सागर। हमारा गाँव नौरादेही अभयारण्य के अंदर बसा हुआ है। गाँव में लोग पीढ़ी दर पीढ़ी से खेती करते आ रहे हैं। कई सालों से हम देखते आ रहे हैं कि नौरदेही अभयारण्य के अंतर्गत आने वाले आखीखेड़ा, पटना जैसे कई गाँव विस्थापन प्रक्रिया से गुजर चुके है। ऐसे में हमारे गाँव मोहली मे पीढ़ियों से निवासरत ग्रामवासियों के दिलोदिमाग में विस्थापन का भय समाया हुआ है। यह बात हमें मोहली गाँव मे रहने वाले संजीव बताते हैं। वे कहते हैं कि जंगल के जिस सिरहाने पर वे पले बढ़े थे, अब उसे छोड़कर जाना होगा, यह सरकारी हुक्म है। आज सरकार विकास के नाम पर कब, कैसे और कितनी बर्बर हो जाये इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं है। ऐसी स्थिति में आम आदमी विस्थापन को स्वीकार करने को तैयार हो जाता है, बशर्ते की उसे समुचित मुआवजा और पुनर्वास मिल जाये पर सरकार से इतना भी मिलना आसान नहीं होता है और विस्थापन की इस नई त्रासदी का गवाह बन रहा है नौरादेही अभयारण्य।
नौरादेही अभयारण्य मध्यप्रदेश राज्य में स्थित एक वन्य अभयारण्य है। यह करीब 1197 वर्ग किलोमीटर में विस्तारित है।अभयारण्य क्षेत्र राज्य के सागर, दमोह, नरसिंहपुर जिलों तक फैला हुआ है। इस अभयारण्य के अंतर्गत कई गाँव विस्थापित हो चुके हैं। कई गाँव विस्थापन की प्रक्रिया से गुजरने वाले हैं। यह कहानी एक ऐसे ही गाँव मोहली की है। जो अभी विस्थापित नहीं हुआ है लेकिन विस्थापन के मुहाने पर खड़ा है। मोहली गाँव सागर जिले के अंतर्गत आने वाले नौरादेही अभयारण्य क्षेत्र में बसा हुआ है। इस गाँव के लोग नौरादेही अभयारण्य में हो रहे विस्थापन की प्रक्रिया से सहमे हुए हैं।
संजीव दावा करते हैं कि हमारे इर्दगिर्द के जिन गाँव के लोगों को विस्थापित किया गया है। उन गाँव में परिवार के प्रत्येक सदस्य को 15 लाख रुपए देकर दिया गया है। जबकि, परिवार के गैरवयस्क सदस्य को कोई मुआवजा नहीं मिला है। वहीं, जिस जमीन पर लोग पीढियों से खेती करते आ रहे हैं, उस जमीन का मुआवजा कुछ भी नहीं दिया गया। जब से आसपास के गाँव विस्थापित हुए है तब से हमारे गाँव में सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों को मिलना बंद हो गया है। पीएम आवास से लेकर सड़क, नाली जैसी योजनाएं ठप्प पड़ी हैं। उनकी कहना है कि मुआवजा की राशि दोगुनी (यानी प्रत्येक व्यक्ति 30 लाख) कर दी जाए ताकि विस्थापित व्यक्ति अपना घर बना सके। रोजगार के साधन स्थापित कर सके।
दीवान सिंह कहते हैं कि वे विकास के लिए किये जा रहे विस्थापन के खिलाफ नहीं हैं लेकिन, विस्थापन में यदि हमारी 4-5 एकड़ जमीन अधिग्रहित की जाती है, तब जमीन का इतना मुआवजा मिलना ही चाहिए कि हमें अहसास ना हो कि हमारी जमीन छिन गई है। हम दूसरी जगह अपने बस सकें, ऐसी व्यवस्था तो होनी ही चाहिए।
जब हमने महेश यादव की तरफ रुख किया, तब वह अपनी बात रखते हुए कहते हैं कि हमारे आसपास के गाँव विस्थापित किए जाने से सबसे ज्यादा समस्या बेरोजगारी की बन रही है। आसपास के गाँव से लघु उद्योग, व्यापार चलता था। लेकिन आज धंधे चौपट हो गए हैं। बेरोजगारी से लोग बड़े शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं।
