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सौ साल की यात्रा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टियां बिखर क्यों गईं
एक समय था जब कम्युनिस्ट पार्टियों का राजनीति में इतना बोलबाला था कि सत्ता में बैठी सरकार को निर्णय लेने से पहले सोचना होता था क्योंकि इनका उन दबाव होता था। इनका एक सुनहरा काल था, जब मजदूरों, किसानों के लिए आवाज़ उठाते थे। लाल झंडा देखकर बड़े-बड़े पूँजीपतियों के पसीने छूट जाते थे। पश्चिम बंगाल में 35 वर्ष शासन किये।अब केवल केरल में इनकी सत्ता बची हुई है। पार्टी के अंदर भी खालीपन आ चुका है, इनकी अनेक गलतियों के कारण भी अगली लाइन अच्छी तरह से तैयार नहीं हो पाई। स्थिति सुधरने में बरसों लगेंगे, वह तब जब इसके लिए ज़मीनी स्तर पर लगातार ठोस काम करें।
वाराणसी : बिजली विभाग के निजीकरण को लेकर भाकपा ने भाजपा सरकार के खिलाफ किया प्रदर्शन
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की जिला कमेटी वाराणसी की ओर से शास्त्री घाट पर आज बिजली के निजीकरण को लेकर सरकार के विरोध में...
वरिष्ठ मार्क्सवादी नेता एन. शंकरैया का निधन, दी गई श्रद्धांजलि
केरल के मुख्यमंत्री विजयन, वित्त मंत्री बालगोपाल ने जताया शोक
चेन्नई, (भाषा)। स्वतंत्रता सेनानी और अनुभवी मार्क्सवादी नेता एन. शंकरैया का आज बीमारी के बाद...
पंचायत चुनाव में टीएमसी पर हिंसा फैलाने का आरोप, टीएमसी प्रवक्ता ने कहा आरोप बेबुनियाद
पश्चिम बंगाल। यहाँ पंचायत चुनाव की घोषणा के बाद नामांकन भरने के पहले दिन मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा के बाद से अब राज्य के...
जल संकट को लेकर खनन प्रभावित गांव के लोगों ने 13 घंटे तक किया चक्काजाम
माकपा के नेतृत्व में लोगों की नाराजगी देख एसईसीएल आया हरकत में
कोरबा (छत्तीसगढ़)। बांकीमोंगरा क्षेत्र के खनन प्रभावित गांव बांकी बस्ती, मड़वाढोढा और पुरैना...
बात, जो पूंजीवाद और नवउदारवाद के विमर्श के परे भी है डायरी (17 अगस्त, 2021)
पूंजीवाद मेरे जीवन में पहली बार तब आया जब मैं पत्रकार बना ही था। पटना से प्रकाशित दैनिक आज में मुझे जो बीट दिया...