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आजम खान पर आईटी का छापा, अखिलेश ने कहा हम सब उनके साथ

समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व काबीना मंत्री आजम खान के कई ठिकानों पर बुधवार सुबह करीब 7 बजे ही आयकर विभाग ने छापा मारा। यह छापेमारी जौहर ट्रस्ट को लेकर बताई जा रही है। आयकर विभाग ने रामपुर, लखनऊ, सहारनपुर, गाजियाबाद, सहारनपुर में भी आजम खान से संबन्धित संस्थाओ और ठिकानों पर छापेमारी की […]

समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व काबीना मंत्री आजम खान के कई ठिकानों पर बुधवार सुबह करीब 7 बजे ही आयकर विभाग ने छापा मारा। यह छापेमारी जौहर ट्रस्ट को लेकर बताई जा रही है। आयकर विभाग ने रामपुर, लखनऊ, सहारनपुर, गाजियाबाद, सहारनपुर में भी आजम खान से संबन्धित संस्थाओ और ठिकानों पर छापेमारी की है। छापेमारी के वक्त सपा नेता आजम खान अपने रामपुर स्थित आवास पर थे, जहां आयकर विभाग की दर्जन भर से ज्यादा गाड़ियाँ मय फोर्स पहुँच गई थी। जानकारी के मुताबिक, आजम खान की मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी के ट्रस्ट खातों की जांच की गई। प्रदेश की सत्ता बदलने के बाद से आजम खान लगातार पुलिस और आयकर की कार्यवाहियों का सामना कर रहे हैं। इन्हीं वजहों से उन्हें अपनी विधायकी भी गंवानी पड़ी थी। फिलहाल, देर रात तक चली कार्यवाही में इनकम टैक्स विभाग की तरफ से कोई खुलासा नहीं किया गया है। समाजवादी पार्टी के बहुत से नेताओं ने इस कार्यवाही की निंदा की है और सत्ता पक्ष पर अधिकारों के दुरुपयोग का आरोप लगाया है।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आजम खान उत्तर प्रदेश के बड़े और सबसे ज्यादा चर्चित नेताओं में से एक हैं। वह सत्ता में रहकर जितना मीडिया के फोकस का हिस्सा होते हैं, वह विपक्ष में रहकर भी उतना ही मीडिया में बने रहते हैं। आजम खान के अगर पूरे राजनीतिक इतिहास को देखा जाय तो साफ दिखता है कि इस राजनीतिक ऊंचाई तक पंहुचने के लिए आजम खान ने जिस कारीगरी को सबसे ज्यादा तवज्जो के साथ तराशा है उसमें जुबान, मुसलमान, मीडिया तथा नवाबियत के खिलाफ उनका संघर्ष रहा है। आजम खान ने राजनीति में जो भी हासिल किया है उसके पीछे इन्हीं चार चीजों की बड़ी भूमिका देखने को मिलती है। इन्हीं चार खंभों पर उनकी राजनीति की कायनात कभी गगांचुंबी ऊंचाई हासिल कर लेती है तो कभी सब कुछ ज़मींदोज़ भी कर देती है। जुबान जब साधती है तो कहा जाता है कि जो आजाम खान की तकरीर सुन लेता है वह उनका हो जाता है और जब फिसलती है तो इस कदर फिसलती है कि मर्यादा के धागे भी तोड़ देती है। फिलहाल जब तक उनका राजनीतिक कद इतना बड़ा नहीं हुआ था तब तक उनकी जुबान फिसलती कम थी बल्कि वह अपनी लछछेदार जुबान से लोगों का दिल जीतते रहे थे। इसी जुबान पर उन्होंने आवाम खासतौर पर मुस्लिम समुदाय में बड़ी पैठ बना ली। जब जनता का साथ मिला तो आत्मविश्वास भी बढ़ा। जिसके दम पर उन्होंने रामपुर के नवाब की सियासी जमीन छीन ली।

[bs-quote quote=”आजम खान का राजनीतिक करियर जनता दल से होते हुए लोकदल और जनता पार्टी तक चला। अक्टूबर 1992 में मुलायम सिंह यादव ने अपनी अलग समाजवादी पार्टी बनाई। देशभर में मंडल बनाम कमंडल की राजनीति चल रही थी। मुलायम सिंह पिछड़ों का झंडा बुलंद कर रहे थे और किसी बड़े मुस्लिम नेता को अपने साथ चाहते थे। ऐसे में आजम खान उन्हें सबसे मुफीद और मुस्लिम समाज के ताकतवर नेता के रूप में मिले।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

