Sunday, July 7, 2024
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मौत और हादसों का सबब बने चाइनीज माँझा पर लगाम जरूरी है

वाराणसी। सख्ती के बावजूद चाइनीज़ माँझा और उससे होने वाले हादसे रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं। यही कारण है कि पतंगबाजी का खेल अब मौत और हादसों की वजह बन चुका है। देश ही नहीं वाराणसी में भी चाइनीज़ माँझे से होने वाले हादसे अखबारों की सुर्खियाँ बन रहे हैं, बावजूद इसके प्रशासन […]

वाराणसी। सख्ती के बावजूद चाइनीज़ माँझा और उससे होने वाले हादसे रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं। यही कारण है कि पतंगबाजी का खेल अब मौत और हादसों की वजह बन चुका है।

देश ही नहीं वाराणसी में भी चाइनीज़ माँझे से होने वाले हादसे अखबारों की सुर्खियाँ बन रहे हैं, बावजूद इसके प्रशासन कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहा है। अकेले वाराणसी जिले में ही हर बार पचासों लोग जानलेवा माँझे से घायल होते हैं। एक-दो मौतें भी हो जाती हैं।

बुधवार को वाराणसी के चौकाघाट में हुकुलगंज निवासी त्रिलोकीनाथ गुप्ता (46) का चाइनीज माँझा ने गला रेत दिया। वह सपत्नीक बड़ा गणेश से दर्शन कर घर लौट रहे थे। माँझा से घायल होकर जब वह अपनी स्कूटी लेकर गिरे तो खून देखकर उनकी पत्नी प्रज्ञा भी बेसुध हो गईं।

बुरी तरह घायल त्रिलोकी को स्थानीय लोगों ने मंडलीय अस्पताल भेजा। इमरजेंसी वॉर्ड के प्रभारी डॉ. ओमप्रकाश के अनुसार, त्रिलोकी के गले का कैरोडिट आर्टरी भी कट गया था, इस कारण पट्टी हटाते ही खून का बहाव शुरू हो जा रहा था।

डॉक्टरों ने उन्हें मलहम-पट्टी के बाद उचित उपचार के लिए ट्रॉमा सेंटर में रेफर कर दिया।

बुधवार को ही लहुराबीर चौराहे पर डीएवी कॉलेज से पढ़कर घर लौट रहा छात्र आदित्य रस्तोगी (19) भी चाइनीज माँझे की चपेट में आ गया। माँझा जैसे ही उस पर गिरा आदित्य ने तुरंत उसे हटाने की कोशिश की लेकिन तब तक उसके गले पर चीरा लग चुका था। लल्लापुरा निवासी आदित्य ने मंडलीय अस्पताल में ही अपना इलाज करवाया।

चाइनीज माँझे से घायल होने वालों में इस दिन हेड कॉन्स्टेबल अवनीश राय का नाम भी शामिल है। वह मड़ौली से काशीविश्वनाथ मंदिर में अपनी ड्यूटी पर जा रहे थे। रास्ते में चाइनीज माँझा ने उनको जख्मी कर दिया।

आखिर क्यों इतना तेज होता है चाइनीज माँझा

चाइनीज माँझा मोनोफिलामेंट फिशिंग लाइन से बनता है, जिसे पिघलाकर पॉलिमर के साथ मिलाया जाता है। तार बनने के बाद उन पर शीशे (काँच) का लेप लगाया जाता है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 2017 में ही पूरे देश में इन तारों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था।

पिछले कई वर्षों से चाइनीज माँझा की बिक्री को लेकर प्रशासनिक स्तर पर अभियान चलाए जाते रहे हैं, बावजूद इसके चोरी-छिपे युवाओं तक यह पहुँच ही जाता है। पतंग उड़ाने के शौकीन लोग आसमान में उड़ रहे पतंगों को एक झटके में काट देना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें चाइनीज माँझा ही उचित लगता है।

पतंग का कारोबार करने वाले दुकानदान महेंद्र बताते हैं कि 12-15 साल पहले जब चाइनीज माँझा बिकना शुरू हुआ तभी इसके खतरे सामने आने लगे थे। सरकार और प्रशासन ने उसी समय इसको बनाने वाली कम्पनियों पर शिकंजा कस दिया होता तो अच्छा होता। इतने हादसे तो न होते।

