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आई लव मोहम्मद : साम्प्रदायिक हिंसा का नया बहाना
इन दिनों हम ‘आई लव मोहम्मद‘ के सीधे-सादे नारे को लेकर हिंसा भड़काने के नजारे देख रहे हैं। इसकी शुरुआत कानपुर से हुई जब मिलादुन्नबी के दिन पैगम्बर मोहम्मद के जन्म दिवस के अवसर पर निकाले गए जुलूस में शामिल ‘आई लव मोहम्मद‘ बैनर पर कुछ लोगों द्वारा इस आधार पर आपत्ति की गई कि इस धार्मिक उत्सव में यह नई परंपरा जोड़ी जा रही है।
संघ की राजनीति ने देश में सांप्रदायिक ताकतों को मुसलमानों पर हमले की दी छूट
वर्ष 2014 के बाद भारत की धर्ननिरपेक्षता पर लगातार हमला हुआ है। देश में हिंदुत्ववादी विचारधारा ने लगातार सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश की है। रोजाना एक-दो खबरें सुनाई दे रही हैं। केवल पुलिस-प्रशासन ही नहीं बल्कि जनप्रतिनिधि भी गैर जिम्मेदाराना बयान दे आग भड़का रहे हैं।
नफरत की फितरत है सब कुछ निगलना, वह धर्म और मजहब नहीं देखती
अमरीका के केनेडी सेंटर में 24 जून को बोलते हुए जब नरेन्द्र मोदी भारत में हर सप्ताह एक नई यूनिवर्सिटी, हर दो दिन में...
साम्प्रदायिक राष्ट्रवाद की ओर बढ़ती भारतीय राजनीति और बुलडोजर से तय होता न्याय
गत 15 अगस्त को भारत ने अपने 76वां स्वाधीनता दिवस मनाया। यह एक मौका है जब हमें इस मुद्दे पर आत्मचिंतन करना चाहिए कि...
बढ़ रहा है सांप्रदायिक राष्ट्रवाद का संकट, अब जरूरी है सद्भाव की वापसी
देश के अलग-अलग हिस्सों में भयावह हिंसा हो रही है। मणिपुर में पिछले तीन महीने से हिंसा जारी है। इसमें करीब 100 व्यक्ति अपनी...
भाजपा पाठ्यक्रम बेहतर बना रही है या अपना इतिहास
नेहरू की आधुनिक भारत के मंदिरों की परिकल्पना को भी किताबों से हटा दिया गया है। आखिर नेहरू और सांप्रदायिक सोच एक ही किताब में एक साथ कैसे रह सकते थे। जो वाक्य हटाया गया है वह यह है: 'आखिर इस जगह, इस भाखड़ा नंगल से महान क्या हो सकता है जहाँ हजारों-लाखों ने अपना खून-पसीना बहाया और अपने जीवन का बलिदान भी दिया।