Thursday, November 21, 2024
Thursday, November 21, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमराष्ट्रीयराष्ट्रीय किसान दिवस : किसानों के सामने विकराल हो रही है विस्थापन...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

राष्ट्रीय किसान दिवस : किसानों के सामने विकराल हो रही है विस्थापन की समस्या

किसान दिवस 23 दिसंबर पर विशेष  आज की तारीख यानी 23 दिसंबर राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाई जाती है। इस तारीख को किसान दिवस के रूप मनाने के पीछे किसानों के मसीहा कहलाने वाले नेता चौधरी चरण सिंह हैं। चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर को हुआ था और वह जीवन भर […]

किसान दिवस 23 दिसंबर पर विशेष 

आज की तारीख यानी 23 दिसंबर राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाई जाती है। इस तारीख को किसान दिवस के रूप मनाने के पीछे किसानों के मसीहा कहलाने वाले नेता चौधरी चरण सिंह हैं। चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर को हुआ था और वह जीवन भर किसानों के जीवन की बेहतरी के लिए काम करते रहे। किसानों के प्रति उनके इस समर्पण को सम्मान दिये जाने की सोच के साथ भारत सरकार ने वर्ष 2001 से 23 दिसंबर को किसान दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। चौधरी चरण सिंह ने भारत के पांचवें प्रधानमंत्री रहने के दौरान किसानों के जीवन और स्थितियों में सुधार के लिए कई नीतियों की शुरुआत की थी।  यह दिन भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले किसानों को समर्पित है। किसान दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य होता है की किसानों के सम्मान के प्रति देश में जागरूकता लाई जाये और देश को बताया जाये की देश के विकास और अर्थव्यवस्था में किसानों का क्या योगदान है ।  

भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा कृषि कार्यों में लगा हुआ है।  किसान जब खेतों में कड़ी मेहनत करके अनाज पैदा करते हैं तभी वह हमारी थाली तक पहुंचता है। ऐसे में किसानों का सम्मान करना बहुत जरूरी है।

किसान दिवस पर चौधरी चरण सिंह को याद करते हुए जब आज के किसानों के हालात देखते हैं तो हमें चारों तरफ उनकी बदहाली और भटकाव दिखाई देता है। भारतीय किसान लगातार न केवल संकट में पड़ता जा रहा है बल्कि सरकार की नयी औद्योगिक और विकास नीति के चलते विस्थापन का शिकार भी हो रहा है।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में शहर के विकास और सार्वजनिक संस्थाओं के निर्माण के लिए सैकड़ों गाँव की रजिस्ट्री बंद कर दी गयी है और ड्रोन के सर्वे के जरिए ज़मीनों की पैमाइश की जा रही है। किसान इस बात से बुरी तरह से डरे हुए हैं कि उनकी जमीन छीन ली जाएगी और उन्हें भविष्य में दर-दर कि ठोकर खानी पड़ेगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार 2013 के भू-अधिग्रहण कानून को कमजोर करने में लगी हुई है।

वाराणसी में ट्रांसपोर्ट नगर बनाने के नाम पर बहुत पहले से चार गाँव की जमीन लेने के लिए विकास प्राधिकरण कोशिश कर रहा है। इस वर्ष मार्च में बेरावन गाँव के निवासियों पर पुलिस ने बर्बरता पूर्वक लाठी चार्ज की। इसी तरह  जाल्हूपुर परगने के 4 गाँव में  109 एकड़ जमीन को बंजर के रूप में चिन्हित कर उन्हें लेने का प्रयास किया। हालांकि बाद में राजस्व ने इस पर स्टे लगा दिया।

उल्लेखनीय है कि इस जमीन पर ट्रांसपोर्ट नगर बनाने कि योजना है। इस गाँव के करीब से वाराणसी रिंग रोड का तीसरा फेज गुजर रहा है। किसानों को लगता है कि कभी भी उनकी जमीन पर सरकार धावा बोल सकती है। वाराणसी के दक्षिणी इलाके शहंशाहपुर में किसानों की जमीन पर कब्जा करने के सरकारी प्रयास के खिलाफ किसान अब भी धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। 

वाराणसी स्थित लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डे के विस्तार और विस्तृत काशी बनाने के लिए चार दर्जन से अधिक गाँव कि रजिस्ट्री रोक दी गयी है और जमीन लेने का अभियान चलाया जा रहा है। इस गाँव के किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं लेकिन उनकी बात कहीं नहीं सुनी जा रही है।

सोनभद्र के दुद्धी में तहसील में स्थित कनहार नदी पर बने बांध के विस्थापित होने वाले डूब क्षेत्र के 18 गाँव के सैकड़ों किसान मुआवजे की  आस में दर-दर भटक रहे हैं। आज भी उन्हें पुनर्वास और मुआवजा की आस में  जिला मुख्यालय अथवा दुद्धी तहसील पर अपने न्याय के लिए अधिकारियों के पास भटकते हुए देखा जा सकता है।

आजमगढ़ जिले में हवाई अड्डा बनाने के नाम पर 8 गाँव को उजाड़ने का फरमान पिछले साल जारी हुआ जिसका ग्रामीणों ने विरोध किया। कई महीने के आंदोलन के बाद  सरकार ने खामोशी ओढ़ ली लेकिन किसानों में अभी भी भय बना हुआ है। उत्तर प्रदेश में भूमि बैंक के लिए तहसील और राजस्व विभाग ने सैकड़ों किसानों के पट्टे निरस्त किए और हर गाँव में बंजर भूमि निकालकर उसकी भूमि को लैंड बैंक में शामिल करना शुरू किया।

ज़मीनों पर आई इन विपदाओं के साथ ही किसान खाद की अनुपलब्धता, बिजली के बढ़ते बिलों, महंगे बीजों से न केवल बेहाल हुआ है बल्कि उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी भी नहीं मिल पा रही है। बड़े मझोले सीमांत और भूमिहीन किसानों की समस्याएँ कृषि के विकराल संकट के रूप में मौजूद हैं  लेकिन सत्तासीन मोदी सरकार इन तमाम स्थितियों को लेकर दमनकारी रवैया अख़्तियार की हुई है। दिल्ली में हुए किसान आंदोलन की समस्याएँ आज भी जस की तस हैं। हालांकि सरकार ने तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया है। किसान आंदोलन के दौरान 700 शहीद किसानों के प्रति मोदी सरकार का संवेदनहीन रवैया समझ से परे है।

किसान दिवस के मौके पर शायद इसलिए चौधरी चरण सिंह की याद स्वाभाविक है कि भारत के किसान केंद्रीय सत्ता से अपने मुद्दों के प्रति संवेदनशील व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here