महेश के साथ खड़े लच्छु सेन अपना दर्द व्यक्त करते हुये कहते हैं कि हमारी पाँच एकड़ जमीन है। जमीन के साथ, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी भी है। इनसे हमारा पालन-पोषण होता है। यदि हमें विस्थापित किया जाता है, तब हमें जमीन, पेड़-पौधे और पशु-पक्षी सभी का मुआवजा मिलना चाहिए। वरना हमारे साथ आर्थिक न्याय नहीं हो सकेगा।
मोहली निवासियों ने विस्थापन में अपनी मांगों को लेकर एक सहमति पत्र भी लिखा है, जिसमें कहा गया है कि हमारा गाँव सागर रहली विधानसभा के अंतर्गत आने वाले नौरादेही अभयारण्य में स्थित है। गाँव का नाम मुहली (पंचायत) है। हम कई पीढ़ियों से इस गाँव में निवास करते आ रहे हैं। गाँव में लोधी, आदिवासी (अधिक आबादी), यादव, जैन, अहिरवार, राजपूत, मुस्लिम, ब्राम्हण, प्रजापति, परिहार, रजक, सेन जाति के लोग बरसों से रह रहे हैं।
पत्र में आगे लिखा गया है कि हम (ग्रामवासी) कई सालों से देखते आ रहें हैं कि नौरादेही अभयारण्य के तहत हमारे आसपास के आँखीखेड़ा, खगोरिया, सिंगपुरी, वरपानी, तिरनी, विजनी सहित अन्य गाँव विस्थापन की प्रक्रिया से गुजर चुके हैं। उचित मुआवजा नहीं मिलने से इस गाँव की हालात बदतर हो गई है। विस्थापित हो चुका यह गाँव कृषि पर निर्भर था। लेकिन अब अभयारण्य में जमीन जाने से यहाँ के लोग खेती-किसानी से वंचित हो गए हैं। ऐसे में उनकी (विस्थापितों की) आजीविका पर संकट है।
हम मोहली निवासियों को भी विस्थापन का डर है। अगर हमारे गाँव का विस्थापन होता है। तब हमारी इन मांगों को स्वीकार किया जाए। हमारी मुख्य मांगें इस तरह हैं, प्रति एकड़ 10 लाख रूपए मुआवजा दिया जाए। गाँव के प्रति परिवार को रोजगार दिया जाए। शिक्षा, स्वास्थ, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं दी जाएं। प्रत्येक परिवार के प्रत्येक सदस्य को 30 लाख रूपए मुआवजा दिया जाए। निवास के लिए भूमि उपलब्ध कराई जाए।
उपरोक्त मांगों को अगर नहीं माना जाता है। तब हम ग्रामवासी (मोहली) विस्थापित नहीं होंगे।
मोहली ग्रामवासियों ने आगे हमसे जिक्र किया कि मोहली ग्राम से सटे मोहलीपटना गाँव के विस्थापन की प्रक्रिया भी अब शुरू हो चुकी है। तब हम जंगल पार करते हुए मोहलीपटना गाँव पहुँचते हैं। इस गाँव को देखकर महसूस होता है कि गाँव दशकों से पिछड़ा है। गाँव तक पहुँचने के लिए आज भी कच्ची और रेतीली सड़क है। इस गाँव में अधिकांश: घर मिट्टी के बने हुए हैं। जब हमने मोहलीपटना गाँव के लोगों से मुलाकात कर संवाद किया तो कई ग्रामवासियों ने बताया कि यहाँ विस्थापन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। लोगों की विस्थापन फाइलें भी बनने लगीं है।
कुछ लोगों के साथ मौजूद श्यामलाल अहिरवार की तरफ जब हमने नजरें घुमाईं और विस्थापन प्रक्रिया पर चर्चा की। तब श्यामलाल कहते हैं कि हम बीते कई सालों से सुनते आ रहें है कि गाँव का विस्थापन होना है। ऐसे में ना हम कुछ कर पा रहे हैं और ना शहरों की ओर निकल पा रहे हैं। आज जब विस्थापन प्रक्रिया अंतिम दौर में है, तब हमें पता चल रहा है कि परिवार की यूनिट के लिए 15 लाख रुपये मिलना है। चूंकि, यह गाँव कृषि पर आश्रित है। ऐसें में, गाँव की जमीन विस्थापन में डूब जाएगी। तब 15 लाख रूपए की राशि हमें जमीन खरीदने के लिए अपर्याप्त है। इसलिए हमें जमीन के बदले जमीन चाहिए। श्यामलाल आगे बोलते हैं कि करीब 7 साल से गाँव शासन की विभिन्न योजनाओं के लाभ से वंचित है। जिससे गाँव की हालत खस्ता है और विकास रुका हुआ है।
