Thursday, December 25, 2025
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वंदे मातरम् : पहले परहेज अब मौका देख विवाद खड़ा कर रही संघी ताकतें

सांप्रदायिक धारा अब पूरा वंदे मातरम् गाना लाने की मांग कर रही है, उसने यह गाना कभी नहीं गाया था। यह मुख्य रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठकों में गाया जाता था। वंदे मातरम् का नारा अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वालों ने लगाया था। चूंकि RSS आज़ादी के आंदोलन से दूर रहा और अंग्रेजों की 'बांटो और राज करो' की नीति को जारी रखने में उनकी मदद की, इसलिए उन्होंने यह गाना नहीं गाया और न ही यह नारा लगाया।

सांप्रदायिक राष्ट्रवाद और ‘कर्तव्यों-अधिकारों’ की अवधारणा

जैसे-जैसे भारत में हिंदू राष्ट्रवाद बढ़ रहा है, हमारे राष्ट्रीय आंदोलन और संविधान में मौजूद 'अधिकारों' की अवधारणा को हिंदुत्व की राजनीति द्वारा धीरे-धीरे कमज़ोर किया जाना है। यहीं से नॉन-बायोलॉजिकल नरेंद्र मोदी अधिकारों को कमज़ोर करने और कर्तव्यों को हाईलाइट करने के लक्ष्य को हासिल करने की यात्रा शुरू करते हैं। लॉर्ड मैकाले द्वारा शुरू किए गए डंपिंग एजुकेशन सिस्टम की मांग इसी दिशा में एक छोटी सी कोशिश थी। अब 26 नवंबर को संविधान दिवस पर इसे और साफ़तौर पर कहें तो, 'हाल ही में संविधान दिवस (26 नवंबर, 2025) पर भारतीय नागरिकों को लिखे एक लेटर में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकों के लिए अपने आधारभूत कर्तव्यों को पूरा करने के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने तर्क दिया कि इन ड्यूटीज़ को पूरा करना एक मज़बूत डेमोक्रेसी और 2047 के लिए उनके 'विकसित भारत' विज़न की दिशा में देश की तरक्की की नींव है।

क्या मंदिर बना कर देश के जख्मों को भरा जा सकता है?

मोदी का रामराज्य, रहीम के अनुयायियों से नफ़रत पर आधारित है। वह न्याय की अवधारणा के खिलाफ है। अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय 'लोकविश्वास' पर आधारित था, जिसे इस अंधाधुंध प्रचार के जरिए गढ़ा गया था कि भगवान राम का जन्म ठीक उसी स्थान पर हुआ था जहाँ बाबरी मस्जिद थी। यह इस तथ्य के बावजूद कि सन 1885 में अपने निर्णय में अदालत ने कहा था कि वह ज़मीन सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पति है। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का अयोध्या मामले में फैसला क़ानून पर नहीं बल्कि भगवान द्वारा सपने में उन्हें दिए गए निर्देशों पर आधारित था क्योंकि इस बात का कोई सुबूत नहीं है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण राममंदिर को तोड़ कर किया गया था।

क्या मन में धोती और चुटिया धारण कर मैकाले को समझा जा सकता है

मोदी और उनके जैसे लोग सोचते हैं कि मैकाले/अंग्रेजों का लाया हुआ कल्चर सीधी लाइन में चला। दिलचस्प बात यह है कि वे खुद भाषा या धर्म पर आधारित यूरोपियन स्टाइल के राष्ट्रवाद के पक्ष में हैं। भारत में जो हुआ वह कहीं ज़्यादा मुश्किल था, जहाँ इंग्लिश एजुकेशन की शुरुआत ने मॉडर्न लिबरल वैल्यूज़ को लाने में मदद की और समाज के सभी वर्गों जैसे दलितों और महिलाओं के लिए ज्ञान के रास्ते खोले, जो शिक्षा से दूर थे, जहाँ गुरुकुल जैसी शिक्षा सिर्फ़ ऊँची जाति के पुरुषों तक ही सीमित थी।

अमेरिका में हिंदुत्व के बढ़ते विरोध के चलते आरएसएस कर रहा है पैरवी 

अमरीका में भी हिंदुत्व चिंता का विषय है। अनेक रिपोर्टों  में हिन्दुत्ववादियों की उनके एजेंडा से जुड़ी गतिविधियों को उजागर किया गया है। रपट में बताया गया है कि किस तरह हिन्दू राष्ट्रवादी समूह अमरीका में हिन्दू धर्म के संकीर्ण और राजनीति पर आधारित संस्करण को बढ़ावा दे रहे हैं।  इसके अलावा, हिन्दुत्ववादी, ऊंची जातियों के वर्चस्व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पैरोकार हैं और अन्य धर्मों के प्रति असहिष्णुता का भाव रखते हैं। अमरीका में हिंदुत्व के बढ़ते विरोध के चलते ही शायद आरएसएस को अपनी छवि सुधारने के लिए लॉबियिंग फर्म की सेवाएं लेने की ज़रुरत पड़ी है।

