Thursday, November 21, 2024
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

सिनेमा

पश्चिम एशिया के देशों में जबरन पलायन और सिनेमा

विश्व के अबतक के ज्ञात इतिहास में समुदायों के बीच आपसी घृणा और हिंसा के प्रमाण मिलते है। हिंसा और अत्याचार के कारण कमजोर समुदायों को पलायित होने को बाध्य होना पड़ता है। वर्तमान हालात देखकर हम यह उम्मीद नहीं लगा सकते कि यह सब भविष्य में बंद भी हो सकेगा। संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी अन्तरराष्ट्रीय संस्थाएं प्रभावित लोगों के मदद का प्रयास अपने निर्धारित प्रोटोकाल के तहत करती हैं लेकिन वे पर्याप्त नहीं होते। दुनिया में हर समय कोई न कोई युद्ध चलता रहता है और लोग रेफ्यूजी बनने को मजबूर होते हैं। चूंकि यह समस्या सार्वभौमिक है इसलिए दुनिया के सभी देशों में उनके ऊपर साहित्य और सिनेमा भी रचा गया है।

सिनेमा : बॉलीवुड भी दक्षिण और दक्षिणपंथ के साए से बच नहीं पाया

कला, सिनेमा और साहित्य पर देश की राजनीति का असर साफ़ तौर पर पड़ता है। 2014 के बाद मनोरंजन के सबसे बड़े, प्रिय और चर्चित माध्यम सिनेमा में जो बदलाव देखने को मिला, उससे सभी लोग परिचित हैं। संघ मनोरंजन की इस दुनिया में भी घुसपैठ कर वैचारिक वर्चस्व को बरकरार करने में कामयाब हो गया। साथ ही ओटीटी जैसे माध्यम आ जाने के बाद पैन इंडिया सिनेमा के चलते दक्षिण के सिनेमा और उसके अभिनेताओं/अभिनेत्रियों का वर्चस्व हिंदी भाषी दर्शकों पर पड़ने से बॉलीवुड के कलाकारों की चमक फीकी हुई है।

हिंदी सिनेमा प्रवासियों का चित्रण सही परिप्रेक्ष्य में नहीं कर सका है

सिनेमा ने प्रवासी जीवन को सम्पूर्ण रूप से अभिव्यक्त किया है। बॉलीवुड बाजारोन्मुखी है, उसको प्रवासियों की वास्तविक समस्याओं से अधिक अपने मुनाफे में दिलचस्पी है। यहाँ जो फिल्में बनी हैं उस पर गौर करें तो पाएंगे उनमें पंजाबी चरित्र ही प्रमुख हैं। वहां शेष भारत वासी लगभग अनुपस्थित ही नजर आएंगे। वहां न तो दक्षिण भारतवंशी दिखेंगे और न ही लाखों पुरबिये गिरमिटिया मजदूरों (हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदायों) के वंशज। इस लिहाज से हमारा सिनेमा अभी एकांगी और यथार्थ से बहुत दूर ही है।

सिनेमा किस तरह उठा रहा है युवाओं के मुद्दे

श्रीलंका(2022) और बांग्लादेश (2024) में जब बात हद से आगे बढ़ी और निजाम अपनी जनता से दूर होकर तानाशाही को अपनाने लगा तो युवाओं ने उन्हें सत्ता से उखाड़कर फेंक दिया। हर देश के हुक्मरानों को युवाओं के मुद्दों को विशेष संवेदनशीलता से निस्तारित करना चाहिए अन्यथा जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चल पड़ता है और कोई भी सत्ता उन्हें रोक नहीं सकती। बॉलीवुड की अनेक फिल्मों में युवाओं को समाज और राजनीति के तंत्र के विरोध में लड़ते दिखाया गया है।

सिनेमा का सांप मनोरंजन और मुनाफे के लिए फुफकारता है

बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड फिल्मों में भी सांपों का प्रस्तुतिकरण पसंदीदा विषय रहा है। गाँव से लेकर शहर तक सांप हर जगह मौजूद भी हैं और उनसे जुड़ी तमाम कहानियां और मान्यताएं लोक में व्याप्त हैं। सिनेमा में इन साँपों को इतना चमत्कारिक दिखाया जाता है कि आम जनता इसे सच मानटी है। नागमणि, इच्छाधारी नाग ये ऐसे विषय है जिन पर हमारे देश में सैकड़ों फिल्मे और टीवी सीरियल बने। कहा जा सकता है कि साँपों से सामना करती जिंदगी डर रोमांच, मनोरंजन, किस्से कहानियों को रोज ही कहती-सुनती और बुनती रहती है।

‘अपने देश’ की अधूरी चाह लिये तुर्की के विस्थापितों का सिनेमाई आख्यान

जर्मनी में तुर्क एक एथनिक समुदाय के रूप में निवास करते हैं। यद्यपि इन दोनों देशों के प्रवास का इतिहास बहुत पुराना है लेकिन...

हमारी खोई हुई प्रतिभा से रू-ब-रू कराती हुई भूलन द मेज..

(भूलन द मेज पहली छतीसगढ़ी फिल्म, जिसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए चयनित किया गया) संभावनाओं से भरे युवा फिल्मकार मनोज वर्मा की फिल्म भूलन...

Cinema : बॉलीवुड में भद्रजनों के खेल क्रिकेट का ग्लैमर

क्रिकेट भद्रजनों का खेल था। इसमें कई दिनों तक आराम से चलने वाला टेस्ट मैच-समानांतर सिनेमा की तरह था। पचास ओवर का मैच कमर्शियल सिनेमा की तरह है तो टवेंटी-टवेंटी फार्मेट ओटीटी प्लेटफार्म वाले सिनेमा की तरह है। समय की कमी है और पैसा भी ज्यादा कमाना है, ज्यादा खेल ज्यादा खिलाड़ी ने सबकी उम्मीद बढ़ा दी है

एक ऐसा अभिनेता जो हिंदी सिनेमा की परम्परा को तोड़ता है

आयुष्मान खुराना बॉलीवुड के भरोसेमंद और प्रतिभाशाली अभिनेता हैं। वह फिल्मी दुनिया में बाहरी व्यक्ति हैं मतलब किसी जमे- जमाए परिवार से नहीं आते...

साहब, बीवी और गुलाम : ढहते हुए सामन्तवाद की दास्तान

सब कुछ बिक जाता है, हवेली की रौनक चली जाती है और एक दिन उसे तोड़ने की नौबत आती है। साहब मर चुके हैं, बीवी की हत्या हो चुकी है और ग़ुलाम सुपरवाइजर बनकर हवेली तोड़ने का काम करा रहा है। प्रतीकात्मक रूप से देखें तो यह ज़मींदारी के खात्मे और महाजनी सभ्यता (प्रेमचंद्र) के प्रभावी होते जाने की दास्तान है।

ऑस्कर में डोनाल्ड ट्रंप के दिए जख्मों पर मरहम लगाने का प्रयास

फिल्मों की दुनिया में नोबेल सरीखा महत्त्व रखने वाले एक और ऑस्कर अवार्ड्स की घोषणा 27 मार्च को हो गयी, जिसमें विविधता का रंग...