चन्दौली जिले का धानापुर गांव गंगा नदी के तट पर बसा हुआ है। यूं तो धानापुर एक कस्बाई बाज़ार है और वहाँ ढेरों दुकानें हैं। लोगों का अच्छा-खासा जमावड़ा दिखता है लेकिन वाराणसी से 42 किमी की दूरी पर स्थित यह गांव वास्तव आज सरकार और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षाओं का शिकार है। पिछली दो सरकारों में जिले के दो-दो केन्द्रीय मंत्री भी रहे हैं। बावजूद इन सबके इस क्षेत्र का कोई विकास नहीं हुआ। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां पर न ही शिक्षा और न ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम हुआ। पढ़-लिखकर बेरोजगार युवा दर-दर की ठोकरें खा रहा है। किसानों की समस्याएं अलग। गंगा की कटान में जोत वाली जमींने चली जा रही हैं और किसान कुछ नहीं कर पा रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि सांसद और केन्द्रीय मंत्री महेन्द्रनाथ पाण्डेय दस साल क्षेत्र की जनता की समस्याओं से पूरी तरह से कटे रहे हैं। इससे जनता में उबाल है।
इस इलाके को लेकर बिरहा गायक मंगल यादव अपनी स्मृतियाँ साझा करते हैं, ‘धानापुर की यह धरती शहीदों की धरती कही जाती है। आजादी के दौरान 16 अगस्त 1942 को यहां का थाना फूंका गया था। एक तो यह शहीदों की धरती है। दूसरे यह विद्वानों की भी धरती है। आप जानते होंगे हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य विद्वान डॉ नामवर सिंह और डॉ काशीनाथ सिंह इसी धानापुर की धरती से पैदा हुए हैं। यह धरती संतों और समाजवादियों की भी धरती रही है।’
‘इस इलाके में सभी धर्मों के लोग रहते हैं। जब चन्दौली जिला वाराणसी का हिस्सा हुआ करता था तो वाराणसी जिले के दो ही गांव उस समय जाने जाते थे, एक था धानापुर और दूसरा था धौरहरा। आज धानापुर में देखा जाय तो मुस्लिम समुदाय के ज्यादा लोग हैं। राजपूत भी अगल-बगल में रहते हैं। यादव भी हैं। लोगों में आपसी तालमेल रहता है। मैंने तो देखा है कि यहां हिन्दू और मुसलमान एक दूसरे के त्यौहारों में शरीक होते रहे हैं। 1992 की घटना न हुई होती तो यह भाईचारा आज भी पहले की तरह ही बना रहता।’
मंगल यादव एक शिक्षक रहे हैं। एक शिक्षक के बतौर इस क्षेत्र के बदलाव पर वह कहते हैं कि ‘पिछले 20-25 वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में कुछ विशेष विकास नहीं हुआ है। देखा जाय तो यह बुद्धिजीवियों का इलाका जरूर रहा है लेकिन यहां केवल एक सरकारी डिग्री कॉलेज है। वह भी कैलाशनाथ सिंह यादव केंद्रीय शिक्षामंत्री हुआ करते थे, उन्हीं के समय का खुला है। एक नवोदय विद्यालय रामगढ़ में खुला है। उसके अलावा यहाँ शिक्षा के क्षेत्र में कोई नया काम नहीं हुआ है। यहां तक की केन्द्र में मंत्री रहे महेन्द्र नाथ पाण्डेय को इससे संबंधित डाटा भी उपलब्ध करवाया गया था। उन्होंने चाहा होता तो इस क्षेत्र में कुछ काम कर सकते थे लेकिन उन्होंने भी इस दिशा में कोई काम नहीं किया। अब उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए लोगों को शहर जाना पड़ रहा है। शहर में वही शिक्षा प्राप्त कर सकता है जिसके पास पैसा है। गरीबों की शिक्षा के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में नौजवान धीरे-धीरे पिछड़ते जा रहे हैं।’
