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क्लाइमेट चेंज : मौसम की मार से विदर्भ में गहराया कृषि संकट, रोते हुए किसानों की सुध लेने वाला कोई नहीं

'अन्नदाता सुखी भव:' एक किताबी उक्ति बनकर रह गई है, हकीकत निराशाजनक है। देश का अन्नदाता दुःखी है। अन्नदाता आत्महत्या करने को मजबूर है। किसानों की दशा सुधारने के लिए किए गए वायदे खोखले ही साबित हुए हैं।

नागपुर के आंजन गाँव के किसान कानू लांडगे ने 50,000 रुपये का कर्जा लेकर 2 एकड़ जमीन में गेहूं बोई थी लेकिन विडम्बना देखिए- अपने खुद के परिवार के भरण पोषण के लिए कानू लांडगे को 5000 रुपये की गेहूं खरीदना पड़ा है। महाराष्ट्र के विदर्भ के किसान कानू लांडगे का यह उदाहरण देश में गहराते जा रहे कृषि संकट की बानगी को बयां कर रहा है।

कर्जा कैसे चुकाएंगे ? ब्याज का क्या होगा ? पूछने पर विदर्भ के किसान कानू लांडगे रो पड़ते हैं, कुछ क्षणों के बाद खुद को संभालते हुए रुँधे गले से कहते हैं, ‘इस साल तो हम अपना कर्जा नहीं चुका पाएंगे, अब अगले साल की फसल की पैदावार का इंतजार करेंगे, सब कुछ सही रहा तो शायद अगले साल कुछ कर्जा चुका पाऊँ।’

विदर्भ का कृषि संकट जग जाहिर है, यहां सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं। इस साल मौसम ने फिर से किसानों की उम्मीदों और जरूरतों पर वज्रपात कर दिया है। 

मध्य भारत में सक्रिय हुए पश्चिमी विक्षोभ के कारण नागपुर जिले में 16 व 17 मार्च को लगातार दो दिन हुई बेमौसम बारिश से सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को हुआ है। जिले में कई स्थानों पर ओलावृष्टि होने से खेतों में खड़ी फसल खराब हो गई है। ओलावृष्टि होने से गर्मी से राहत तो मिली लेकिन किसानों के लिए ये ओले आफत के गोलों की तरह बरसे।  11 फरवरी को हुई बरसात के नुकसान से किसान उबरे भी नहीं थे कि 16 मार्च को किसानों पर फिर आफत बरस पड़ी।

Lady Farmers of Vidarbha
गेहूं की सफाई करते हुए गाँव की महिलाएं

मौसम विभाग ने नागपुर व आसपास के जिलों में बारिश को लेकर 19 मार्च तक का रेड अलर्ट जारी किया था। अनियमित और असामान्य बारिश का यह सिलसिला 30 मार्च तक जारी रहा। नागपुर शहर में महज एक घंटे की बारिश से ही जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित हो गया। किसानों की फसल बड़े पैमाने पर बर्बाद हुई।

किसानों के नुकसान की सुध लेने वाला कोई नहीं

मार्च में हुई इस बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से बड़ी मात्रा में किसानों की फसल बर्बाद हुई है। प्रशासन के पास किसानों की सुध लेने की फुरसत नहीं है। 16, 17, 18 व 19 मार्च को हुई बेमौसम बारिश से जिले के 256 गांवों में 2537 हेक्टेयर क्षेत्र में किसानों की फसल ख़राब हो गई है। आसमान से बरसी इस आफत से 3874 किसान प्रभावित हुए हैं। अभी तक फसल नुकसान के पंचनामे का काम पूरा नहीं हो सका है। अधिकारी-कर्मचारी चुनावी प्रक्रिया में व्यस्त बताए जा रहे हैं। शासन-प्रशासन ने किसानों को उनके हाल पर छोड़ दिया है।

चुनाव में व्यस्त प्रशासन 

एक तरफ लोकसभा चुनाव के चलते राज्य में आचार संहिता लागू हुई तो दूसरी तरफ उसी दिन से बारिश आफत बनकर बरसने लगी। किसानों के इतने बड़े नुकसान के बाद भी जिले का कोई नेता किसानों का दुःख-दर्द जानने नहीं पहुंचा। 

नागपुर जिले के किसानों को चौतरफा नुकसान हुआ है। बिजली गिरने से परशिवनी व रामटेक में क्रमशः एक-एक पशु की मृत्यु हो गई। बारिश व ओलावृष्टि से जिले में 1 मकान पूरी तरह से व 140 मकान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए। 256 गांवों में 2357 हेक्टेयर क्षेत्र में फसल बर्बाद हो गई है।

Vidarbha Farmer
ओलावृष्टि से बेकार हुई गेहूं की फसल

जिले के काटोल, नरखेड़ व आस-पास के इलाके में बड़े पैमाने पर संतरे की खेती की जाती हैं। गेहूं, चना, संतरा, आम, मौसम्बी, मिर्ची व सब्जियों की फसल ख़राब हो गई है लेकिन अभी तक फसल नुकसान का सर्वेक्षण नहीं हुआ है। चुनाव कराने में व्यस्त प्रशासन किसानों को भूल गया है, किसानों को हुए नुकसान का मुआवजा मिलना मुश्किल लग रहा है।

जवाब किसी विभाग के पास नहीं 

फसल नुकसान के पंचनामे का काम तीन विभाग मिलकर करते हैं। कृषि, राजस्व व ग्राम विकास विभाग के अधिकारी-कर्मचारी मिलकर रिपोर्ट तैयार करते हैं। जिलाधिकारी, जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी व कृषि विभाग के जिला अधीक्षक मिलकर रिपोर्ट विभागीय आयुक्त को भेजते हैं। यहां से मुआवजे के लिए रिपोर्ट सरकार को भेजी जाती है। पंचनामे कब तैयार होंगे ? रिपोर्ट कब बनेगी ? और सरकार को कब भेजी जाएगी ? इइन सवालों के जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। लोकसभा चुनाव सिर पर हैं, किसानों की उपेक्षा नेताओं पर भारी पड़ सकती है। 

