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ग्राउंड रिपोर्ट

Lok Sabha Election : क्या कांग्रेस के ‘हाथ’ से खिसक रहे दोनों मजबूत गढ़, अमेठी और रायबरेली?

कांग्रेस की सबसे मजबूत मानी जाने वाली दोनों सीटों अमेठी और रायबरेली को लेकर कांग्रेस की राह काफी मुश्किल है लेकिन सवाल यह है कि क्या गाँधी परिवार अपने गढ़ को बचा पायेगा?

कांग्रेस उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन के तहत 17 सीटों पर लड़ रही है जिनमें से 2 सीटें ऐसी हैं जिन पर समाजवादी पार्टी 2004 के बाद से हमेशा उसका समर्थन करती रही है और अपना प्रत्याशी उतारने के बजाय, वो कांग्रेस का समर्थन करती आई है। ये दो सीटें हैं अमेठी और रायबरेली।

इस नाते कांग्रेस इन दोनों सीटों को कांग्रेस अपना सबसे मजबूत गढ़ मानती है, लेकिन वर्तमान में हालत ये है कि अमेठी से 2019 में राहुल गांधी हार चुके हैं, और रायबरेली की सासंद रही सोनिया गांधी अब राजस्थान से राज्यसभा में जा चुकी हैं और इस बार रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने नहीं जा रही हैं।

ऐसे में इन दोनों सीटों पर कांग्रेस की क्या संभावनाएं हैं, इसका विस्तार से चर्चा करना प्रासंगिक होगा।

अमेठी में कांग्रेस की स्थिति

कांग्रेस के लिए सबसे जरूरी सीटों में से पहली है अमेठी। निश्चित रूप से यहां पर कांग्रेस के पास एक मजबूत कैंडिडेट राहुल गांधी के रूप में मौजूद है। हालांकि उनके जीतने पर सवालिया निशान लगा है।

इस सीट के अतीत के दो चुनाव देखें तो 2019 में बीजेपी की स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को  करीब 55 हजार वोटों से हराया था। स्मृति को 468514 और राहुल गांधी को 413394 वोट मिले थे।

हालांकि ये स्थिति केवल राहुल गांधी के कैंडिडेट बनने पर ही है क्योंकि यहां की 5 विधानसभा सीटों में से 2 पर समाजवादी पार्टी जीती थी और तीन पर बीजेपी। जिन तीन पर बीजेपी जीती थी, उनमें से 2 यानी तिलोई और सालोन पर समाजवादी पार्टी ही दूसरे नंबर पर थी। केवल जगदीशपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी।

समाजवादी पार्टी के समर्थन से हानि या लाभ?

बहुत-से लोगों का मानना है कि समाजवादी पार्टी अगर इस लोकसभा सीट पर अपना प्रत्याशी खड़ा करे, और कांग्रेस को नापसंद करने वाले के पास बीजेपी की स्मृति ईरानी के अलावा कोई और विकल्प रहे, तो स्मृति ईरानी के वोटों में इतनी कमी तो हो ही जाएगी कि वो राहुल गांधी से जीत न सकें।

अब अमेठी से राहुल गांधी लड़ें तब भी ठीक है, लेकिन अगर राहुल गांधी अमेठी से नहीं लड़ते तब तो कांग्रेस के किसी अन्य प्रत्याशी के जीतने की संभावना दूर-दूर तक नहीं रहेगी। उस स्थिति में तो ये सीट समाजवादी पार्टी को ही दे देनी चाहिए, लेकिन कांग्रेस इतनी उदारता नहीं बरतेगी।

2014 में भी देखें तो राहुल गांधी को 408651 और स्मृति ईरानी को 300748 वोट मिले थे और उनकी जीत अंतर करीब एक लाख 8 हजार वोटों का था। यहां ध्यान देने की बात है कि बीएसपी के धर्मेंद्र प्रताप सिंह करीब 57 हजार वोट लेकर तीसरे स्थान पर थे। आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास भी करीब 25 हजार वोट पाकर चौथे पर थे।

