Monday, October 27, 2025
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राजस्थान : मिट्टी से भविष्य की फसल उगाते युवा

पिछले कई दशकों में युवा गांव में खेती-किसानी की जगह शहरी नौकरियों, मेट्रो-ज़िंदगी और शहरों की चमक-दमक की तरफ खिंचे चले आए हैं। लेकिन अब एक बार फिर से बदलाव नजर आने लगा है। कुछ युवा वापस गाँव और खेती की तरफ लौट रहे हैं या कम-से-कम खेती को एक सम्मानजनक, तकनीकी और लाभदायक करियर विकल्प के रूप में देखते हुए लाखों की आमदनी कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में बिजली दरों में वृद्धि : अमीरों को राहत लेकिन किसानों और गरीबों पर बढ़ेगा भार

छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत नियामक आयोग ने बिजली की दरों में भारी वृद्धि की घोषणा की है। 100 यूनिट तक उपभोग करने वाले लोगों पर, जिनमें से एकल बत्ती कनेक्शन धारी और गरीबी रेखा के नीचे और कम आय वर्ग के लोग शामिल हैं, उन पर 20 पैसे प्रति यूनिट का अतिरिक्त भार डाला गया है। जबकि कृषि क्षेत्र के लिए प्रति यूनिट 50 पैसे वृद्धि की गई है।

 टैरिफ युद्ध : क्या हम तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं?

डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल को अमेरिका की मुक्ति का दिन घोषित किया है। इसी दिन ट्रंप ने पूरी दुनिया के खिलाफ टैरिफ युद्ध छेड़ा है,जो अब तक के बनाए तमाम पूंजीवादी नियमों और बंधनों को तोड़कर केवल अमेरिकी प्रभुत्व और नियंत्रण की इच्छा से संचालित होता है। यह प्रभुत्व और नियंत्रण की इच्छा न्याय की किसी भी भावना और अवधारणा को कुचलकर आगे बढ़ना चाहती है।

राजस्थान के लोहार समुदाय के अस्तित्व और संघर्ष की कहानी : जब बर्तन बिकेंगे, तब खाने का इंतजाम होगा

लोहे के बर्तन बनाना लोहार समुदाय के लिए केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि उनकी पहचान और अस्तित्व का प्रतीक है। लेकिन बदलते समय के साथ उनके लिए रोज़ी रोटी चलाना मुश्किल होता जा रहा है। नयी तकनीक, सस्ते विकल्प और बदलते उपभोक्ता व्यवहार ने उनके पारंपरिक काम को संकट में डाल दिया है।

दाल देख और दाल का पानी देख!

नेफेड और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता फेडरेशन (एनसीसीसीसी) बता रहा है कि सरकार के गोदाम में केवल 14.5 लाख टन दाल ही बची है, जो कि न्यूनतम आवश्यकता का केवल 40% ही है। इसमें तुअर दाल 35000 टन, उड़द 9000 टन, चना दाल 97000 टन ही है, जिसे लोग खाने में सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। इन दालों की जगह दूसरी दाल के इस्तेमाल के बारे में सोचें, तो मसूर दाल का स्टॉक भी केवल पांच लाख टन का ही बचा है। भारत के संभावित दाल संकट पर संजय पराते।

बजट में मोदी सरकार ने फिर से किसानों को निराश

कहां की फसल की लागत मूल्य पर डेढ़ गुना बढ़ाने का दावा पहले भी कर दिए गए हैं, यह जानते नहीं कि फसल की लागत कितनी है। पहले सीमांत तथा लघु सीमांत किसानों की श्रेणी का पता नहीं चलता, जबकि अब यह पैमाना देखना होगा कि कितनी लागत फसल में लगी है। जिसके लिए सबसे पहले तो कृषि को उद्योग का दर्जा मिलने सहित किसान आयोग का गठन होना चाहिए। स्वामीनाथन आयोग के सिफारिशो को तत्काल लागू करना चाहिए। जिससे किसानों को कृषि में लाभ मिले।

