बर्फ की चादर को ओढ़कर मन्द-मन्द मुस्कुराता हुआ सेला पास। सेला दर्रा या से ला (ला का मतलब है- दर्रा ) भारत के खूबसूरत राज्य अरुणाचल प्रदेश के तवांग ज़िले और पश्चिम कमेंग ज़िले के मध्य अवस्थित एक उच्च तुंगता वाला पहाड़ी दर्रा है। इसकी ऊँचाई 4,170 मीटर (13,700 फुट) है और यह तिब्बती बौद्ध शहर तवांग को दिरांग और गुवाहाटी से जोड़ता है। इस दर्रे से होकर ही तवांग शेष भारत से एक मुख्य सड़क के माध्यम से जुड़ा हुआ है। हिमालय पर्वत पर अवस्थित सेला से तवांग की दूरी लगभग 75 किलोमीटर है। इस दर्रे के आस-पास वनस्पति अल्प मात्रा में उगते हैं। जो उगते हैं वह ठंड से ठिठुर कर अपनी ज़िंदगी को अपने में ही समेट लेते हैं। सेला पास में नाम मात्र की है हरियाली। जिधर देखो उधर है धवल बर्फ की खुशहाली।
यह क्षेत्र आमतौर पर वर्ष भर बर्फ से ढका रहता है। इस दर्रे के शिखर के नजदीक स्थित सेला झील, इस क्षेत्र में स्थित लगभग 101 पवित्र तिब्बती बौद्ध धर्म के झीलों में से एक है। हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर स्थित इस मनमोहक स्थान सेला पास पर फरवरी और मार्च महीने में लगभग 7 डिग्री सेल्सियस तापमान रहता है, जहां अनवरत बर्फबारी होती रहती है और ठंड से ठिठुरते हुए श्वेत-श्याम शिखर से शीतल हवाएं अठखेलियां करती रहती हैं। कभी-कभी इतनी बर्फबारी होती है कि रास्ते बर्फ से अवरुद्ध हो जाते हैं और गाड़ियां बीच सफर में ही फंसकर ठिठुरने या यूं कहें कंपकंपाने लगती हैं। भारत सरकार ने 2018-19 के बजट में सभी मौसम में परिवहन की सुविधा से युक्त सेला दर्रा सुरंग के निर्माण हेतु वित्तपोषण की घोषणा की।
एक अनुश्रुति के अनुसार 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान जसवंत सिंह रावत नामक भारतीय सेना के एक वीर जवान ने इस दर्रे के नजदीक चीनी सैनिकों के खिलाफ अकेले युद्ध किया था। जसवंत सिंह रावत को उनके साहस एवं कर्तव्य के प्रति समर्पण के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण एवं गरिमामय है।
केंद्रीय विद्यालय टेंगा वैली से सेला की दूरी लगभग 122 किमी. है। ज़िंदगी की भांति घुमावदार एवं ऊंचे नीचे रास्ते। दोल बहादुर थापा सर के मार्गदर्शन में हम सब सेला की ओर चल दिए। शिक्षकवृंद के साथ संगीतय सफर। केंद्रीय विद्यालय टैंगा वैली परिवार के साथ बादलों की बस्ती में मस्ती। शिक्षक साथियों के साथ बर्फीली सेला झील पर उछलना, कूदना, दौड़ना, लेट कर आनन्दानुभूति करना, सर-सर, सर-सर, सरसराती हुई शीतल पवन एवं श्वेत श्याम वारिद संग बर्फ पर दौड़ना जीवन में सदा याद रहेगा।
सेला दर्रा तिब्बती बौद्ध धर्म का एक पवित्र स्थल है। बौद्धों का मानना है कि यहाँ आस-पास में 101 पवित्र झीलें हैं। देश-विदेश से पर्यटक वर्ष भर यहां आनंद लेने आते रहते हैं।
सिर्फ पर्यटकों को ही नहीं अपितु सेला को भी अपने प्यारे पर्यटकों से मोहमय प्रेम हो जाता है। तभी तो कोमल-कोमल बर्फ सबको गले लगाने लगती है।