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caste and casteism
आजमगढ़ : सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ने वाले पेरियार के जीवन संघर्षों को देखते हुए उन्हें समझा जा सकता है
ईवी रामास्वामी नायकर पेरियार ने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन चला समाज सुधार का बीड़ा उठाया। पेरियार ने समाज में फैली ब्राह्मणवादी व्यवस्था का ही सख्त विरोध नहीं किया बल्कि राजनीति में भी कांग्रेस पार्टी में ब्राह्मणों के वर्चस्व को देखते हुए वहाँ से त्यागपत्र देते हुए नई पार्टी बनाई। आजमगढ़ में सामाजिक न्याय आन्दोलन की श्रृंखला में ग्राम कोठरा, पंचायत भवन, हाफिजपुर में ‘पेरियार की वैज्ञानिक दृष्टि और हमारा समय’ विषय पर गोष्ठी का आयोजन करते हुए उन्हें याद किया गया।
मेरा गाँव : इस लड़की को बाहर करो यह बहुत ज्यादा हँसती है!
डॉ. लता प्रतिभा मधुकर जानी-मानी लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। मुंबई में रहने वाली लता प्रतिभा मधुकर नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथ ही पिछड़ा वर्ग के आन्दोलनों में शामिल रही हैं। साथ ही उसमें इस वर्ग की भागीदारी के लिए बहुत काम कर चुकी हैं। उनका बचपन नागपुर में बीता।
अपना कोई गाँव नहीं था लेकिन पूरा बचपन गाँवों में ही बीता
दलित समाज से जुड़े़ लेखक अपनी आत्मकथाएं लिख रहे हैं। इन आत्मकथाओं में दलित जीवन व दलित समाज से जुड़े़ जातीय भेदभाव को मूल रूप से उजागर किया है। जहां तक लेखिकाओं की आत्मकथाओं का सवाल है तो वहां भी जाति के साथ-साथ लिंग भेद अपने मुखर रूप में मौजूद रहता है। कवि-आलोचक ईश कुमार गंगानिया ने हरियाणा के विभिन्न गाँवों में बीते अपने बचपन की सहज कहानी कही है।
सनातन व्यवस्था में दलितों और पिछड़ों की जगह
जो व्यवस्था बराबरी की बात नहीं करेगी उस पर सवाल तो होंगे ही। उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की सामाजिक विषमताओं को अन्यायपूर्ण गैर-बराबरी वाली...
भारत में कौन है जिसकी कहानी जाति से अलग है ….
भारत में हर व्यक्ति की कहानी जाति और उसे प्राप्त विशेषाधिकारों अथवा बहिष्करण से जुड़ी हुई है। बड़ा से बड़ा प्रगतिशील किसी न किसी रूप में जाति के लाभ और जाति की हानि से बच नहीं सकता। इसलिए यह सहज और स्वाभाविक है कि हर व्यक्ति जाति व्यवस्था से अच्छे या बुरे रूप में प्रभावित होता है। प्रसिद्ध सामाजिक चिंतक और राजनीतिक कार्यकर्ता चौधरी लौटनराम निषाद का यह आत्मकथ्य जाति-व्यवस्था की जटिल बनावट की परतों को बहुत बारीकी से खोलता है। यह जितना रोचक है उतना ही मारक भी है।