जब हमने पप्पू यादव की तरफ रुख किया तो देखा कि वे हाथ पर हाथ रखें चिंतित दिखाई देते हैं। पप्पू का कहना है कि हमारे परिवार में चार सदस्य हैं। हम मियां-बीबी और दो बेटे। एक बेटा 16 साल का है, दूसरा 17 साल का। हमारी गुजर-बसर का साधन दो एकड़ खेती है। जिसमें तीन कुआँ भी हैं। हमें इस विस्थापन में केवल 15 लाख रूपए मुआवजा मिलना है। ना जमीन का मुआवजा मिला और ना कुआँ का। ऐसे में सरकार को हमारे सुरक्षित भविष्य की तरफ भी ध्यान देना चाहिए।
गंधर्व कहते हैं कि विस्थापन में हमारे पेड़-पौधों, घर-मकान का मुआवजा दिया जाए। साथ में, 15 साल तक के प्रत्येक बच्चे का 15 लाख रुपए मुआवजा दिया जाए। यह मांगें न मानने पर, हम हरगिज विस्थापन कबूल नहीं करेंगे।
नौरादेही अभयारण्य में हो रहे विस्थापन को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम पत्र भी लिखा। पत्र में दर्ज है कि सरकारी लालफ़ीताशाही में फंसे अनेक गाँव के ग्रामवासी बिना उचित मुआवजे की वेदना भोग रहे है। इस पत्र में आगे मांगें भी लिखी गई हैं,
- प्रत्येक परिवार को 15 लाख रूपए की जगह 25 लाख रूपए दिया जाए।
- 18 वर्ष के प्रत्येक सदस्य को प्रथक परिवार मानते हुए 25 लाख रूपए दिए जाएं।
- भू-अर्जन अधिनियम 2013 के प्रावधानों के अनुरूप कलेक्टर गाइड लाइन से चार गुना मुआवजा दिया जाए।
- पात्रतानुसार वन अधिकार अधिनियम के तहत भूमि अधिग्रहित करने पर भूमि दी जाए।
इस पत्र में आगे लिखा है कि मेरा आपसे अनुरोध है कि नौरादेही वन अभयारण्य के तहत विस्थापित हो रहे सभी प्रभावित परिवारों के लिए विशेष पुनर्वास नीति बनाई जाए और क्रियान्वित की जाए। साथ ही बढ़ा हुआ मुआवजा दिए जाने के पश्चात अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग सहित विस्थापित परिवारों का उचित स्थान पर पुनर्वास किया जाना उचित होगा।
नौरादेही अभयारण्य में विस्थापन को लेकर हमने नौरादेही के पूर्व वन रक्षक और वन परिक्षेत्र अधिकारी धीर सिंह ठाकुर से जब संवाद किया। तब धीर सिंह कहते है कि नौरादेही अभयारण्य में विस्थापन की पहले अलग नीति थी। जिसके तहत शासन द्वारा प्रत्येक व्यक्ति 10 लाख रूपए मुआवजा, जमीन के बदले जमीन, मकान के बदले मकान निर्धारित था। साथ-साथ शासकीय सुविधाएं भी निर्धारित थी। लेकिन कई ग्रामवासी 10 लाख रूपए के मुआवजे में ही संतुष्ट हो गए। ऐसे बहुत से किसानों को उचित मुआवजा नहीं मिल पाया। अभी जो 15 लाख रूपए मुआवजा (प्रत्येक व्यक्ति) को दिया जा रहा है। उसे बढ़ाया जाना चाहिए। वहीं, सरकार अगर विस्थापितों को जमीन के बदले जमीन दे, तब जाकर विस्थापित संरक्षित हो पाएंगें।
जब हम विस्थापन से संबंधित अधिनियम का अध्ययन करते हैं। पुनर्वास अधिनियम 2013 के प्रावधानों के अनुसार, विस्थापितों को फिर से व्यवस्थित करने के लिए, रोजगार, सड़क, जल, परिवहन, शमशान घाट, शिक्षा, स्वास्थ्य, डाकघर, बिजली, जैसी अन्य नागरिक सुविधाएं दी जानी चाहिए। यदि यह सुविधाएं विस्थापितों को नहीं दी जाती, तब विस्थापित आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक न्याय से वंचित रह जाएंगे। ऐसे में विस्थापित, अपने स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसे संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण की गुहार लगाते रहेंगे।