विकास नहीं, भागीदारी को मिले तरजीह! (ऑक्सफाम रिपोर्ट-2022 के आईने में )

ऑक्सफाम की ताजी रिपोर्ट से जाहिर है कि नई सदी में विकास की जो गंगा बही है; जिस विकास के नाम पर शोर मचाकर मोदी जैसे लोग सत्ता दखल करते रहे हैं, उसमें  दलित,आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यकों को नहीं के बराबर हिस्सेदारी मिली। इसलिए तेज विकास में बहुजनों की नगण्य भागीदारी आज सबसे बड़ा मुद्दा है, जिससे राजनीतिक दलों सहित मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग आँखे मूंदे हुए है.ऐसे में यूपी चुनाव में आज  जिस विकास का शोर मचा रहे हैं, उसका बहिष्कार होना चाहिए क्योंकि इस विकास में दलित-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों से युक्त बहुजन समाज की बर्बादी का षड्यंत्र छिपा है।

किसान आंदोलन को लेकर असमंजस

किसान आंदोलन की एकजुटता और धैर्य ने सभी को प्रभावित किया था। लगता था कि यह आंदोलन धीरे धीरे न केवल समूचे देश में फैलेगा अपितु इससे मजदूर,छोटे व्यापारी और नौकरीपेशा मध्यम वर्गीय लोग भी जुड़ जाएंगे। निजीकरण, वैश्वीकरण और नगरीकरण जैसी अवधारणाओं को अब चुनौती दी जा सकेगी। कॉरपोरेट के स्थान पर कोऑपरेटिव की चर्चा होगी। अब गांव, खेती और किसान को केंद्र में रखकर देश का संचालन हो सकेगा।

जटिल है असमानता का विमर्श

सावित्री बाई फुले विश्वविद्यालय पुणे,जेएनयू तथा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ दलित स्टडीज द्वारा 20 राज्यों के 110800 परिवारों को सम्मिलित करते हुए सन 2015 से 2017 के मध्य किए गए अध्ययन के बाद संबंधित अध्ययनकर्ताओं  ने अपने निष्कर्ष में बताया कि 22.3 प्रतिशत उच्चतर जातियों के हिंदुओं के पास देश की 41 प्रतिशत संपत्ति है। जबकि 7.8 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति की आबादी के पास 3.7 प्रतिशत संपत्ति ही है। हिन्दू अनुसूचित जाति के लोगों के पास केवल 7.6 प्रतिशत संपत्ति ही है। अनुसूचित जाति का कोई श्रमिक सामान्य जाति के अपने समकक्ष श्रमिक की आय का केवल 55 प्रतिशत ही प्राप्त कर पाता है।

आखिर क्यों जरूरी है हड़ताल

सरकारी बैंक में आपको एक खाता खोलने के लिए अगर 100 रुपये या 500 रुपये से काम चल जाता है (या बिना पैसे का भी खाता बैंकिंग करेस्पोंडेंट द्वारा खुल जाता है), तो यही खाता आपको खुलवाने के लिए प्राइवेट बैंक में 5000 से 10000 रुपये लगेंगे। और उसके बाद भी अगर आपके खाते में न्यूनतम रकम इससे कम हुई तो प्राइवेट बैंक इतना शुल्क लगाएंगे कि आपका खाता ही कुछ महीनों में शून्य हो जाएगा।

सरकारी रेट पर धान की खरीद सुनिश्चित करे सरकार- आईपीएफ

आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट मांग करता है कि धान/गेहूं की खरीद में हो रहे भ्रष्टाचार की न्यायिक जांच कराई जाए। वर्तमान में धान खरीददारी में हो रहे भ्रष्टाचार को रोका जाए और सरकार किसानों से सरकारी रेट पर खरीदारी सुनिश्चित करे। साथ ही आईपीएफ सभी किसान संगठनों से भी अपील कर है कि वे धान की सरकारी खरीद में चल रहे भ्रष्टाचार का विरोध करें, ताकि किसानों को उनकी फसलों का एमएसपी मूल्य मिल सके।
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