आर एस एस ने संविधान और डॉ अंबेडकर को कभी महत्व नहीं दिया

आरएसएस का संविधान 'मनुस्मृति' है। जब देश में संविधान लागू हुआ था, तभी आरएसएस के प्रमुख ने संविधान का विरोध किया था। ऐसे में कैसे उम्मीद की जा सकती है कि सत्ता में बैठे लोग, जो वास्तव में आरएसएस के धुर एजेंट हैं, वे संविधान और संविधान निर्माता डॉ अंबेडकर को वैसा सम्मान देंगे, जिसके वे हकदार हैं। स्थिति तो यहाँ तक है कि संविधान और डॉ अंबेडकर को मानने वालों का भी घोर विरोध करते हैं और आपत्तिजनक बयान देने मे भी पीछे नहीं रहते हैं। यही कारण है कि समाज के दलित, पिछड़े और आदिवासी जिन्हें संविधान के अनुसार बराबरी का दर्जा व अधिकार मिला हुआ है, उन्हें भी राजनैतिक, सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक मजबूती पाते देख परेशान हो, उनका शोषण करने में पीछे नहीं रहते। देश की संसद में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा दिया गया आपत्तिजनक बयान इस बात का सबूत है।

मानवाधिकार दिवस : सौ वर्षों से मानवाधिकार के उल्लंघन का रिकॉर्ड बनाता आरएसएस

वर्ष 2014 के बाद मानवाधिकार पर लगातार हमले हो रहे हैं। आरएसएस लगातार हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की कवायद में मुस्लिमों पर खुले आम हमला कर रहा है। बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने के बाद संघ ने अन्य मस्जिदों का सर्वे कर मंदिर होने का दावा कर रही है। मुद्दों पर विचार न कर धार्मिक हमलों में मुस्लिमों को आरोपी बनाकर जेल में डाला जा रहा है। ऐसी घटनाएं एक या दो नहीं बल्कि अनेक हैं। मानवाधिकार दिवस पर संघ की कारास्तानी की पोल खोलता डॉ सुरेश खैरनार का यह लेख

पूजा स्थल विवाद : आरएसएस और भाजपा पूजा स्थल अधिनियम 1991 का खुला उल्लंघन कर रहे हैं

क्या कारण है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 के पारित के बाद भी अभी हाल के समय में अनेक मस्जिद व दरगाहों के सर्वे के दावे सामने आने लगे, और इसके बाद सेवा निवृत हुए मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड लगातार निशाने पर हैं क्योंकि उन्होंने वाराणसी के ज्ञानवापी में सर्वे की अनुमति देने के बाद कहा था कि पूजा स्थल अधिनियम की धारा 3 में पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाने पर कोई रोक नहीं है, उनका यही बयान मस्जिदों के सर्वे की याचिकाकर्ताओं के साथ है जबकि इसी अधिनियम की धारा 4, 15 अगस्त, 1947 को मौजूद धार्मिक स्थलों के स्वरूप को बदलने पर रोक लगाती है। मस्जिदों और दरगाहों के सर्वे की अनुमति साम्प्रदायिक माहौल को बिगाड़ने की साजिश के अलावा कुछ और नहीं है।

डॉग व्हिसल के माध्यम से अल्पसंख्यकों पर निशाना साधते भाजपा नेता

वर्ष 2014 के बाद  अल्पसंख्यकों को लेकर देश की कुर्सी संभालने वाले जिस तरह की भाषा का प्रयोग लगातार कर  नफरत फैला रहे हैं। जिसका परिणाम यह हुआ कि ध्रुवीकरण की राजनीति तेज हुई और जिसका सीधा असर मतदान पैटर्न  पर दिखाई दिया। सामाजिक धारणायें भी इससे अछूती नहीं रहीं। आज हर हिंदू परिवारों के हजारों व्हाट्सएप ग्रुप और ड्राइंग रूम चैट में मुसलमानों को गुनहगार बनाकर नफरत फैलाई जा रही है। लेकिन इस विभाजनकारी भावना से कैसे निपटा जाए? लोगों के बीच वैकल्पिक आख्यान को विकसित करने की आवश्यकता है

भाजपा क्यों भारत जोड़ो यात्रा से घबराई हुई है

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले देवेन्द्र फड़णवीस का बयान आया कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी शहरी नक्सलियों और अति वामपंथी तत्वों से घिरे हुए थे और वे कांग्रेसी कम और अति वामपंथी विचारधारा वाले अधिक लग रहे थे। दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी अपने गुरु एमएस गोलवलकर के कथन (बंच ऑफ थॉट्स पेज 133) के अनुसार मुस्लिम, ईसाई और कम्युनिस्ट हिंदू राष्ट्र के लिए आंतरिक खतरा हैं, फडणवीस और उनके जैसे लोग हिंदू राष्ट्र के एजेंडे के खिलाफ किसी भी चीज को या तो मुस्लिमों या ईसाइयों या शहरी नक्सलियों या अति वामपंथी के रूप में प्रचारित करते हैं।

क्या हमारे देश में डेमोक्रेसी को करोड़पतियों ने हाइजैक कर लिया है?

जिस तरह की डेमोक्रेसी आज हमारे देश में चल रही है, उसे करोड़ोक्रेसी कहना ज्यादा सही होगा। अब कल महाराष्ट में भाजपा के सांसद और महाराष्ट्र के महासचिव ने मतदान के एक दिन पहले जिस तरह करोड़ों रूपये बांटते हुए पकडे गए, उससे चुनाव आयोग को लेकर निश्चय ही अति अविश्वास की स्थिति पैदा हुई है। यदि चुनाव आयोग के हाथ में कुछ भी नहीं रह गया है तो इसे खत्म कर देना चाहिए और यह जिम्मेदारी सत्तारूढ़ पार्टी के हाथों में खुलकर दे देनी चाहिए, जैसा कि अभी है।
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