कैसे शुरू हुआ आजम खान का राजनीतिक सफर

आजमखान का जन्म मध्यवर्गीय मुसलमान परिवार में 4 अगस्त, 1948 को यूपी के रामपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम मोहम्मद मुमताज खान था। बीए (ऑनर्स) और एमए (ऑनर्स) की पढ़ाई करने के बाद कानून की पढ़ाई के सिलसिले में अलीगढ़ यूनीवर्सिटी में दाखिल हुये। यहाँ की छात्रसंघ की राजनीति में एक बगावत का सुर देखने को जब मिला तब उन्हें सहज ही लगा कि बगावत का यही तेवर उन्हें रामपुर की जमीन के लिए अपने अंदर विकसित करना होगा। दरअसल रामपुर अपनी नवाबी के लिए मशहूर था वहाँ की सामाजिक और राजनीतिक दोनों ही ज़मीनों पर सिर्फ नवाब परिवार की हुकूमत चला करती थी। आजाम खान रामपुर को बदलना चाहते थे और अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी से उन्हें वह रास्ता मिल गया जिसके सहारे वह अपने सपने की ओर बढ़ सकते थे। वह अपने सपने के लिए सत्ता विरोधी राजनीति की डोर पकड़कर छात्र राजनीति में शामिल हो गए। जब मौके मिले तो बड़े तंज़िया लहजे में सत्ता की साख पर बट्टा लगाने वाली तकरीर करनी शुरू कर दी। जल्द ही वह छात्रों लोकप्रिय हो गए और 1974 में छात्रसंघ के अध्यक्ष भी बन गए। दूसरी ओर सत्ता को उनका यह अंदाज खटकने लगा था। इसी बीच आपातकाल घोषित हो गया। कांग्रेस सरकार ने दमन का रास्ता अख़्तियार किया और आजम खान भी आपातकाल में जेल जाने वाले नेताओं की लिस्ट में शामिल हो गए। जेल जाना उनके लिए बड़ी राजनीति के प्रवेशद्वार की तरह था। आपातकाल के बाद जब बाहर निकले तो बड़ी राजनीति में उनका भरपूर स्वागत हुआ और आजमाखान ने भी तय कर लिया कि यही वो रास्ता है जो उनके भविष्य को मुकाम तक ले जाएगा।

नवाबी सियासत में सेंध लगाकर रामपुर छीनने की दास्तान

रामपुर में आजम खान ने बहुत ही जमीनी स्तर पर राजनीति में प्रवेश किया और उन कामगारों को नवाब के खिलाफ एकजुट करना शुरू किया जो किसी ना किसी रूप में नवाब के हाथो खुद को शोषित महसूस कर रहे थे। आजम का अर्थ महान होता है। इस शब्द का अर्थ आजम खान जानते ही होंगे शायद इसी वजह से उन्होंने अपने को कभी कमतर कद के लोगों के सामने दांव पर नहीं लगाया। उन्होंने जब रामपुर में वहाँ के नवाब के खिलाफ बोलना शुरू किया तो सहसा सियासत और समाज दोनों को अपने कान पर विश्वास ही नहीं हुआ कि कोई रामपुर में नवाब के खिलाफ भी बोल सकता है। यह बात जब नवाब तक पहुंची तब उन्हें भी विश्वास नहीं हुआ कि कोई उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत कर सकता है इसलिए उन्होंने कहा कि यह आजम खान कोई दीवाना है।

यह नवाबी सियासत कोई कोई हल्की–फुल्की चीज नहीं थी। ब्रिटिश शासन काल में रामपुर एक समृद्ध रियासत हुआ करती थी । रामपुर रियासत की शुरुआत नवाब फैज उल्ला खान से मानी जाती है। रामपुर रियासत की समृद्धी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज भी नवाब खानदान पास 2600 करोड़ की चल-अचल संपत्ति है। रामपुर रियासत जब अपने उरूज पर था, तब नवाब हामिद अली खां ने महल तक रेल लाइन बिछवा लिया था। ट्रेन के लिए विशेष स्टेशन भी बनवाया गया था। नवाब अक्सर अपने निजी ट्रेन से ही सफर किया करते थे। उन्होंने शाही घराने के इस्तेमाल के लिए साल 1925 में ट्रेन की चार बोगियां खरीदी थीं।रामपुर नवाब की रेल लाइन 40 किलोमीटर लंबी थी। उनकी निजी ट्रेन रामपुर से मिलक के बीच चला करती थी। कुल चार बोगियों की ट्रेन में एक डिब्बा नवाब के लिए होता था, जिसमें डाइनिंग रूम, बेडरूम, बाथरूम समेत ऐशो आराम की तमाम सुविधाएं होती थीं। ट्रेन में किचन भी होता था। साथ में खानसामे और नौकर भी चला करते थे। सुरक्षा के लिहाज से एक डिब्बा सैनिकों की टुकड़ी भी चला करती थी। सफर से पहले रियासत की तरफ से रेल मंत्रालय को सूचित किया जाता था ताकि रूट तय हो सके। आज उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन जिस तरह से निजी ट्रेन से यात्रा करते हैं यह जलवा रामपुर के नवाब घराने के लिए पुरानी बात है।

