वर्तमान परिपेक्षय में समाज में शांति सद्भाव की स्थापना के साथ ही मजबूत लोकतंत्र की मांग और सामाजिक न्याय का माहौल स्थापित करने के लिए 3 दिवसीय पदयात्रा दूसरे दिन मुंगीसापुर से शुरू हुई। कांशीराम, रामस्वरूप वर्मा और ललई सिंह पेरियार की स्मृति में निकली सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) की सामाजिक न्याय पदयात्रा डेरापुर, मंगलपुर होते हुए झींझक पहुंची। पदयात्रा के दौरान आम बुजुर्ग भी इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।
समाजवादी नेता और अर्जक संघ के संस्थापक रामस्वरूप वर्मा के किए गए कार्यों और वंचित समाज के लिये किये गये उनके प्रयासों और संघर्षों को आज भी ग्रामवासी याद रखे हैं। उनके सामाजिक बदलाव की बयार में कंधा से कंधा मिलाकर लड़ने वालों की कहानियों को याद करके बुजुर्ग हो चुकी आँखों में एक चमक उठ जाती है।
आमजन सोशलिस्ट पार्टी के उस समय के संघर्षों की सफलता को याद करके कहते हैं कि वर्तमान समय में सामाजिक बदलाव के बगैर ईमानदारी पूर्वक राजनीति करना कठिन हो गया है, पर आप लोगों के प्रयासों से हो सकता है कि सोशलिस्ट पार्टी की बंजर ज़मीन पर एक बार फिर फ़सल लहलहा उठे। पद यात्रा से क्षेत्र के लोगों में उम्मीद और बदलाव की रोशनी नज़र आ रही।
फिर गूंजा महिला आरक्षण समेत कई मांगों का मुद्दा
पदयात्रियों ने कहा कि महिलाओं को 33% के बजाए 50% आरक्षण दिया जाए और एसी/एसटी और ओबीसी महिलाओं का आबादी के अनुपात में कोटा तय हो। मंडल आयोग की सम्पूर्ण सिफारिशों को लागू किया जाए, कोलेजियम सिस्टम जैसे न्यायिक नासूर को खत्म किया जाए, नियुक्तियों में आरक्षण के प्रावधानों पालन किया जाए और मानकों का अनुपालन न करने वाले अधिकारियों को दण्डित किया जाए, निजीकरण को समाप्त किया जाए, जो भी निजी क्षेत्र हैं, उनमें आरक्षण पूर्णतः लागू किया जाए, चुनाव को निष्पक्ष कराने हेतु ईवीएम जैसी अविश्वसनीय पद्धति को समाप्त किया जाए, चुनाव अनुपातिक प्रणाली पर कराए जाएं यानी जिस दल के जितने प्रतिशत मत हों, उसी अनुपात में विधायिका में उसके सदस्य हों, दलितों, पिछड़ों, मुसलमानों के साथ सौतेला व्यबहार बंद किया जाए जैसे मुद्दों को जोरदार तरीके से उठाया।
सामाजिक न्याय यात्रा का संदेश है कि जाति जनगणना के बगैर सामाजिक न्याय नहीं मिल सकता। देश में जाति जनगणना की मांग लंबे समय से की जा रही है। मंडल आयोग की सिफारिशों में भी जाति जनगणना कराने की बात कही गई। पिछले दिनों बिहार में जाति जनगणना के आंकड़ों के आने के बाद, उत्तर प्रदेश में भी जातिजणना करानेकी मांग कर रहे हैं।
केंद्र सरकार ने भी अन्य पिछड़ा वर्ग गणना कराने को कहा लेकिन फिर वादे से मुकर गए। 2011 में जाति जनगणना के जो आंकड़े आए उनको सार्वजनिक न करने से देश की पिछड़ी जातियों को उनका अधिकार नहीं हासिल हो पा रहा। देश में जनगणना होती है उसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की गणना होती है लेकिन पिछड़ी जातियों की गणना या जाति जनगणना नहीं की जाती। आने वाले दिनों में सरकार जब जनगणना कराए तो उसके साथ ही जाति जनगणना भी कराए।
बराबरी और सत्ता-संसाधनों पर न्याय संगत बंटवारे के लिए जाति जनगणना बहुत जरूरी है। जातिवार जनगणना साफ करेगी कि देश के सत्ता संसाधनों पर किसका कितना कब्जा है? किसका हक अधिकार आजाद भारत में नहीं मिला? कौन गुलामी करने को मजबूर हैं? हक अधिकार न देकर धर्म के नाम पर जनता को विभाजित किया जा रहा है और हिन्दुत्ववादी राजनीति मुसलमानों का डर दिखा कर चाहती है कि लोग जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को भुला कर हिंदू के नाम पर एक हो जाएं। राजनीतिक दल जाति जनगणना कराने के मुद्दे पर सहमत हैं तो वह चुनावी घोषणा पत्र में समयबद्ध जाति जनगणना कराने की मांग को शामिल करें।