बनारस के औरंगाबाद में सबसे पुरानी पतंग मंडी है। दो-तीन दशक पहले यहाँ बारहों मास पतंगे, माँझा, नायलॉन और सद्दी मिलते थे। मोबाइल में आॅनलाइन गेम, महंगाई के बाद यहाँ के काफी दुकानदारों ने अब दूसरा धंधा शुरू कर दिया है।

कारण बताते हुए औरंगाबाद के विजय बताते हैं कि पहले पुलिस प्रशासन हमें तंग नहीं करता था। वह लोग भी पतंगों के शौकिन हुआ करते थे। लेकिन जब से चाइनीज माँझा आया तब से मनोरंजन के इस खेल पर मानो ग्रहण लग गया है, बचा-कुचा काम मोबाइल ने पूरा कर दिया।

‘अब के बच्चों को पतंग ही नहीं उड़ाना आता। वह मोबाइल गेमिंग में ही लगे रहते हैं। छत पर तो आते हैं, लेकिन कुछ देर रूककर फिर हाथ में मोबाइल उठा लेते हैं।’

विजय आगे बताते हैं कि चाइनीज माँझा के लिए पुलिस प्रशासन के लोग आए दिन चले आते हैं। चेकिंग अभियान शुरू हो जाता है। शुरुआती दिनों में हम लोगों ने चाइनीज माँझा बेचा जरूर था, लेकिन जब इससे होने वाले हादसों के बारे में सुना तो बचा हुआ माल वापस कर दिया। अब हम लोग धागा वाला ही माँझा बेचते हैं, जो पहले बिका करता था।

दुकानदार सिद्धू बताते हैं कि बनारस की पतंगबाजी पर चाइनीज माँझा ने ग्रहण लगा दिया है। खिचड़ी पर्व के दो महीना पहले से ही आसमान रंग-बिरंगे पतंगों से झिलमिल हो जाया करते थे।

त्योहार का आगाज़ होते ही बनारस में पतंग की लगभग एक हजार से ज़्यादा दुकानें (छोटी-बड़ी) सज गई हैं। पतंगबाजी का माहौल खत्म होते ही सिर्फ तीन दुकानें बारहों मास चलती हैं जो काली महाल, लक्ष्मीकुंड और औरंगाबाद में हैं।

तेलियाबाग के गुड्डू त्योहार के हिसाब से अपनी दुकानदारी करते हैं। वह होली के समय में रंग, दिपावली के दौरान पटाखे, 26 जनवरी-15 अगस्त आने पर तिरंगा आदि सामान बेचते हैं।

फिलहाल वह पतंग और माँझा बेच रहे हैं। चाइनीज माँझा का नाम लेते ही वह अपने कान पकड़ लेते हैं। कहते हैं कि ‘हम बाल-बच्चे वाले हैं ज़नाब! क्यों किसी के जान-माल का आरोप मढ़ रहे हैं? चाहे लोग जितना भी डिमांड करें लेकिन मैं चाइनीज माँझा की तेज धार को जानता हूँ।’

पक्षियों के लिए भी खतरनाक साबित होता आ रहा है चाइनीज माँझा

वह बताते हैं कि ‘चाइनीज माँझा लोगों के साथ पर्यावरण और पक्षियों के लिए भी खतरनाक है। इसके बजाय, वह पतंग के लिए सूती धागे का उपयोग करने का सुझाव देते हैं।

बनारस में पतंग का बड़ा कारोबार होता है। खिचड़ी (मकर संक्रांति) आते ही करोड़ों के पतंग और माँझे के साथ नायलॉन बिक जाते हैं। यहाँ के छोटे-बड़े व्यापारी मुरादाबाद, इलाहाबाद, लखनऊ, बरेली से बड़ी मात्रा में सामान मँगवाते हैं। इन जिलों से देश के विभिन्न राज्यों में भी पतंगों और माँझे की बड़ी खेप जाती है।

नाम न छापने की शर्त पर एक व्यापारी बताते हैं कि बरेली से आने वाले इन्हीं सामानों के बीच चाइनीज माँझा भी छिपा रहता है। दालमंडी में चोरी-छिपे जानलेवा माँझा बेचा भी जाता है।

वह बताते हैं कि ‘प्लास्टिक और शीशे के पाउडर से बनने वाले माँझे को जब हाथ से खिंचा जाता है तो अपने लचीलेपन के कारण वह पूरी तेजी से सामने आने वाले हर एक धागे को काट देता है। इसकी जद में पक्षी भी आ जाए तो वह नहीं बच पाते तो इंसान क्या चीज हैं।’

