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लोकसभा चुनाव 2024 : अबकी बार किसकी चुनावी नैया के खेवनहार बनेंगे निषाद

राम की नैया पार लगाने वाले निषाद और केंवट पिछले कई चुनावों से भाजपा के साथ खड़े रहे हैं। लेकिन इस बार भाजपा सरकार से निषाद नाराज चल रहे हैं। आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में निषाद किसके खेवनहार बनेंगे, यह तो 4 जून को आने वाले नतीजों से ही मालूम होगा।

उत्तर प्रदेश में निषाद जातियां चुनावी समीकरण बनाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। प्रदेश में निषाद समाज का 54 लोकसभा सीटों पर प्रभाव है। ऐसे में निषाद समाज को हर पार्टी लुभाने की कोशिश में लगी है। लेकिन माना जा रहा है कि इस बार आरक्षण के मुद्दे पर 17 अति पिछड़ी जातियां भाजपा सरकार द्वारा कोई सकारात्मक निर्णय न लिए जाने से नाराज चल रही हैं।

राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव ने कहा कि डबल इंजन सरकार बनने के बाद भी भाजपा क्यों वादा खिलाफी कर रही है। भाजपा का मछुआरा दृष्टिपत्र का संकल्प कहाँ गया?

निषाद कई जातियों में बंटा हुए बड़ा समाज है। पूर्वांचल में मुख्य रूप से मल्लाह, केंवट, बिन्द, पश्चिम में कश्यप, मल्लाह, निषाद, बाथम, तुरैहा, धीमर/धीवर, मध्य क्षेत्र में निषाद, कश्यप और बुन्देलखण्ड में निषाद, रायकवार के नाम से जाने जाते हैं। गोरखपुर, संतकबीरनगर, अम्बेडकरनगर, सुलतानपुर, मिर्जापुर, फतेहपुर, भदोही, जौनपुर, प्रयागराज, फतेहपुर सिकरी में 2.5 लाख से 4.5 लाख निषाद मतदाता हैं।

 सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट की बात करें तो, उत्तर प्रदेश के जाति समीकरण में पिछड़ा वर्ग की ग्रामीण क्षेत्रों में आबादी 54.05 प्रतिशत है। 13 पिछड़ी जातियों की आबादी 1 प्रतिशत से अधिक है।

निषाद, बिन्द, कश्यप प्रभावित लोकसभा क्षेत्र

उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या में पिछड़ी जातियों में सबसे बड़ा जाति समूह निषाद मछुआ जातियों का है। प्रदेश की 80 में 54 लोकसभा व 169 विधानसभा क्षेत्र निषाद प्रभावित क्षेत्र हैं, जहां हार-जीत का निर्णय निषाद-मल्लाह, केंवट, कश्यप, बिन्द, बाथम, रायकवार करते हैं। 80 में 23 सीटें ऐसी हैं, जहां निषाद मछुआ जातियों के 2 से 4.5 लाख तक मतदाता हैं।

गोरखपुर, महाराजगंज, संतकबीरनगर, डुमरियागंज, अम्बेडकरनगर, जौनपुर, बांसगांव, भदोही, मिर्जापुर, प्रयागराज, फतेहपुर, आंवला, फतेहपुर सिकरी, हमीरपुर, बांदा-चित्रकूट, शाहजहांपुर, बहराइच, अयोध्या, चंदौली, फिरोजाबाद, इटावा व अकबरपुर-रनिया के लोकसभा सीटों पर मल्लाह, बिन्द, कश्यप, केवट मतदाता ही चुनाव परिणाम में निर्णायक भूभिका निभाते हैं।

जिन लोकसभा क्षेत्रों में 1.25 लाख से 2 लाख तक निषाद समूह की जातियों के मतदाता हैं, उसमें 31 लोकसभा की सीटें शामिल हैं। जिसमें बलिया, गाजीपुर, सलेमपुर, वाराणसी, मछलीशहर, फूलपुर, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, उन्नाव, जालौन, कन्नौज, फर्रुखाबाद, एटा, धौरहरा, बाराबंकी, श्रावस्ती, शामली, कैराना, मुजफ्फरनगर, बागपत, पडरौना, कैसरगंज, पीलीभीत, बदायूं, राबर्ट्सगंज, आजमगढ़, लालगंज, गोंडा, बस्ती शामिल हैं।

निषादों का नेता लौटनराम या संजय निषाद?