सहज ही माना जा सकता है कि अगर बीएसपी ने प्रत्याशी खड़ा न किया होता तो बीएसपी के कांग्रेस विरोधी वोटर स्मृति ईरानी को ही वोट करते और राहुल गांधी की जीत का अंतर काफी कम हो जाता। 2019 में सपा और बसपा का गठबंधन था और इस तरह से दोनों ने ही अपना प्रत्याशी अमेठी से खड़ा नहीं किया था, तो राहुल विरोधी सारे मत स्मृति ईरानी को चले गए, और वे करीब 55 हजार वोटों से जीतने में सफल रहीं।

इस बार भी समाजवादी पार्टी तो अमेठी सीट कांग्रेस को दे ही चुकी है, लेकिन हो सकता है, बीएसपी अपना प्रत्याशी खड़ा कर दे, और एंटी-कांग्रेस वोटरों के लिए एक विकल्प बचे जिसका फायदा अंतत: राहुल गांधी को हो सकता है।

अमेठी की विधानसभा सीटों पर कांग्रेस

अमेठी विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी की महाराजी प्रजापति जीती थीं, जिन्हें 88217 वोट मिले थे। बीजेपी के डॉ संजय सिंह 70121 वोट लेकर दूसरे नंबर पर रहे थे, और कांग्रेस के आशीष शुक्ला मात्र 14080 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे।

इसी तरह से गौरीगंज सीट पर समाजवादी पार्टी के राकेश प्रताप सिंह 79040 वोट लेकर जीते थे। बीजेपी के चंद्रप्रकाश मिश्रा 72077 वोट लेकर दूसरे स्थान पर थे। कांग्रेस के फतेह बहादुर इस सीट पर भी 28964 वोट लेकर तीसरे ही स्थान पर थे।

सलोन विधानसभा सीट पर बीजेपी जीती थी और समाजवादी पार्टी दूसरे नंबर पर थी। बीजेपी के अशोक कुमार को 87715 वोट मिले थे, जबकि समाजवादी पार्टी के जगदीश प्रसाद 85604 वोट लेकर करीब 2 हजार वोटों से हारे थे। कांग्रेस के अर्जुन कुमार को मात्र 11439 वोट मिले थे और वे तीसरे नंबर पर रहे थे।

तिलोई विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही थी। बीजेपी के मयंकेश्वर शरण सिंह 99472 वोट लेकर चुनाव जीते थे, तो समाजवादी पार्टी के मोहम्मद नई 71643 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे थे। कांग्रेस के प्रदीप सिंघल को मात्र 21978 वोट मिले थे।

जगदीशपुर विधानसभा सीट ही अमेठी लोकसभा सीट के तहत आने वाली ऐसी विधानसभा सीट थी जिस पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही थी। बीजेपी के सुरेश कुमार 89315 वोट पाकर पहले स्थान पर रहे थे, तो कांग्रेस के विजय कुमार 66491 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहकर सम्मानजनक तरीके से हारे थे। समाजवादी पार्टी की विमलेश कुमारी 27971 वोट लेकर तीसरे स्थान पर थी।

रायबरेली में कांग्रेस की स्थिति

बात की जाए रायबरेली की जो कि अमेठी की ही तरह से कांग्रेस और नेहरू-गांधी परिवार की परंपरागत सीट रही है। इस सीट से इंदिरा गांधी, शीला कौल,अरुण नेहरू और सोनिया गांधी चुनाव लड़ते रहे हैं। इस पर कांग्रेस केवल तीन बार हारी है।

एक बार 1977 में राज नारायण ने इंदिरा गांधी को हराया था। इसके अलावा, 1996 और 1998 में भी हारी थी जिनमें 1996 में नेहरू गांधी परिवार से कोई प्रत्याशी नहीं था, और 1998 में शीला कौल की लंदन रिटर्न बेटी दीपा कौल लड़ी थीं जो चौथे नंबर पर रही थीं।

खैर,  मौजूदा स्थिति में इस सीट पर भी अमेठी की ही तरह, 2004 के बाद से समाजवादी पार्टी अपना प्रत्याशी सोनिया गांधी के समर्थन में खड़ा नहीं करती है।

2019 में सोनिया गांधी 534918 वोट पाकर जीती थीं जबकि बीजेपी के दिनेश प्रताप सिंह 367740  वोट लेकर ठीक-ठाक अंतर से हारे थे। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी गठबंधन था इसलिए सपा ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था।

