Tuesday, July 1, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

डॉ जय प्रकाश कर्दम

भारतीय सामाजिक क्रान्ति के सूर्य ज्योतिबा फुले

समाज की रूढ परम्पराओं, अंधविश्वासों, धार्मिक मान्यताओं तथा सामाजिक भेदभाव, उपेक्षा और शोषण का प्रतिकार कर समाज के तिरस्कृत, वंचित, उपेक्षित वर्गों और जातियों में समानता, सम्मान और स्वाभिमान चेतना का संचार करने वाले कबीर की वाणी का यह उपहास उनका अपमान है। यही हाल संत रविदास का हुआ। उनको भी ईश्वर भक्त के रूप में ही प्रचारित किया गया है।

मजबूत कहानीकार होने के बावजूद मुक्तिबोध एक कवि की छवि से क्यों नहीं मुक्त हो पाए?

मुक्तिबोध की बड़ी पहचान कवि के रूप में है। कविता उनके अंतर्मन में रची-बसी प्रतीत होती है। शायद यही कारण है कि उनकी कहानियों की भाषा भी कवित्वपूर्ण दिखायी देतीहै। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कविता में कहानी कहने का प्रयास किया गया है। कई स्थानों पर उनके पात्र संस्कृत नाटकों की भांति अपने संवादों में ‘मेरे देवता, मेरे ध्येय’, ‘हृदय कामने’, ‘हृदयेश्वर’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं। इन कहानियों में फेंटेसी भी है और आधुनिकता भी। उनके पात्र फेंटेसी और आधुनिकता के द्वंद्व का शिकार है। वे इस द्वंद्व से बाहर निकलने के लिए बेचैन हैं।

मुझे गर्व है कि मैंने पेरियार ललई सिंह यादव को देखा था

आज बहुत से लेखक और उनकी रचनाएँ चर्चा में है। नए-नए लेखक नयी-नयी रचनाओं के साथ सामने आ रहे हैं, अपने समाज के नायकों की खोज और उन पर लिखने के प्रति रुझान भी इस दौरान विकसित हुआ है। किंतु ललाई सिंह जैसे जन-नायक पर कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ है। नई पीढ़ी उनके जीवन-संघर्ष, रचना-कर्म और शोषण-मुक्त समाज के निर्माण में उनकी भूमिका के बारे में बहुत कम जानती है|

लोक-कहावतों में जातीयता

(दूसरी किस्त) कहावत अर्थात ऐसा कहा जाता है। तात्पर्य है परम्परागत रूप से कही जाने वाली बात। कहावतों को अनुभूत सत्य माना जाता है।...
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