समाज और संस्कृति शब्द-योग गांव के लोग Sep 5, 2021 आजकल हम शब्दों की तह तक नहीं जाते। जो जैसा दिखता है वैसा मान लेते हैं ।… Read More...
समाज और संस्कृति एक हैं शायर वसीम एक हैं घरेलू वसीम ! गांव के लोग Aug 17, 2021 पहला हिस्सा सामाजिक परिप्रेक्ष्य में एक जनवादी नारा है जिसमें संसाधनों की वाज़िब हिस्सेदारी की बात उठाई गई है। यह सच्चाई पूँजीवादी… Read More...
विश्लेषण/विचार काँख ढँकने के फेरे में पड़े तो इंकलाब ज़िंदाबाद कैसे कहोगे पार्टनर ! गांव के लोग Jul 5, 2021 दरअसल विरोध जब चिढ़ौनी बन जाए या बना दिया जाए तो विकल्प की तलाश भटक रही आत्मा बन जाती है। सत्ता की क्षमता का प्रदर्शन ही इसमें है कि वह अपने… Read More...