वाराणसी। इग्नस पहल संस्था द्वारा ‘शाला पूर्व शिक्षा एवं मानीटरिंग’ विषय पर तीन दिवसीय कार्यशाला (18 दिसंबर से 20 दिसंबर) का आयोजन बाल विकास परियोजना कार्यालय पिंडरा (विकास खंड परिसर) में किया गया। इस कार्यशाला के माध्यम से आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को प्रशिक्षण देने का कार्य किया जा रहा है ताकि वह ज्यादा रचनात्मक तरीके से बच्चों को शिक्षित कर सकें। इस कार्यशाला में बाल विकास परियोजना बड़ागाँव एवं पिंडरा के विभिन्न आंगनबाड़ी केंद्रों की मुख्य सेविका एवं सुपरवाइजर कार्यकर्त्रियों ने भाग लिया।
इस कार्यशाला के मुख्य प्रशिक्षक एवं इग्नस पहल संस्था के सुरेन्द्र प्रसाद सिंह ने कार्यशाला के बारे में कहा कि जब बच्चा लिखना-पढ़ना शुरू करे, तब उसमें शिक्षा के प्रति अभिरुचि किस तरह से पैदा की जा सके उसके बारे में काम कर रहे हैं। वह कहते हैं कि आंगनबाड़ी शिक्षा की ओर बढ़ाए गए कदम की पहली सीढ़ी है। इसलिए यहाँ जरूरी हो जाता है कि उसका स्वागत बहुत ही रचनात्मक माहौल में हो ताकि शिक्षा और शिक्षण संस्थान दोनों के प्रति उसके मन में रुचि पैदा हो सके।
इस प्रयास के तहत वह इग्नस पहल के अपने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर अंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को यह सिखा रहे हैं कि किस तरह से वह अपने आंगनबाड़ी केंद्र पर बच्चों के लिए माहौल तैयार करें। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को इस तरह से प्रशिक्षित किया जा सके कि वह बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समय तक गतिविधियों में जोड़े रख सकें। इसके लिए उन्होंने अपनी टीम के साथ कई तरह के लर्निंग मॉडल भी बना रखे हैं। जिसके तहत वह केंद्र के कमरे को उसके कोने के हिसाब से चार हिस्सों में बाट देते हैं। इन कोनों को कविता कोना, खेल कोना, पजल कोना एवं किताब कोना नाम दिया गया है। यहाँ कोनों के नाम के अनुसार चीजों को इस तरह से व्यवस्थित किया जाता है कि बच्चा अपनी रुचि के हिसाब से उन गतिविधियों को स्वयं संचालित कर सके।
वह बताते हैं कि हम चाहते हैं कि बच्चे सबसे पहले अपने स्थानीय परिवेश में उपलब्ध चीजों और अर्जित अनुभव से सीखें। स्थानीय परिवेश में प्रकृति की चीजें इस काम में बहुत मदद कर सकती हैं, जैसे फूलों से रंग या फिर पत्तियों से आकार के बारे में बच्चे बहुत कुछ रचनात्मक तरीके से सीखें। वह बताते हैं कि इसके साथ इग्नस पहल अपने कार्यक्रम के माध्यम से बेसिक शिक्षा को भी रुचिकर बनाने का तरीका सिखाती है। हर क्रिया में संस्था का प्रयास होता है कि कुछ भी इस तरह का ना किया जाय जो अरुचिकर अथवा उबाऊ हो।
इन बातों की सत्यता इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में भी बहुत ही सार्थक अंदाज में देखने को मिली। कार्यशाला में शामिल लगभग 30 महिला कार्यकर्त्रियों को चार समूहों में विभाजित किया गया था। कार्यशाला में चारों ही समूह अलग-अलग अपनी सामूहिक गतिविधियों को संचालित करने में लगे हुये थे। हर समूह के पास अलग विषय थे और अपने विषय के अनुरूप समूह को एक थीम विकसित करनी थी और चित्र, स्टीकर, कलर आदि के प्रयोग से उसे तैयार करना था।
पहला समूह पक्षी और पशुओं पर काम कर रहा था, कोई हरी पत्तियों से मोर बना रहा था तो कोई तोते का रेखांकन कर रहा था। किसी ने गैंडे का चित्र काट रखा था तो कोई बंदर के चित्र पर गोंद लगा रहा था। अपनी थीम को सबसे बेहतर बनाने की स्वस्थ होड़ भी दिख रही थी। अपने-अपने केंद्र पर शिक्षक की भूमिका में रहने वाली यह कार्यकर्त्रियां पूरे उत्साह से यहाँ नया ज्ञानार्जन करने में लगी हुई थी।
हमने उनके मन के इस नए बदलाव को लेकर जब कुछ बात करने का प्रयास शुरू किया तो समूह की श्याम कुमारी ने कहा ‘भैया जी थोड़ा सा रुक जाइए तो सब बताती हूँ अभी बात करने लगूँगी तो दूसरे ग्रुप वाले आगे निकल जाएँगे।’ नए विषय पर उनका इस तरह से सम्मोहित हो जाना थोड़ा चौंकाने वाला था क्योंकि यहाँ कोई प्रतियोगिता नहीं थी पर सब जीतना चाहतीं थी। अच्छा करना चाहतीं थी और यह अच्छा लेकर अपने केंद्र तक जाना चाहतीं थी।
