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भिखारी ठाकुर – जिन्होंने अपने रंगकर्म का सरोकार ग्रामीण स्त्रियों के दुःख से जोड़ दिया

भिखारी ठाकुर स्त्री के पक्ष में न्याय करते नहीं दिखते, इसके पीछे कारण यह है कि उन्होंने समाज की सच्चाई को यथार्थ उजागर किया है। उस समय के समाज में पितृसत्ता की ऐसी ही धमक थी। वे समाज के बीच रहकर समाज की समस्या को पढ़ते थे और उनके चरित्र को नाटकों के माध्यम से समाज में अभिव्यक्त करते थे।

रामदास राही जिन्होंने भिखारी ठाकुर की यादों को सँवारने में जीवन लगा दिया

भिखारी ठाकुर के नाट्य शैली को लौंडा नाच कहने वाला जेएनयू का एक शोधार्थी जैनेन्द्र दोस्त है जो कि महाथेथर है। उसने ही रामचंद्र माझी को पाँच हजार रुपया देकर दिल्ली में अश्लीलतापूर्वक नचवाया था। अभिनय और कला की बहुत-सी भाव भंगिमाएं होती है जिसका ज्ञान सबको नहीं है। जगदीशचंद्र माथुर ने भिखारी ठाकुर को भरत मुनि के परंपरा का नाटककार कहा है और राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें अनगढ़ हीरा कहा।

कफनचोर (डायरी 6 नवंबर, 2021)

साहित्य को लेकर एक सवाल मेरी जेहन में हमेशा बना रहता है। सवाल यही कि उस साहित्य को क्या कहा जाय, जिसके पात्र और...

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