नौजवानों की दुर्दशा पर मंगल यादव कहते हैं ‘आज लोग नौजवानों से कह देते हैं कि चलो वोट दे दो तो वे वोट तो दे दे रहे हैं। लेकिन इतनी पढ़ाई-लिखाई करके कोई बीए, बीटीसी, बीएड और बीटेक करके नौजवान बैठे हुये हैं और उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है। वे आज इस बात को समझने लगे हैं। अभी हाल ही में पुलिस की भर्ती का पेपर ही लीक हो गया। कम्पटीशन होता तो उसमें बहुत सारे नौजवानों को नौकरी मिलती न। ऐसे में उनके अन्दर हीनता का भावबोध हो रहा है। इसलिए नौजवानों में आज आक्रोश है। लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि जो नौजवान इतनी पढ़ाई-लिखाई करके बेरोजगार इधर-उधर घूम रहा है। जिसके पास कोई रोजगार नहीं है। उनके संज्ञान में यह बात अभी भी है कि इस सरकार ने उन्हें नौकरी नहीं दी।’
ग्रामसभा धानापुर नरौली के रहने वाले जयप्रकाश यादव का घर गंगा नदी के एकदम किनारे पर है। वे गंगा के कटान से प्रभावित किसान हैं। जयप्रकाश बताते हैं, ‘अभी तक कटान रोकने की दिशा में किसी नेता ने पहल नहीं की। समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक मनोज सिंह डब्लू ने काफी प्रयास किया। लोगों की जमीन को बचाने के लिए आन्दोलन भी किया। पूर्व सांसद और केन्द्रीय मंत्री महेन्द्र पाण्डेय चाहते तो हमारी समस्या दूर हो गई होती लेकिन उन्होंने इस दिशा में कोई पहल नहीं की। सच तो यह है कि दस साल में केवल अखबारों में उनकी फोटो ही देखने को मिली।’
बीजेपी की सरकार से लोगों ने बड़ी उम्मीदें पाल रखी थी लेकिन वह उनकी उम्मीदों पर अभी तक खरी नहीं उतरी। इसके चलते उसके प्रति लोगों में निराशा के साथ ही आक्रोश का भाव भी है। चन्दौली जिले में गंगा के किनारे के गांवों की जोत वाली जमीनें गंगा में समाहित होती जा रही हैं लेकिन गांव के लोगों का आरोप है कि सरकार ने कटान को रोकने की दिशा में कोई पहल नहीं की।
धानापुर के ही निवासी सच्चिदानंद विश्वकर्मा जो प्राइवेट स्कूल में पढ़ाकर अपना परिवार चला रहे हैं। वह कहते हैं, ‘प्राइवेट टीचरों के सामने परेशानियां बहुत हैं। एक प्राइवेट टीचर किस प्रकार से अपना परिवार चला रहा है यह तो वही जानता है। प्राइवेट टीचरों के लिए सरकार की ओर से आज कोई व्यवस्था नहीं है। उनकी पढाई-लिखाई में भी कहीं कोई कमी नहीं होती। लेकिन आज ये लोग उपेक्षा के शिकार हैं। किस प्रकार की उदासी में वह अपना जीवन बिता रहा है यह वही जानता है। उसे अपनी योग्यता साबित करने के लिए खुद को ज्यादा माजना होता है। बाजार में उसे खुद को बनाए रखने और अच्छा देने का भी भार होता है। हमारे प्रदेश के साथ ही दूसरे प्रदेशों के सरकारी स्कूलों की स्थिति बड़ी ही दयनीय है। आज देखा जाय तो सरकारी स्कूलों में अच्छे और ट्रेंड अध्यापक आ रहे हैं। लेकिन बच्चे स्कूल में क्यों नहीं आ रहे हैं? यह एक बड़ा सवाल है।