इस ठाट-बाट से भरे नवाब घराने को कहाँ अंदाज था कि यही दीवाना 1980 में नवाब घराने की  सियासी जमीन छीन लेगा। 1977 में आजम खान ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें कांग्रेस के शन्नू खान से शिकस्त मिली थी। 1980 में आजम खान जनता पार्टी के टिकट पर लड़े और पहली बार विधायक बने।

17 मई 1981 को आजम खान की शादी डॉक्टर तंजीन फातिमा से हुई। हरदोई में जन्मीं तंजीन फातिमा भी AMU से पढ़ी हैं। उन्होंने एमए, एमफिल के बाद पीएचडी भी की।  इसके बाद बतौर एसोसिएट प्रोफेसर पॉलिटकल साइंस भी पढ़ाया।  आजम और तंजीन के दो बेटे अब्दुल्ला और अदीब हैं।  अब्दुल्ला आजम भी राजनीति में सक्रिय हैं, जबकि दूसरे बेटे अदीब रामपुर में बाकी कामकाज संभालते हैं।

आजम खान कब-कब बने विधायक

1980 में आजम खान जनता पार्टी के टिकट पर लड़े और जीते।  ये पहली बार था जब आजम खान विधायक बने।  इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।  1985 में लोक दल के टिकट पर विधायक बने।  1989 में जनता दल के टिकट पर निर्वाचित हुए और पहली बार यूपी सरकार में मंत्री बने।    इसके बाद 1991, 1993, 2002, 2007, 2012 और 2017 में भी आजम खान ने विधानसभा चुनाव में अपने विरोधियों को बैक-टू बैक शिकस्त दी।  हालांकि, 1996 में उन्हें हार का स्वाद भी चखना पड़ा।  कांग्रेस के अफरोज अली खान ने आजम खान को हराया।  ये चुनाव हारे तो उन्हें राज्यसभा सदस्य बना दिया गया। एक बार राज्यसभा सांसद और एक बार 2019 में लोकसभा सांसद निर्वाचित हुए हैं। 2022 में जेल में रहते हुए ही उन्होंने रामपुर सीट से ही भी विधानसभा का चुनाव जीता। बाद में दो वर्ष से ज्यादा की सजा मिलने की वजह से उनकी विधायकी चली गई। कुल मिलाकर आजम खान दस बार विधायक बन चुके हैं।

सपा में कब शामिल हुए आजम खान?

आजम खान का राजनीतिक करियर जनता दल से होते हुए लोकदल और जनता पार्टी तक चला। अक्टूबर 1992 में मुलायम सिंह यादव ने अपनी अलग समाजवादी पार्टी बनाई। देशभर में मंडल बनाम कमंडल की राजनीति चल रही थी। मुलायम सिंह पिछड़ों का झंडा बुलंद कर रहे थे और किसी बड़े मुस्लिम नेता को अपने साथ चाहते थे। ऐसे में आजम खान उन्हें सबसे मुफीद और मुस्लिम समाज के ताकतवर नेता के रूप में मिले। आजम खान मुस्लिम चेहरे के रूप में उनसे जुड़ गए और हमेशा मुलायम सिंह के राइट हैंड बनकर रहे। हालांकि, 2009 में मुलायम और आजम के बीच अनबन भी देखने को मिली। पर मामला जल्दी ही सुलझा लिया गया और मुलायम सिंह ने उन्हें मनाकर अपने पास बुला लिया।

देश और प्रदेश की सियासत में बहुत से बदलाव होते रहे पर रामपुर में उसी तरह से आजम खान का नाम चस्पा हों चुका था जिस तरह से उनके उदघाटन के पत्थरों में उनका नाम लिखा हुआ है। अपने साथ-साथ उन्होंने अपनी पत्नी और बेटे अब्दुल्ला को भी चुनावी राजनीति में उतार चुके हैं।

सूबे से गई सपा सरकार और नई सरकार के निशाने पर आ गए आजम खान

2017 में यूपी में योगी सरकार आने के बाद से पूरा परिवार संकट में आ गया है। आजम खान ने रामपुर में जो मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी बनवाई वो विवादों में आ गई। आजम खान के खिलाफ जमीन से जुड़े केस दर्ज हो गए। इसके अलावा भी कई केस दर्ज हुए। बेटे अब्दुल्ला पर गलत बर्थ सर्टिफिकेट का आरोप लगा, पत्नी पर भी प्रॉपर्टी से जुड़े केस दर्ज हुए। कुल मिलाकर पूरा परिवार संकट में है। बेटे की विधायकी भी चली गई। 2020 में जेल जाना पड़ा, बेटे और पत्नी भी लंबे समय तक जेल में रह चुके हैं। फिलहाल, कोर्ट से कई मामलों मे राहत मिल चुकी है और अब जेल से बाहर हैं। एक हेट स्पीच केस में सजा हो जाने की वजह से उनकी विधायकी चली गई यह अलग बात है कि इस केस से वह अब बरी हो चुके हैं।