2014 में भी सोनिया गांधी ही जीती थीं, लेकिन तब उनकी जीत का अंतर ज्यादा था, लेकिन तब बीएसपी के प्रवेश सिंह भी 63633 वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहे थे। सोनिया गांधी को 526434 और दूसरे नंबर पर रहे बीजेपी के अजय अग्रवाल को 173721 वोट मिले थे।

साल 2009 में सोनिया गांधी 481490 वोट लेकर जीती थीं जिसमें दूसरे नंबर पर बीएसपी के आरएस कुशवाहा थे जिन्हें 109325 वोट मिले थे। बीजेपी के आरबी सिंह को मात्र 25 हजार वोट मिले थे और वे तीसरे नंबर पर रहे थे।

2004 में समाजवादी पार्टी ने भी इस सीट पर अपने प्रत्याशी अशोक कुमार सिंह को खड़ा किया था और वे 128342 वोट लेकर दूसरे नंबर पर रहे थे। सोनिया गांधी 378107 वोट लेकर पहले स्थान पर थीं। बीएसपी के राजेश यादव भी 57543 वोट लेकर तीसरे पर स्थान थे। बीजेपी के गिरीश नारायण पांडेय को मात्र 31290 वोट मिले थे जो चौथे नंबर पर थे।

इस तरह से देखें तो लोकसभा चुनाव में जब से समाजवादी पार्टी ने अपना प्रत्याशी उतारना बंद किया, तब से ही कुछ चुनावों तक तो बीएसपी आगे रही, और फिर बीजेपी ही सीधे सोनिया गांधी और कांग्रेस को चुनौती देने की स्थिति में आ गई, यानी समाजवादी पार्टी के न लड़ने का फायदा सोनिया के बजाय बीजेपी को ही होता है।

रायबरेली की विधानसभा सीटों पर कांग्रेस

समाजवादी पार्टी के न लड़ने का फायदा बीजेपी को क्यों हो रहा है, इसके पीछे कारण भी है। दरअसल रायबरेली लोकसभा सीट की पांचों विधानसभा सीटों में कांग्रेस कहीं मुकाबले में नहीं बची है। 5 में से 2 पर बीजेपी काबिज है तो बाकी तीन पर समाजवादी पार्टी ही है। अब विधानसभावार वोटों की स्थिति देखते हैं ताकि पता लगे कि कांग्रेस की स्थिति कितनी मजबूत है।

बछरावां  विधानसभा सीट पर 2022 में समाजवादी पार्टी के श्याम सुंदर भारती जीते थे जिन्हें 65,747  वोट मिले थे, और बीजेपी के साथ गठबंधन के तहत अपना दल (सोनेलाल) के लक्ष्मीकांत रावत दूसरे नंबर पर थे जिन्हें 62,935 वोट मिले थे। कांग्रेस के सुशील पासी 56,835 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे।

रायबरेली लोकसभा सीट में आने वाली दूसरी विधानसभा सीट है हरचंदपुर, जिस पर अभी समाजवादी पार्टी के राहुल लोधी विधायक हैं। राहुल लोधी को पिछले चुनावों में 92,498 वोट मिले थे, और बीजेपी के राकेश सिंह 78,009 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर थे। कांग्रेस की स्थिति का पता इस बात से लगता है कि तीसरे स्थान पर रहे उसके प्रत्याशी सुरेंद्र विक्रम सिंह को मात्र 16,230 वोट मिले थे।

अब बात करें रायबरेली विधानसभा सीट की, तो इस पर कभी कांग्रेसी रही अदिति सिंह पिछली बार बीजेपी के टिकट पर जीती और उन्हें 102429 वोट मिले थे। उन्हें चुनौती देने वाले समाजवादी पार्टी के ही राम प्रताप यादव थे जिन्हें 95254 वोट मिले थे। कांग्रेस के डॉ मनीष चौहान मात्र 14954 वोट पाकर तीसरे स्थान पर थे।