सच्चिदानंद से अभी बातचीत चल ही रही थी कि सबको रोकते हुए धानापुर के ही बी एन सिंह आ गए। उनके चेहरे पर गुस्से का भाव झलक रहा था। वह बोले, ‘मेरा नाम बीएन सिंह है। जाकर मोदी-योगी से कह दीजिएगा। जो करना होगा कर लेंगे।’ किसी तरह से शांत कराकर उनसे बातचीत शुरू की गई। वह आगे बोले, ‘ओवरब्रिज, मैट्रो ट्रेन और हवार्ई अड्डा से थोड़े ही देश चलता है। मैं रोजगार चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चों को रोजगार मिले जिसके लिए फैक्ट्री लगनी चाहिए। आप किसी भी दरवाजे पर चले जाइए बच्चे ताश खेलते हुए मिल जाएंगे, क्योंकि उनके पास रोजगार नहीं है।’ बीएन सिंह ने पूर्व सांसद महेन्द्रनाथ पांडेय की निंदा की, ‘सांसद जी ने यहां के लोगों के लिए कुछ नहीं किया।’
किसानों की शिकायत यह है कि सरकार उन्हें लगातार धोखे में रखने के अलावा कुछ नहीं कर रही है। बाज़ार की हालत यह है कि वह किसान का खून जोंक की तरह पी रहा है लेकिन उस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं। असल में आज अगर किसान आत्मनिर्भर होकर खेती करना चाहे तो वह नहीं कर सकता। इसीलिए सरकार उसे पाँच सौ रुपये महीने देकर भरमा रही है जबकि इसका कई गुना किसान हर महीने लुटाने के लिए मजबूर है। स्थानीय किसान रामनगीना यादव कहते हैं, ‘यहां के किसानों की सबसे बड़ी समस्या है पानी। खाद भी महंगी हो गई। जो खाद की बोरी 50 किलो की आती थी वह अब 45 किलो की आने लगी। दाम हालांकि वही है। कांग्रेस के जमाने में डीएपी खाद हम लोगों को आसानी से मिल जाया करती थी।’
वह कहते हैं ‘जब हम अपना अनाज लेकर सोसाइटी पर जाते हैं तो वहां नम्बर से धान लेते हैं। इस तरह की व्यवस्था होनी चाहिए कि किसानों को एक हफ्ते रुकना न पड़े। भाड़े पर ट्रैक्टर लेकर जाइए तो गाड़ी वाला माल पहुंचाकर चला आता है। अब आप वहां टेंट लगाकर अपने सामान की रक्षा करिए। इन्हीं सब दिक्कतों के चलते किसान अपनी उपज को बिचैलियों को बेचने के लिए मजबूर हो जा रहे हैं।’
संयुक्त किसान मोर्चा के चन्दौली के जिलाध्यक्ष शेषनाथ यादव किसानों की समस्याओं पर कहते हैं, ‘सड़क पर कील गाड़ना, बैरिकेडिंग करना, आंसू गैस के गोले छोड़ना सरकार के लिए अब यही मुख्य मुद्दा है। यहां पर अगलगी की घटना हुई। अघिकारियों के पास इतना मौका नहीं है कि वे सर्वे कर रिपोर्ट भेजें। यही नहीं, लेखपाल को भी मौका नहीं मिल पा रहा है कि वही आकर सर्वे करे और फोटो खींचकर रिपोर्ट लगा दे।’
शेषनाथ यादव पूछते हैं, ‘अगलगी की घटना का सर्वे कर रिपोर्ट लगाने का काम कौन करेगा? क्या यह काम सत्ता पक्ष ही करता है कि कोई और?’