जागरूकता अभियान की है जरूरत

वाराणसी में चाइनीज माँझा के खिलाफ पिछले दस वर्षों से अभियान चला रहे सुबह-ए-बनारस के अध्यक्ष मुकेश जायसवाल बताते हैं कि शासन-प्रशासन के लोगों को भी जानलेवा माँझा के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। जागरूकता की कमी के कारण ही हादसे होते चले आ रहे हैं।

प्रतिवर्ष की तरह इस बार भी मुकेश ने जागरूकता अभियान चलाया। माँझा की बिक्री पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने की माँग को लेकर लक्ष्मी हॉस्पिटल के प्रबंध निदेशक डॉ. अशोक कुमार राय, प्रधानाचार्या डॉ. मुक्ता पांडे, अनिल केसरी, नंदकुमार के नेतृत्व में भैरवनाथ स्थित श्रीवल्लभ विद्यापीठ बालिका इंटरमीडिएट कॉलेज के परिसर में जन जागरूकता अभियान चलाया।

मुकेश कहते हैं कि ‘थोड़े से पैसे के लालच में दुकानदार पतंग प्रेमियों की माँग पर मौत की डोर बेच रहे हैं, जो दंडनीय होने के साथ काफी निंदनीय भी है। इस मौत के कारोबार का खेल पूरी तरह से बंद होना चाहिए।’

चाइनीज माँझा पर सख्त है प्रशासन?

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने अगस्त (2023) में लोगों से चाइनीज माँझा का उपयोग न करने की अपील की थी। उन्होंने चेताया था कि जो कोई भी इसका उपयोग करता या बेचता पाया गया, उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।

दिल्ली में चाइनीज माँझा का उपयोग न करने या न बेचने के लिए खरीदारों और विक्रेताओं के लिए पुलिस जागरूकता शिविर का आयोजन करती है। डीसीपी नॉर्थ ईस्ट जॉय टिर्की के अनुसार ‘पिछले कुछ वर्षों में बाजार में चाइनीज माँझा में वृद्धि का रुझान है। यह प्रतिबंधित माँझा है। धीरे-धीरे ही सही जागरूकता का असर हो रहा है।

मध्य प्रदेश में सरकार ने 2023 की सात जनवरी को चाइनीज माँझा बेचने के आरोप में मोहम्मद इकबाल और हितेश भोजवानी का मकान ढहवा दिया था। इन दोनों के खिलाफ प्रशासन ने माँझे के रोल जब्त करने के बाद जाँच की थी। यह भी पाया गया था कि उनके घरों के कुछ हिस्सों का निर्माण अवैध रूप से किया गया था। बाद में इन हिस्सों को ध्वस्त कर दिया गया।

आरोपी तक पहुँचना है मुश्किल

पुलिस का कहना है कि हमारे रिकॉर्ड में घायल लोगों की संख्या कम है, क्योंकि लोग माँझे से घायल होने के बाद इसकी सूचना पुलिस को नहीं देते हैं। इसलिए मौत या घायल होने के मामले में माँझे का इस्तेमाल करने वालों तक पहुँचना मुश्किल हो जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पतंग कई सौ मीटर दूर से उड़ती है, जिसकी डोर टूटने पर सड़क पर चलने वाले लोग शिकार हो जाते हैं। ऐसे में पुलिस के पहुँचने तक डोर का ओर-छोर दूर-दूर तक नहीं होता।

चाइनीज माँझा की बिक्री या हादसे के आरोपी पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 5 के तहत जारी किए निर्देशों के अनुसार, पाँच साल की सजा हो सकती है या एक लाख तक जुर्माना भी लगाया जा सकता है। दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस हर साल प्लास्टिक, नायलॉन और चाइनीज माँझे को लेकर लोगों को आगाह करती है।

अगस्त 2022 में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दिल्ली में पतंग उड़ाने पर प्रतिबंध लगाने की माँग की गई थी। हाईकोर्ट ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि यह सांस्कृतिक गतिविधि है। हालांकि, हाईकोर्ट ने चाइनीज माँझा के बैन को लेकर एनजीटी के आदेश को सख्ती से लागू करने को भी कहा था।

अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा गाँव के लोग के सहायक संपादक हैं।

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