जिले के प्रभावित गांवों की संख्या

नागपुर 09
कामठी 53
हिंगना 00
सावनेर 46
काटोल 32
कलमेश्वर 45
नरखेड 00
रामटेक 30
पारशिवनी 15
मौदा 06
उमरेड 00
कुही 20
भिवापुर 00
कुल 256

आंजन गाँव के कानू लांडगे 2 एकड़ जमीन में खेती करते हैं, कानू बताते हैं, ‘50,000 रुपये कर्जा लेकर दो एकड़ में गेहूं बोए थे, तीव्र हवा और ओलावृष्टि के कारण आधे से ज्यादा गेहूं नष्ट हो गई है। जो 4 बोरी गेहूं बची है वह ओलों की मार और बारिश से बेकार हो गई है। बाजार में इस गेहूं का भाव नहीं मिलेगा। गेहूं की खेती करने वाले किसान कानू घर में खाने के लिए 5000 रूपये की गेहूं खरीदने को मजबूर हुए।

अखिलेश कुकडे़ आंजन गाँव के युवा किसान हैं, वे बताते हैं, ‘गेहूं को बोने के बाद उसे पूरी तरह तैयार करना, देखभाल करना और कटाई करना इन सबमें काफी लागत आती है। बेमौसम बारिश की वजह से सारी फसल बर्बाद हो गई। लाभ होना तो दूर की बात है, हमारी लागत भी डूब गई, हम घाटे में पहुंच चुके हैं। बीते वर्ष 7 टन गेहूं की पैदावार हुई थी और इस साल सिर्फ 2 टन गेहूं ही पैदा हो सके हैं।’ 

खेती में लगातार हो रहे घाटे से अब किसानों का मोह भंग हो रहा है। गांव के किसान भारी नुकसान झेल रहे हैं।

Vidarbha farmer family
किसान अखिलेश कुकडे़ और उनकी माता कल्पना कुकडे़

अखिलेश की माता जी कल्पना कुकडे़ बताती हैं, ‘फसल की कटाई एक चुनौती बनती जा रही हैं, कटाई के लिए मजदूर बाहरी राज्य से बुलाने पड़ते हैं। स्थानीय मजदूर ज्यादा मजदूरी मांगते हैं। कभी-कभी मजदूर न मिलने से उन्हें बहुत ज्यादा परेशानी हो जाती हैं। क्योंकि फसल समय पर नहीं कटने से भी नुकसान ही होता हैं।’

किसान रुपचंद कुकडे़ बताते हैं, ‘हमने स्थानीय स्तर पर ज्ञापन सौंपकर किसानों की समस्या से प्रशासन को अवगत कराया है। लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यदि किसानों को उचित मुआवजा नहीं मिला तो किसानों के हालात बद से बदतर हो जाएंगे। खेती की बढ़ती लागत और सही दाम न मिलना बड़ी परेशानी है।

खेती में हो रहे घाटे ने श्रीमती रामचंद्र कड़व की चिंता को बढ़ा दिया है। वे अपनी 2 बेटियों की  शिक्षा और बेहतर भविष्य को लेकर परेशान हैं। छोटी बेटी ने बिना ट्यूशन के ही 12 वीं क्लास अच्छे अंकों के साथ पास की है। उनकी बड़ी बेटी बीएससी स्नातक के अंतिम वर्ष में है। श्रीमती कड़व दोनों बेटियों को खूब पढ़ाना-लिखाना कहती हैं। लेकिन खेती ही उनके परिवार की आय का एकमात्र स्त्रोत है। खेती में हो रहे नुकसान से उनका पूरा परिवार प्रभावित हो रहा है। सुरेखा लक्ष्मण कड़व 3 एकड़ जमीन में खेती करती हैं। इस वर्ष खेती से उन्हें मात्र 2 बोरी गेहूं की उपज प्राप्त हुई है।

Vidarbha Lady farmer
नष्ट होने के बाद बची हुई गेहूं को दिखाती हुईं श्रीमती रामचंद्र कड़व

विदर्भ एक शुष्क भूमि वाला क्षेत्र है, यहां अक्सर सूखा पड़ता है। इस कारण यहां के किसान एक ही फसल के सहारे जीवन की गाड़ी खींचने को मजबूर होते हैं। एक तरफ पानी के संकट सामना करने के साथ ही किसान महंगे बीज और खाद खरीदने को मजबूर होते हैं। इन सब दुश्वारियों के बाद प्राकृतिक कारण, मौसम की मार और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव किसानों की रीढ़ ही तोड़ देते हैं। 

नागपुर और विदर्भ के जिलों का यही हाल है। कृषि संकट झेल रहे किसानों की दुर्दशा गंभीर है। खेती-किसानी से उनका मोह-भंग हो रहा है। ‘अन्नदाता सुखी भव:’ एक किताबी उक्ति बनकर रह गई है, हकीकत निराशाजनक है। देश का अन्नदाता दुःखी है। अन्नदाता आत्महत्या करने को मजबूर है। किसानों की दशा सुधारने के लिए किए गए वायदे खोखले ही साबित हुए हैं। घाटे और कर्ज में डूबे किसानों का संकट गंभीर होता जा रहा है। कई किसानों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली है और जो किसान जिन्दा हैं वे आशंकाओं, असुरक्षाओं में जीवन जी रहे हैं। 

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