शेषनाथ कहते हैं, ‘किसान सम्मान निधि एक लालीपाप है। साल में 6 हजार रुपए से किसानों का कितना भला होने वाला है? पहले खाद 50 किलो की बोरी में आती थी। इस सरकार ने क्या किया? दाम न बढ़ा करके 5 किलो यूरिया ही कम कर दिया। बात तो वही हुई कि दाम न बढ़ा के वजन कम कर दिए। कान को चाहे इधर से पकड़िए चाहे उधर से घुमाकर पकड़िए। बात तो वही हुई ना। किसान पढ़ा-लिखा नहीं है लेकिन अपनी किसानी से संबंधित मामलों को जानता है।’
‘नीम कोटेड यूरिया को सरकार उंचे दाम पर बेच रही थी। उससे किसानों को कोई फायदा नहीं हो रहा था। पहले जब हम देसी खाद खेतों में डालते थे तो यही गन्ना पैदा होता था तो शुगर के मरीज कम होते थे। आज गन्ना बंद हो गया तो घर-घर शुगर मरीज हो गए हैं। इन लोगों ने कहा कि जैविक खाद बंद करिए। केमिकल खाद डालिए। किसानों ने केमिकल खाद डालना शुरू किया। केमिकल खाद की बदौलत चन्दौली जिला धान का कटोरा कहलाने लगा। यहां बड़ी मात्रा में धान पैदा होने लगा। अब ये औने-पौने दाम पर धान और गेहूं की खरीद करने लगे। आप जिला कृषि अधिकारी से पता कर लीजिए कि क्या सरकार ने चन्दौली जिले में गेहूं और धान की खरीद का लक्ष्य पूरा कर लिया? आज किसान अपना धान कुटा रहा है और सीधे बनिया को बेच दे रहा है। सरकार को अपनी फसल बेचना बंद कर दिया। एक तो औने-पौने दाम पर किसानों से फसल खरीदेंगे। ऊपर से पन्द्रह दिन में पैसा आयेगा कि एक महीने में आएगा। वह भी निश्चित नहीं है। तो सरकार को कोई क्यों देगा फसल? जबकि किसान को सरकार से ऊँचे दाम पर तुरंत पैसा मिल जा रहा है तो वह सरकार को क्यों अपनी फसल देगा। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और दवा-दारू है, सब तो उसी खेती पर ही निर्भर है। घर बार की तमाम प्रकार की समस्याएं हैं वह तुरंत पूरा कर ले रहा है।’
आप कहना चाह रहे हैं पारम्परिक खेती से किसानों को हटाया गया और कृत्रिम खेती के लिए मजबूर किया गया ताकि वे परनिर्भर हो जाएं? सवाल के जवाब में शेषनाथ यादव बोले, ‘जब किसान दिवस कार्यक्रम होता है तो हमें बताया जाता है कि मोटे अनाज की खेती करिए। तो हमने वैज्ञानिकों से पूछा कि हमने अपनी खेती को चाहे केमिकल डालकर चाहे जैविक खाद डालकर उपजाऊ बनाया और खेती की, लेकिन जब हमारी फसल तैयार हो जाती है तो उसके बाद उसका उचित दाम ही नहीं लगता। ऐसे ही आप लोगों ने काला चावल पैदा करने की बात की थी। जब किसानों ने काला चावल पैदा किया तो सरकार ने उसे खरीदने से हाथ खड़ा कर लिया। जैसे-तैसे बंगाल की एक कंपनी ने यहां के किसानों से औने-पौने दाम पर उसे खरीदा।’
आज भी हमारे पूर्वांचल के किसानों में कमियां हैं। जिस प्रकार से पश्चिम के किसान अपनी समस्याओं को लेकर एकजुट हो जाते हैं उस प्रकार से यहां के किसान एकजुटता नहीं दिखा पाते। 70 सालों तक कांग्रेस सत्ता में रही। उसने सब कुछ महंगा किया लेकिन खाद्यान्न को कभी महंगा नहीं किया। कभी उस पर टैक्स नहीं लगाया। क्योंकि एक अमीर के साथ ही गरीब व्यक्ति और झोपड़पट्टी में रहने वाला व्यक्ति भी उसी से जीता है। लेकिन इस सरकार ने खाद्यान्न पर भी टैक्स लगा दिया।