लौटनराम निषाद लगभग तीन दशक निषाद मछुआ समुदाय की जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने व मछुआरों के परम्परागत पुश्तैनी पेशे (मत्स्यपालन, बालू-मोरम खनन पट्टा) के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं।

प्रदेश में यदि चर्चित निषाद नेताओं की बात की जाए तो, लौटनराम निषाद व निषाद पार्टी के अध्यक्ष सह मत्स्यमंत्री संजय निषाद का नाम अक्सर चर्चा में रहता है। लौटनराम निषाद की पहचान निषाद के साथ-साथ बहुजन नेता व सामाजिक न्याय की मुखर आवाज के रूप में है। लौटनराम जहां समाजवादी पार्टी के साथ हैं तो, संजय निषाद एनडीए का हिस्सा हैं।

संजय निषाद उस समय चर्चा में आए जब कसरवल में निषाद आरक्षण आन्दोलन में इटावा के अखिलेश निषाद की गोली लगने से मौत हो गयी थी। संजय निषाद श्रीराम-निषाद राज की मित्रता वाली रामराज की बात करते हैं, वहीं लौटनराम निषाद भाजपा पर राम को शरण देने व गंगा पार कराने वाले निषाद राज के वंशजों के साथ वादाखिलाफी व धोखाधड़ी करने व फूलन देवी के हत्यारे को बचाने व निषाद मछुआरों का परम्परागत अधिकार छीनने वालों की सरकार बताते हैं।

सपा-भाजपा की निषाद वोट बैंक पर नजर

उत्तर प्रदेश में निषाद वोट बैंक पर भाजपा व सपा की नजर है। इनकी निर्णायक स्थिति को देखते हुए भाजपा निषाद जातियों को साधने में जुटी हुई है। भाजपा की अब तक की घोषित प्रत्याशियों में फतेहपुर से साध्वी निरंजन ज्योति निषाद, संतकबीर नगर से इं.प्रवीण कुमार निषाद व आंवला से धर्मेंद्र कश्यप को उम्मीदवार बनाया, वहीं सपा ने गोरखपुर से काजल निषाद, सुलतानपुर से भीम निषाद, मिर्जापुर से राजेंद्र एस.बिन्द, शाहजहांपुर से राजेश कश्यप को उम्मीदवार बनाया है।

योगी मंत्रीमंडल में संजय कुमार निषाद (कैबिनेट में), नरेन्द्र कुमार कश्यप राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) व रामकेश निषाद राज्यमंत्री हैं। पिछली बार भाजपा ने बाबूराम निषाद को राज्यसभा व संजय निषाद, नरेन्द्र कुमार कश्यप को विधान परिषद में भेजा था। वहीं इस बार डॉ.संगीता बलवंत को राज्यसभा में समायोजित किया है।

समाजवादी पार्टी ने शामली के किरणपाल सिंह कश्यप को विधान परिषद में भेजा है। भाजपा ने भदोही से बिन्द को उम्मीदवार बनाने पर मंथन कर रही है। सपा से पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत उर्फ पप्पू निषाद व मेंहदावल नगर पंचायत चेयरमैन रमेश निषाद, जौनपुर से लौटनराम निषाद, बलिया से अनिल निषाद व फतेहपुर से पूर्व सांसद विशम्भर प्रसाद निषाद प्रबल दावेदार हैं।

कहां है भाजपा का फिशरमेन विजन डाक्यूमेंट्स का संकल्प

राष्ट्रीय निषाद संघ (एनएएफ) के राष्ट्रीय सचिव कहते हैं कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव-2012 के चुनाव घोषणापत्र व दृष्टिपत्र में संकल्प लिया था कि राम की नैया को पार लगाने वाले निषाद राज के वंशज (मल्लाह, केवट, बिन्द, कश्यप, मांझी, धीवर, धीमर, गोङिया, रायकवार, तुरहा, बाथम के साथ नोनिया, लोनिया, गोले ठाकुर, चौहान, भर, राजभर, कुम्हार, प्रजापति, बियार, बंजारा, नायक) को अनुसूचित जाति में शामिल कराया जायेगा।

निषाद मछुआरों के मत्स्य पालन, बालू-मोरम खनन का पट्टा का अधिकार सुरक्षित किया जायेगा। 5 अक्टूबर,2012 को तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी व सुषमा स्वराज ने फिशरमेन विजन डाक्यूमेंट्स जारी कर संकल्प लिया था। संकल्प पत्र में 2014 में सरकार बनने पर आरक्षण की विसंगति दूर कर निषाद मछुआरा समाज की जातियों को एससी/एसटी का कोटा दिलाया जायेगा और नीली क्रांति के माध्यम से मछुआरों का आर्थिक उत्थान भी किया जायेगा।

निषाद राजनीति का इतिहास

1926 में जब डॉ.अम्बेडकर बाम्बे प्रेसीडेंसी के एमएलसी बने थे,उस समय संयुक्त प्रान्त से कोर्ट ऑफ अवध के वकील बाबू रामचरणलाल मल्लाह भी एमएलसी बने थे। बात करें 1977 की तो, उस समय बाबू मनोहरलाल निषाद एडवोकेट कानपुर व जयपाल सिंह कश्यप एडवोकेट आंवला से सांसद बने थे। 1952 के आम चुनाव में गांधी जी के शिष्य प्रभुदयाल विद्यार्थी बांसी-बस्ती से विधायक निर्वाचित हुए। हेमवती नंदन बहुगुणा की सरकार के समय एमएलसी छेदीलाल साथी एड.की अध्यक्षता में सर्वाधिक पिछड़ावर्ग आयोग गठित किया गया। जिसकी सिफारिश पर जनता पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री रामनरेश यादव ने पिछड़ावर्ग की जातियों को 15 प्रतिशत आरक्षण कोटा दिया।

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