आजम खान ने रामपुर में पैदा हुए आजादी के आंदोलन के नेता मोहम्मद अली जौहर के नाम का इस्तेमाल अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने में खूब किया। वो रामपुर के लोगों से कहते रहे कि नवाब परिवार ने अलीगढ़ आंदोलन के नेता और खिलाफत आंदोलन से जुड़े रहे मौलाना अली जौहर से धोखा किया और अंग्रेजों का साथ दिया। उन्होंने मौलाना जौहर के नाम पर जौहर ट्रस्ट स्थापित किया और इसी के तहत रामपुर में 78 हेक्टेयर भूमि पर मौलाना जौहर यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी। जौहर ट्रस्ट के सात सदस्यों में से पांच उनके अपने परिवार के लोग थे। ट्रस्ट से जुड़े अन्य लोग भी या तो आजम खान के रिश्तेदार थे या बेहद करीबी और आजम खान आजीवन यूनिवर्सिटी के चांसलर। अब इसी जौहर यूनिर्सिटी की जमीन को लेकर विवाद चल रहा है और मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। यही जौहर यूनिवर्सिटी उनके लिए मुसीबत का सबब बन गई है। वक्फ बोर्ड की जमीन हथियाने से लेकर बकरी, भैंस चोरी तक के आरोप उन पर लगे हैं।

आजम खान की सियासत को धराशायी करने में भाजपा की बड़ी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता पर इसमें उससे भी बड़ी भूमिका एक आईएएस अधिकारी आंजनेय कुमार सिंह और भाजपा नेता आकाश सक्सेना की भी है। आंजनेय कुमार सिंह आजम खान की अपने ऊपर की गई एक टिप्पणी से इस कदर आहत हुए कि उन्होंने तय कर लिया, वह आजाम खान को धूल में मिलाकर ही रहेंगे। इस मामले में एक बड़ा और मजबूत साथ मिला आकाश सक्सेना का। आकाश सक्सेना अब भाजपा के विधायक बन चुके हैं और आज भी पार्टी की शह पर आजम खान को नेस्तनाबूत करने के अपने मंसूबे पर लगे हुए हैं। आजम खान पर लगे मामलों में आधे से ज्यादा मामलों के पक्षकार वही हैं।

आजम की वजह से सपा से नाराज हैं मुसलमान  

आजम खान के जेल में रहने के दौरान अखिलेश यादव के मिलने ना जाने से मुसलमान वोटर उस समाजवादी पार्टी से नाराज हैं, जिसके लिए कहा जाता है कि सपा यादवों और मुसलमानों की पार्टी है। 2022 विधानसभा में पूरी तरह से अखिलेश यादव और सपा के साथ रहने वाला मुसलमान समुदाय 2023 के निकाय चुनाव में सपा से बड़ी संख्या में दूर था। आजम खान भले ही सपा में हैं पर मुसलमान उनके नाम पर सपा के किसी तरह का आंदोलन ना करने से नाराज है।

शायद यही वजह है कि इस बार जब आजम खान के ठिकानों पर छापा पड़ा है तब जहां अखिलेश यादव ने कहा है की जनाब आज़म ख़ान साहब सच की आवाज़ हैं। उन्होंने बच्चों के बेहतर भविष्य की नींव रखी,  तालीम-शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय बनाया। आज़म साहब सदैव फ़िरक़ापरस्त ताक़तों से लड़ते रहे हैं। आज उनकी आवाज़ के साथ हम सब एकजुट होकर खड़े हैं। भाजपा सरकार तानाशाही एवं केन्द्रीय एजेंसियों का दुरूपयोग बंद करे।   भाजपाई इतना याद रखे कि तानाशाहों के अहंकार का अंत अवश्य होता है, 2024 में जनता जवाब देगी। इसके साथ अखिलेश यादव ने भाजपा सरकार पर हमला बोलते हुये उसे तानाशाह बताया है और इस तरह के आचरण को लोकतन्त्र विरोधी कहा है। अखिलेश यादव के अलाव समाजवादी पार्टी के अन्य नेताओं नें भी भाजपा को घेरने की कोशिश की है और इस छापेमारी की करवाही की आलोचन की है।

कुमार विजय गाँव के लोग डॉट कॉम के एसोसिएट एडिटर हैं।

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