अब बात सरेनी विधानसभा सीट की, तो इस पर समाजवादी पार्टी  देवेंद्र प्रताप सिंह 66166 वोट लेकर जीते थे। यहां भी दूसरे स्थान पर बीजेपी ही थी जिसके धीरेंद्र बहादुर सिंह को 62359 वोट मिले थे। कांग्रेस की सुधा द्विवेदी तीसरे स्थान पर थीं जिन्हें 42702 वोट मिले थे जबकि इनसे कुछ ही कम वोट चौथे स्थान  पर रही बीएसपी के ठाकुर प्रसाद यादव को मिले थे जिन्होंने कुल 38155 वोट पाए थे।

रायबरेली लोकसभा सीट में आने वाली पांचवीं विधानसभा सीट है ऊंचाहार। 2019 में इस पर भी समाजवादी पार्टी जीती थी। उसके प्रत्याशी मनोज कुमार पांडेय को 82514 वोट मिले थे। ये अलग बात है कि अब मनोज कुमार पांडेय बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। दूसरे नंबर पर बीजेपी के अमरपाल मौर्य थे जिन्हें 75893 वोट मिले थे। बीएसपी की अंजलि मौर्य  34692 वोट लेकर तीसरे स्थान पर थीं, तो कांग्रेस के अतुल सिंह मात्र 9985 वोट लेकर चौथे स्थान पर रहे थे।

इस तरह से यह साफ दिखता है कि रायबरेली लोकसभा सीट भी वास्तव में समाजवादी पार्टी की ही है जिसे वह सोनिया गांधी के सम्मान में छोड़ती रही है, और इसका नतीजा ये हो रहा है कि बीजेपी इस लोकसभा सीट पर लगातार मजबूत होती जा रही है।

अब सोनिया गांधी इस सीट से लड़ेंगी नहीं, और कोई प्रियंका गांधी के अलावा कोई और कांग्रेसी इस सीट से लड़ता है तो परिणाम का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।

अब क्या संभावनाएं हैं

अभी तक कांग्रेस अमेठी और रायबरेली की सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाई है, लेकिन उसका कहना है कि वो रणनीति के तहत ऐसा कर रही है। हालांकि इन दोनों सीटों पर उसे प्रत्याशियों का संकट भी है।

अमेठी से राहुल के फिर हारने की संभावनाएं कुछ तो हैं ही, इसलिए उनके अमेठी से लड़ने में कुछ हिचक भी है, लेकिन सीट ऐसी है कि एक बार छोड़ दी तो हमेशा के लिए छूट सकती है।

अगर राहुल लड़ते हैं और जीत भी जाते हैं, लेकिन संभावना ये भी है कि वे केरल की वायनाड सीट से भी जीत जाएंगे। ऐसे में उन्हें एक सीट छोड़नी पड़ेगी। वायनाड उनके लिए संकट में मददगार रही है, और उसे छोड़ना भी उनके लिए मुश्किल होगा, और अगर अमेठी छोड़ दें तब तो मुश्किल होगी ही।

फिर अमेठी से दूसरा प्रत्याशी फिर तलाशना होगा। अगर परिवार से कोई प्रत्याशी हुआ तब तो फिर भी ठीक है, लेकिन परिवार के बाहर से किसी को टिकट दिया तब फिर ये सीट उनके हाथ से निकल सकती है। हां, ये जरूर है कि अमेठी से जीतने के बाद वो प्रियंका गांधी को उपचुनाव में लड़वा सकते हैं तब कोई समस्या नहीं होगी।

हालांकि अगर अमेठी से प्रियंका उपचुनाव में लड़ने के लिए तैयार रखी जाती हैं तो फिर दूसरी खानदानी सीट रायबरेली पर उम्मीदवार का संकट हो जाएगा। रायबरेली से अब सोनिया गांधी लड़ेंगी नहीं, और अगर रायबरेली से गांधी परिवार से बाहर का कोई उम्मीदवार उतारा तो उसके हारने की प्रबल संभावना है।

कुल मिलाकर, कांग्रेस की सबसे मजबूत मानी जाने वाली दोनों सीटों अमेठी और रायबरेली को लेकर कांग्रेस की राह काफी मुश्किल है।

दोनों सीटों को न केवल इस बार जीतना भी उसके लिए जरूरी है, बल्कि आगे के लिए भी अपना कब्जा रखना जरूरी है और दोनों ही काम उसके लिए बहुत मुश्किल लग रहे हैं।

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