतु ग्राम पंचायत में कोई सुरक्षित जमीन मिली है। इस मामले पर अंबरपुर ग्राम पंचायत के प्रधान मुनीश दिवाकर बताते हैं, ‘लोगों के पुनर्वास की प्रक्रिया पर कोई काम नहीं हो सका है। मैंने उप-जलाधिकारी एवं तहसीलदार से बात की थी। गाँव के लोगों को दोबारा बसाने के लिए आवासीय पट्टे की जमीन उपलब्ध नहीं है।ग्राम सभा के पास जो जमीन है वो दरिया-बुर्द है। तीर्थनगर मजरा के निवासियों के मकान की क्षतिपूर्ति के लिए तहसील से ऑनलाइन आवेदन किए जा चुके हैं। आवास निर्माण हेतु सरकार से मदद मांगी गई है। अभी तक तो कोई सहायता मिली नहीं है।

प्रधान मुनीश भी प्रशासन पर अनदेखी एवं लापरवाही का आरोप लगाते हैं। वे कहते हैं, ‘गाँव के कटने के बाद ग्रामीणों को कोई त्वरित राहत नहीं मिली। आर्थिक सहायता की बात तो छोड़िए किसी परिवार को 10 किलो राशन भी प्रशासन ने नहीं पहुँचाया। बेघर हुए ग्रामीण अनिश्चितता के माहौल में जी रहे हैं। सरकार से मदद मिलेगी या नहीं, यदि मिलेगी तो कब तक मिलेगी ? कुछ नहीं पता।’

क्षेत्रीय विधायक पर भी उठ रहे सवाल

ग्रामीण प्रमोद सिंह बताते हैं कि विधायक डीसी वर्मा ने जमीन के कटने के बाद से अब तक एक बार भी गाँव का दौरा नहीं किया है। इस संबंध में हमने विधायक से बात की। वे कहते हैं, ‘मैंने तीर्थनगर मजरा के ग्रामीणों को नई जगह बसाने के लिए अधिकारियों से कह रखा है।’ प्रशासन द्वारा लोगों को मदद न मिलने की बात पर वे कहते हैं, ‘मैं इस संबंध में अधिकारियों से बात करूंगा, मेरे पास कोई ग्रामीण इस बात की शिकायत लेकर नहीं आया।’

वर्तमान में ग्रामीण जिन हालातों में जीवन निर्वाह कर रहे हैं, विधायक डीसी वर्मा उनसे अंजान मालूम प्रतीत होते हैं। इस मामले पर अंबरपुर प्रधान कहते हैं, ‘कमाल की बात है, इतनी बड़ी घटना हो गई, एक गाँव कट गया, ग्रामीण बेघर हो गए, प्रशासनिक अधिकारियों के 2-3 दौरे हो गए, लेकिन विधायक अभी ग्रामीणों की शिकायत और आवेदन का इंतजार कर रहे हैं।

ग्रामीणों को लगातार आश्वासन देते रहने के बाद हमारी कहानी के माध्यम से एक और आश्वासन देता प्रशासन

बेघर हुए ग्रामीणों को मुआवजे एवं दोबारा बसाए जाने की प्रक्रिया के बारे में पूछे जाने पर तहसीलदार मीरगंज भानू प्रताप सिंह कहते हैं, ‘मकान एवं सामान की क्षतिपूर्ति की राशि ग्रामीणों के खाते में एक-दो दिन में पहुँच जाएगी। तहसील स्तर से सारी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।’

ग्रामीणों के पुनर्वास के मामले पर वे कहते हैं, ‘जब आवासीय पट्टों का आवंटन किया जाएगा, तब इन सभी ग्रामीणों को प्राथमिकता के आधार पर लिया जाएगा। भूमि प्रबंध समिति के अध्यक्ष एवं सचिव को इस बारे में निर्देशित कर दिया गया है। हमने ग्राम प्रधान अंबरपुर को भी इस बाबत जानकारी दी है। सभी बेघर हुए ग्रामीण हमारी प्राथमिकता में रहेंगे।’

आगे तहसीलदार कहते हैं, ‘गाँव कटने से पहले भी ग्रामीण झोपड़ी में ही रह रहे थे। ग्रामीणों के पास पक्के मकान नहीं थे। इस मामले पर ग्रामीण प्रमोद सिंह बताते हैं, तहसीलदार साहब झूठ बोल रहे हैं। गाँव में 5-6 पक्के मकान थे और इतनी ही झोपड़ियाँ थी। जो लोग बहुत गरीब थे, वे पक्का मकान नहीं बना सके। क्या उनको पीएम आवास योजना का लाभ नहीं मिलना चाहिए था? पिछले 5 वर्षों में हमारे मजरे में पीएम आवास योजना का लाभ भी किसी को नहीं मिला।’

दो कमरों के इस भवन में संचालित हो रहा है तीर्थनगर मजरा का प्राथमिक विद्यालय

तहसीलदार के इस बयान पर प्रधान मुनीश दिवाकर कड़ी प्रतिक्रिया देते हैं। वे कहते हैं, ‘यदि प्रशासन को कुछ मदद नहीं करनी है तो न करे।इस तरह की अनर्गल बातें तो न करें। इस मजरे में सरकार द्वारा प्राइमरी स्कूल संचालित होता था, लोग यहाँ पिछले 40-50 साल से रह रहे हैं। बकायदा लेखपाल एवं कानूनगो ने मकानों और सामान की क्षति का सर्वे किया था। उस समय के उप-जिलाधिकारी एवं तहसीलदार दोनों का तबादला हो चुका है, इसलिए अब आए नए अधिकारी इस तरह की बातें कर रहे हैं। गाँव में कच्चे एवं पक्के दोनों तरह के मकान थे। गाँव के कुछ गरीब परिवार अगर कच्चे मकान या झोपड़ी में रह भी रहे थे, तो क्या प्रशासन उनकी मदद नहीं करेगा? उन गरीबों को तो सबसे ज्यादा मदद की जरूरत है।’ कहकर वे अपनी बात खत्म करते हैं।

क्षतिपूर्ति की राशि 2 दिन में आ जाने के आश्वासन पर प्रमोद सिंह कहते हैं, ‘ऐसे आश्वासन हमें पिछले 2 महीने से मिल रहे हैं। एक महीने पहले जब हमने कानूनगो साहब से बात की थी तब उन्होंने भी 2-3 दिन के अंदर मुआवजा राशि आने की बात कही थी। देखते ही देखते एक महीना बीत गया, मुआवजा राशि का कोई अता-पता नही है।

ये कहानी है अपनी जमीन, अपना घर और अपने होने का अर्थ तलाश रहे बेघर हुए तीर्थनगर मजरा के ग्रामीणों की। खादर के इलाके में बेघर हुए ग्रामीण अपने खेतों की झोपड़ी में बैठकर देख रहे हैं एक अदद पक्के मकान का सपना। समय के साथ-साथ सर्दी का प्रकोप बढ़ रहा है, जीवन की दुश्वारियां भी बढ़ रही हैं। सरकार कब सुध लेगी? ग्रामीणों को कब बसाया जाएगा? कश्मीरा बाई के पास अपना घर कब होगा? जैसे प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here