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#नज़ीर_बनारसी
बनारसी साड़ी के कारोबार का एक साहित्यिक आकलन
पहले भी बुनकर की ज़िंदगी कर्ज़ से शुरू होती थी और आज भी वही हालात हैं। आज पावरलूम की तेजी है लेकिन एक सामान्य बुनकर के लिए पावरलूम लगवा लेना क्या आसान है। हर पावरलूम वाला बड़े गिरस्ते के कर्ज़ में है और हर दिन वह कर्ज़ चुका रहा है। अगर उसने अपने घर में करघा लगाया है तो जगह का किराया और महंगी बिजली सब कुछ उसके मत्थे है लेकिन साड़ी वह खुले बाज़ार में नहीं बेच सकता। उसे उसी गिरस्ता को साड़ियाँ देनी होंगी जिसने उसे कर्ज़ पर करघा दिया है।
नज़ीर बनारसी सामाजिक सद्भाव के लिए कोई भी क़ीमत चुका सकते थे
गर स्वर्ग में जाना हो तो जी खोल के ख़रचो
मुक्ति का है व्योपार बनारस की गली में
ऐसी चुटीली और मारक शायरी के...
सामाजिक एकता पर संकट डेमोक्रेसी को चैलेंज : प्रो. दीपक मलिक
वाराणसी।आज वाराणसी के नव साधना प्रेक्षागृह,तरना में राइज एंड एक्ट के तहत एक दिवसीय " राष्ट्रीय एकता, शांति व न्याय" विषयक सम्मेलन में वक्ताओं...