इस विषय को लेकर जब अन्य कार्यकर्त्रियों से बात हुई तब यह समझ में आया कि अब तक जिस तरह से वह शिक्षण कार्य कर रही थी उसमें उनके रचनात्मक कौशल की बहुत उपयोगिता नहीं बन पा रही थी। एक सामान्य प्रक्रिया थी जिस पर वह लंबे समय से पढ़ाये जा रही थी पर अब उन्हें इस कार्यशाला से एक अलग तरह की शिक्षण पद्धति मिल रही थी जो उन्हें सरस और सृजनात्मक लग रही थी। श्याम कुमारी ने बताया कि पहले जो प्रशिक्षण मिलते थे वह ज्यादातर लिखित होते थे पर यहाँ सब कुछ इतने रचनात्मक रूप से सीखने को मिल रहा है कि वह नोट्स का नहीं बल्कि मन का हिस्सा बन जाता है। वह बताती हैं कि इस तरह का शैक्षिक माहौल जन केंद्रों पर मिलेगा तब आंगनबाड़ी के प्रति सामाजिक नजरिए में भी बदलाव आएगा। वह बताती है कि अभी सिर्फ कमजोर आर्थिक स्थिति के परिवार ही अपने बच्चों को केंद्र में भेजते हैं पर इस तरह की प्रक्रिया का शैक्षिक माहौल देखकर लोगों को लगेगा कि आंगनबाड़ी केंद्र बच्चों को ज्यादा रचनात्मक शिक्षा दे सकते हैं।
उषा देवी सन 2001 से आंगनबाड़ी में शिक्षण कार्य कर रही हैं वह बताती हैं कि पढ़ाते तो हम पहले से हैं पर यहाँ जो प्रक्रिया सिखाई-बताई जा रही है वह अलग है। यह प्रक्रिया टीचर और बच्चे दोनों के लिए ही ज्यादा आकर्षक है। यहाँ हम एक ऐसी प्रक्रिया सीख रहे हैं जिसमें यह मायने नहीं रखता है कि हमारे पास क्या उपलब्ध है बल्कि यह मायने रखता है कि हमारे आस-पास प्राकृतिक रूप से क्या उपलब्ध है और उसी के सहारे हमें बच्चों को सिखाना है।
इसी तरह सुमनलता कहती हैं कि, ‘वैसे तो हम 2001 से अंगनबाड़ी में हैं पर इस कार्यशाला में पढ़ाने का एक नया अनुभव मिल रहा है, यहाँ टीएलएम (teacher learning method) पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। यहाँ चित्रकारी, पजलस, खेल, पोस्टर आदि के माध्यम से पढ़ाना सिखाया जा रहा है। यहाँ यह समझ में आ रहा है कि चाहे पढ़ाना हो या पढ़ना हो दोनों ही रूपों में कोई कठिन कार्य नहीं है बल्कि यह एक रचनात्मक प्रक्रिया है। वह कहती हैं कि इस प्रशिक्षण के बाद हमें भी पढ़ाने का कार्य ज्यादा रुचिकर लगेगा। खेल के माध्यम से जिस तरह से यहाँ भाषा, गणित और जनरल नालेज सिखाया जा रहा है, उस तरह से जब हम अपने केंद्र पर बच्चों को सिखाएँगे तो उन्हें भी अच्छा लगेगा।
वीरधवलपुर केंद्र की रिंका पटेल जो अपने प्रशिक्षण प्रोजेक्ट की थीम ‘तीन मौसम’ बनाने में लगी हुई हैं वह भी 2001 से आंगनबाड़ी में शिक्षण कार्य कर रही हैं और लगभग पिछले दस महीनों से इग्नस के साथ जुड़ी हैं और इग्नस पहल की रूप रेखा के अनुरूप अपना केंद्र चला रही हैं वह बताती है कि इग्नस पहल के अनुसार केंद्र चलाने से बच्चों की रुचि पढ़ने में बढ़ रही है। अब अभिभावक ज्यादा उम्मीद से बच्चों को भेज रहे हैं।
इसी तरह से शाहपुर केंद्र की प्रेमलता सिंह भी इस प्रशिक्षण को लेकर नई उम्मीद से भरी दिखती हैं वह अपने समूह कि गतिविधि में लगी हुई हैं। वह अपने थीम प्रोजेक्ट के बारे में बताती हैं कि हम तीनों मौसम से जुड़ी हुई चीजें बना रहे हैं ताकि इन मौसमों से जुड़ी हुई बातें हम बच्चों को सरल तरीके से सिखा सकें। जैसे किस मौसम में कौन सा फल होता है या किस मौसम में किस तरह का कपड़ा पहना जाता है यह सब हम अपने इस प्रोजेक्ट में बना रहे हैं। ताकि बच्चे चित्र और कला के माध्यम से मौसम से जुड़ी बातों को समझ सकें।
नागेपुर की सुमन भारती बताती है कि इस कार्यशाला के माध्यम हमें बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है जैसे कि पढ़ाने का पैटर्न कैसे बनाएँ, खेल-खेल में कैसे सिखाएँ। सुमन भी अपनी अन्य साथियों की तरह उम्मीद से भरी हैं और उन्हें इग्नस पहल की यह प्रशिक्षण पहल अच्छी ही नहीं बल्कि महत्वपूर्ण भी लग रही है।
कार्यशाला में प्रोजेक्ट निर्माण पूरा हो चुका है और अब बनाए गए प्रोजेक्ट से बच्चों को कैसे पढ़ाया जाय इस विषय पर संचालक सुरेन्द्र प्रसाद सिंह सभी कार्यकर्त्रियों से बात करने लगते हैं। कार्यशाला में लगभग तीस केन्द्रों की कार्यकर्त्रियों के साथ इग्नस पहल की टीम के लोग शामिल थे। जिसमें शुभम सिंह, गायत्रीदेवी हिरापुरे, विनय कुमार सिंह, वीरेंद्र कुमार सिंह और मनीष सिंह की भी कार्यशाला के संचालन में सक्रिय भागीदारी रही। कार्यक्रम में प्रशिक्षण देने के लिए मुकेश भार्गव विशेष रूप से उपस्थित रहे।