सरकार ने भारी प्रचार के साथ 'पशु किसान क्रेडिट योजना' लागू कर दी है लेकिन बैंक इस योजना के तहत लोन नहीं दे रहे हैं। बैंक इस योजना के प्रति उदासीन हैं। बैंक पशुपालकों को कभी पशुपालन विभाग भेज रहे हैं तो कभी कागजों में कमी बताकर वापस जाने को कह दे रहे हैं। इससे पशुपालकों में काफी रोष है। पशुपालकों का कहना है कि पशुपालकों के लिए सरकार ने कम ब्याज की दर पर योजना तो शुरू कर दिया, लेकिन बैंक लोन पास नहीं कर रहे हैं।
इस मामले में महाराष्ट्र का विदर्भ एवं मराठवाड़ा क्षेत्र सुर्खियों में रहा है। वर्ष 1991 से आर्थिक नीतियों में आए बदलाव का असर कृषि एवं ऋण व्यवस्था पर भी पड़ा है। एक ओर किसानों को उसकी उपज का न्यूनतम मूल्य नहीं मिलता, दूसरी ओर, सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली अंतर्गत मिलने वाले राशन को घटा दिया है। किसानों के लिए बनी अनुदान योजनाओं में भी अनुदान कृषि उद्योगों, विद्युत वितरण कंपनियों, कृषि उपयोग में आने वाले वाहन निर्माताओं को दिया जाता है। इस अनुदान का लाभ भी किसानों को नहीं मिलता।