सरकारी बैंक में आपको एक खाता खोलने के लिए अगर 100 रुपये या 500 रुपये से काम चल जाता है (या बिना पैसे का भी खाता बैंकिंग करेस्पोंडेंट द्वारा खुल जाता है), तो यही खाता आपको खुलवाने के लिए प्राइवेट बैंक में 5000 से 10000 रुपये लगेंगे। और उसके बाद भी अगर आपके खाते में न्यूनतम रकम इससे कम हुई तो प्राइवेट बैंक इतना शुल्क लगाएंगे कि आपका खाता ही कुछ महीनों में शून्य हो जाएगा।
बहरहाल हम इस हड़ताल के कारण की बात कर रहे थे, अब इसमें सबसे बड़ा और सबसे पहला कारण इन बैंक कर्मचारियों द्वारा निजीकरण का विरोध ही है। ये लोग, सरकार द्वारा लाये जाने वाले बिल जिससे दो बैंकों के निजीकरण का रास्ता साफ़ होने वाला है, का विरोध कर रहे हैं। इनकी मांग है कि सरकार लिखित में दे कि वह बैंकों का निजीकरण नहीं करेगी और अपने इस बात से वापस हो जायेगी। किसानों के विरोध प्रदर्शन और उसके बाद सरकार द्वारा चुनावों में संभावित हार के चलते कृषि बिल की वापसी के बाद कर्मचारियों का हौसला भी बढ़ा हुआ है।

इस सरकार ने अभी तक किसी बैंक को प्राइवेट नहीं किया है (IDBI बैंक की बात अलग है) लेकिन कई बैंकों को आपस में मिलाकर सरकारी बैंकों की संख्या में कमी कर दी है। इसका परिणाम यह निकला है कि अब कई बैंकों में स्टाफ बढ़ने की बात कहकर लोगों को जबरन रिटायर करने की बात हो रही है। जब देश में वैसे ही बेरोजगारी अपने चरम पर है तो ऐसे में सरकार का यह कदम आग में घी डालने का ही काम कर रहा है। एक समय कुल 27 सरकारी बैंक थे जो अब मात्र 12 बचे हैं और अभी भी इनको घटाकर पांच या छह करने की सरकार की मंशा है।
आज भी अगर किसी आम आदमी को अपना सामान्य बचत खाता खोलना हो या किसी भी सरकारी योजना में ऋण लेना हो तो वह सिर्फ और सिर्फ सरकारी बैंक से ही मदद की उम्मीद कर सकता है। जितने भी जनधन के खाते पहले खोले गए या आज भी खोले जा रहे हैं, वे सिर्फ और सिर्फ सरकारी या ग्रामीण बैंकों में ही खुलते हैं। सरकारी बैंक में आपको एक खाता खोलने के लिए अगर 100 रुपये या 500 रुपये से काम चल जाता है (या बिना पैसे का भी खाता बैंकिंग करेस्पोंडेंट द्वारा खुल जाता है), तो यही खाता आपको खुलवाने के लिए प्राइवेट बैंक में 5000 से 10000 रुपये लगेंगे। और उसके बाद भी अगर आपके खाते में न्यूनतम रकम इससे कम हुई तो प्राइवेट बैंक इतना शुल्क लगाएंगे कि आपका खाता ही कुछ महीनों में शून्य हो जाएगा। अब ऐसे में इस देश का किसान या मजदूर किस प्राइवेट बैंक में अपना खाता खुलवाएगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इस समय भी सरकार की एक बहुत महत्तवाकांक्षी योजना ठेले पर कारोबार करने वाले गरीब लोगों के लिए है जिसमें उनको 10000 रुपये का ऋण दिया जा रहा है। यह योजना भी सिर्फ और सिर्फ सरकारी बैंकों के द्वारा ही पूरी की जा रही है, प्राइवेट बैंक तो इसके लिए हाथ भी नहीं बढ़ाते।
ऐसे में दो विरोधाभासी चीजें सामने आती हैं कि अगर सरकार की मंशा सभी बैंकों को निजी हाथों में बेचने की है तो वह अपने पूंजीपति दोस्तों की तो मदद कर देगी लेकिन अपने तमाम कल्याणकारी योजनाओं को आखिर किस बैंक के मदद से चलवायेगी। ये निजी बैंक तो कम से कम इन योजनाओं में अपना योगदान नहीं ही करेंगे, उनको तो सिर्फ और सिर्फ अपने मुनाफे से मतलब है, जनता की भलाई से नहीं. तो इससे एक ही निष्कर्ष निकलता है और वह बहुत भयावह नजर आता है, क्या सरकार आगे चलकर सभी कल्याणकारी योजनाओं से अपना हाथ खींच लेगी। और अगर ऐसा होता है तो इस देश के लगभग 40 प्रतिशत लोगों का क्या होगा जिनको न तो बेहतर जिंदगी दी जा सकी है और न ही उनको उनके हाल पर छोड़ा जा सकता है। शायद यह भी एक कारण हो जिसके चलते तमाम युवा और कर्मचारी इस हड़ताल के लिए आगे आये हैं।
विनय सिंह युवा कहानीकार हैं। फिलहाल उज्जैन में रहते हुए बैंक में पदस्थ हैं ।